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सारकेगुड़ा कांड की बरसी पर ग्रामीणों ने सिलगेर कैंप के विरोध में लगाए नारे, स्मारक बनाकर मारे गए लोगों को दी श्रद्धांजलि - सारकेगुड़ा कांड की 9वीं बरसी

बीजापुर के सारकेगुड़ा में 28 जून 2012 को हुए पुलिस एनकाउंटर में 17 लोगों की मौत हुई थी. ग्रामीण इस दिन मारे गए लोगों की बरसी मनाते हैं. सोमवार को सारकेगुड़ा कांड की 9वीं बरसी (9th anniversary of sarkeguda incident ) पर ग्रामीण सारकेगुड़ा में जुटे और मारे गए ग्रामीणों को श्रद्धांजलि दी.

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सारकेगुड़ा कांड की 9वीं बरसी
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Published : Jun 28, 2021, 9:29 PM IST

बीजापुर: सारकेगुड़ा कांड की बरसी (anniversary of sarkeguda incident ) पर जिले में ग्रामीणों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. आज से 9 वर्ष पहले यहां साल 2012 में गोलीकांड की घटना हुई थी. इसमें कई लोग मारे गए थे. जिन्हें ग्रामीण निर्दोष मानते हैं. इसी घटना की बरसी पर ग्रामीण सारकेगुड़ा में जुटे और मारे गए ग्रामीणों को श्रद्धांजलि दी. प्रदर्शन की अगुवाई बीजापुर मूलनिवासी मंच ने की. ग्रामीणों ने इस दौरान सिलगेर कैंप का विरोध भी किया.

सारकेगुड़ा कांड की बरसी पर प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों ने विशाल सभा का आयोजन किया. जिसके बाद एक बड़ा स्मारक बनवाया. प्रदर्शन कर रहे गांव वालों ने सिलगेर कैंप के खिलाफ नारेबाजी भी की. ग्रामीणों ने कहा कि वह कैंप और उद्योगपतियों के लिए अपने जल, जंगल और जमीन किसी भी सूरत में नहीं देंगे.

पुलिस की नाकेबंदी काम नहीं आई

पुलिस ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए इलाके में कंटेनमेंट जोन घोषित किया था. सड़क पर नाकेबंदी भी की गई थी. लेकिन वह काम नहीं आई. गांव वाले सारकेगुड़ा की बरसी पर लामबंद हो गए और गांव में पहुंचकर प्रदर्शन किया. इस मौके पर ग्रामीणों ने कहा कि वह सिलगेर को दूसरा सरकेगुड़ा नहीं बनने देंगे.

क्या है सारकेगुड़ा कांड ?

साल 2012 में 28 जून की रात सारकेगुड़ा में सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस के संयुक्त एनकाउंटर में 17 लोगों की मौत हुई थी. (sarkeguda encounter) बता दें इनमें 6 की उम्र 18 साल से भी कम थी. इस कांड के लिए एक सदस्यीय न्यायिक जांच की रिपोर्ट करीब सात साल बाद सामने आई थी. बता दें इलाके के ग्रामीण इसे फर्जी एनकाउंटर बता रहे थे. फिर सामने आई जांच रिपोर्ट ने भी एंकाउंटर पर सवाल उठाए थे. (what is sarkeguda scandal )रिपोर्ट के मुताबिक सुरक्षाबलों की मुठभेड़ में नक्सलियों के शामिल होने के सबूत मिले ही नहