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Eid Ul Adha In Chhattisgarh: ईद उल अजहा पर क्यों देते हैं जानवरों की कुर्बानी, वजह जानकर हैरान रह जाएंगे आप - सऊदी अरब के मक्का शहर

Eid Ul Adha In Chhattisgarh बकरीद या ईद उल अजहा मुसलमान समुदाय का दूसरा सबसे बड़ा त्यौहार है. ईद उल अजहा इस्लामिक कैलेंडर के जिलहिज्जा माह की 10 तारीख को मनाया जाता है. इस दिन आर्थिक रूप से सक्षम मुस्लिम भाई हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की सुन्नत पर अमल करते हुए खुदा की राह में जानवरों की कुर्बानी पेश करते हैं.

Eid Ul Adha In Chhattisgarh
ईद उल अजहा पर क्यों देते हैं जानवरों की कुर्बानी
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Published : Jun 28, 2023, 2:19 PM IST

Updated : Jun 29, 2023, 6:31 AM IST

ईद उल अजहा पर क्यों देते हैं जानवरों की कुर्बानी

बिलासपुर : ईद उल फित्र के बाद इस्लाम में दूसरा सबसे बड़ा त्योहार ईद उल अजहा है, जो 29 जून को मनाया जाएगा. सऊदी अरब के मक्का शहर पहुंचे आजमीने हज जहां हज के अरकान पूरे करेंगे वहीं खुदा की राह में जानवरों का कुर्बानी पेश की जाएगी. कुर्बानी का सिलसिला तीन दिनों तक चलेगा. 29 जून को ईद उल अजहा है और इसके दूसरे और तीसरे दिन यानी 30 जून और 1 जुलाई को भी जानवरों की कुर्बानी होगी. सुबह ईदगाहों में ईद उल अजहा की नमाज अदा करने के बाद उम्मते मुस्लिमा अपने अपने घरों में जानवरों की कुर्बानी देंगे.

ईद उल अजहा पर किस पर बाजिब है कुर्बानी: शरीयत के मुताबिक कुर्बानी कराना हर उस औरत और मर्द के लिए वाजिब है, जिसके पास 13 हजार रुपए या उसके बराबर सोना या चांदी है. ईद उल अजहा पर कुर्बानी देना वाजिब है, जिसका मुकाम फर्ज के ठीक नीचे है. अगर हैसियत होते हुए भी किसी शख्स ने कुर्बानी नहीं दी तो वह गुनाहगार होगा. जरूरी नहीं कि कुर्बानी किसी महंगे जानदार की की जाए. हर जगह जामतखानों में कुर्बानी के हिस्से होते हैं, जिसमें हिस्सेदार बना जा सकता है.

यह है ईद उल अजहा पर कुर्बानी का इतिहास: कुर्बानी का इतिहास पैगंबर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम से जुड़ा है. ख्वाब में खुदा का हुक्म पाकर अपने बेटे हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम को कुर्बान करने के लिए राजी हो गए. जब हजरत इब्राहिम बेटे को जबा करने जा रहे थे तो हजरत इस्माईल ने उन्हें अपनी आंखों पर पट्टी बांध लेने को कहा. नन्हें से हजरत इस्माईल ने ऐसा इसलिए कहा ताकि उनके पिता खुदा का हुक्म पूरा करने में जरा भी न हिचकें. हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने ऐसा ही किया. आंखों पर पट्टी बांधने के बाद हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने बेटे की गर्दन पर छुरी चला दी और खुदा का हुक्म पूरा किया. मगर जब आंखों से पट्टी हटाई तो हजरत इस्माईल सामने खड़े मुस्कुरा रहे हैं और उनके बेटे की जगह दुंबे की कुर्बानी हो चुकी थी, जिसे फरिश्तों के सरदार जिब्रील अमीन खुदा के हुक्म से जन्नत से लाए थे. दरअसल ये खुदा की तरफ से हजरत इब्राहिम की आजमाइश थी. हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की यह अदा खुदा का इतनी पसंद आई कि कयामत तक के लिए उम्मते मुस्लिमा पर इसे वाजिब कर दिया.

ईद उल अजहा पर कुर्बानी का मकसद: बेशक अल्लाह दिलों के हाल को बेहतर तरीके से जानता है. जब बंदा अल्लाह का हुक्म मानकर महज अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करता है तो वह अल्लाह की रजा हासिल करता है, लेकिन अगर दिखावे के लिए कुर्बानी की गई तो उसका कोई सवाब नहीं मिलेगा. कुर्बानी इज्जत के लिए नहीं बल्कि इसे अल्लाह की इबादत समझकर की जाए.

खुदा ने कुरान मजीद में फरमाया है कि अपने रब के लिए नमाज पढ़ो और अपने रब के लिए कुर्बानी करो. अल्लाह ने ईमान वालों को, जो संपन्न हैं उन्हें कुर्बानी करने के आदेश दिए हैं. इसलिए मुसलमान अपने अल्लाह की राह में कुर्बानी करते हैं. जो लोग संपन्न हैं वह महंगे से महंगा और अच्छा बकरा खुदा की राह में कुर्बान करते हैं. पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि कुर्बानी बहुत ही सवाब का काम है. कुर्बानी करने के दौरान जानवर के खून का कतरा जमीन पर गिरने से पहले ही उनके सभी गुनाह माफ कर दिए जाते हैं. यानी जो व्यक्ति अल्लाह की राह में कुर्बानी देता है उसके सारे गुनाह माफ कर दिए जाते हैं. -मौलाना शब्बीर उल कादरी, इमाम, मदीना मस्जिद

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ईद उल अजहा पर गरीबों में तक्सीम करें हिस्सा: इस्लाम में कुर्बानी के गोश्त का तीन हिस्सा करने का हुक्म दिया गया है. एक हिस्सा मिस्कीनों (गरीबों) को बांटा जाए, दूसरा हिस्सा दोस्तों और रिश्तेदारों को बांटा जाए. वहीं तीसरा हिस्सा घर में इस्तेमाल किया जाए.

ईद उल अजहा पर क्यों देते हैं जानवरों की कुर्बानी

बिलासपुर : ईद उल फित्र के बाद इस्लाम में दूसरा सबसे बड़ा त्योहार ईद उल अजहा है, जो 29 जून को मनाया जाएगा. सऊदी अरब के मक्का शहर पहुंचे आजमीने हज जहां हज के अरकान पूरे करेंगे वहीं खुदा की राह में जानवरों का कुर्बानी पेश की जाएगी. कुर्बानी का सिलसिला तीन दिनों तक चलेगा. 29 जून को ईद उल अजहा है और इसके दूसरे और तीसरे दिन यानी 30 जून और 1 जुलाई को भी जानवरों की कुर्बानी होगी. सुबह ईदगाहों में ईद उल अजहा की नमाज अदा करने के बाद उम्मते मुस्लिमा अपने अपने घरों में जानवरों की कुर्बानी देंगे.

ईद उल अजहा पर किस पर बाजिब है कुर्बानी: शरीयत के मुताबिक कुर्बानी कराना हर उस औरत और मर्द के लिए वाजिब है, जिसके पास 13 हजार रुपए या उसके बराबर सोना या चांदी है. ईद उल अजहा पर कुर्बानी देना वाजिब है, जिसका मुकाम फर्ज के ठीक नीचे है. अगर हैसियत होते हुए भी किसी शख्स ने कुर्बानी नहीं दी तो वह गुनाहगार होगा. जरूरी नहीं कि कुर्बानी किसी महंगे जानदार की की जाए. हर जगह जामतखानों में कुर्बानी के हिस्से होते हैं, जिसमें हिस्सेदार बना जा सकता है.

यह है ईद उल अजहा पर कुर्बानी का इतिहास: कुर्बानी का इतिहास पैगंबर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम से जुड़ा है. ख्वाब में खुदा का हुक्म पाकर अपने बेटे हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम को कुर्बान करने के लिए राजी हो गए. जब हजरत इब्राहिम बेटे को जबा करने जा रहे थे तो हजरत इस्माईल ने उन्हें अपनी आंखों पर पट्टी बांध लेने को कहा. नन्हें से हजरत इस्माईल ने ऐसा इसलिए कहा ताकि उनके पिता खुदा का हुक्म पूरा करने में जरा भी न हिचकें. हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने ऐसा ही किया. आंखों पर पट्टी बांधने के बाद हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने बेटे की गर्दन पर छुरी चला दी और खुदा का हुक्म पूरा किया. मगर जब आंखों से पट्टी हटाई तो हजरत इस्माईल सामने खड़े मुस्कुरा रहे हैं और उनके बेटे की जगह दुंबे की कुर्बानी हो चुकी थी, जिसे फरिश्तों के सरदार जिब्रील अमीन खुदा के हुक्म से जन्नत से लाए थे. दरअसल ये खुदा की तरफ से हजरत इब्राहिम की आजमाइश थी. हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की यह अदा खुदा का इतनी पसंद आई कि कयामत तक के लिए उम्मते मुस्लिमा पर इसे वाजिब कर दिया.

ईद उल अजहा पर कुर्बानी का मकसद: बेशक अल्लाह दिलों के हाल को बेहतर तरीके से जानता है. जब बंदा अल्लाह का हुक्म मानकर महज अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करता है तो वह अल्लाह की रजा हासिल करता है, लेकिन अगर दिखावे के लिए कुर्बानी की गई तो उसका कोई सवाब नहीं मिलेगा. कुर्बानी इज्जत के लिए नहीं बल्कि इसे अल्लाह की इबादत समझकर की जाए.

खुदा ने कुरान मजीद में फरमाया है कि अपने रब के लिए नमाज पढ़ो और अपने रब के लिए कुर्बानी करो. अल्लाह ने ईमान वालों को, जो संपन्न हैं उन्हें कुर्बानी करने के आदेश दिए हैं. इसलिए मुसलमान अपने अल्लाह की राह में कुर्बानी करते हैं. जो लोग संपन्न हैं वह महंगे से महंगा और अच्छा बकरा खुदा की राह में कुर्बान करते हैं. पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि कुर्बानी बहुत ही सवाब का काम है. कुर्बानी करने के दौरान जानवर के खून का कतरा जमीन पर गिरने से पहले ही उनके सभी गुनाह माफ कर दिए जाते हैं. यानी जो व्यक्ति अल्लाह की राह में कुर्बानी देता है उसके सारे गुनाह माफ कर दिए जाते हैं. -मौलाना शब्बीर उल कादरी, इमाम, मदीना मस्जिद

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Last Updated : Jun 29, 2023, 6:31 AM IST
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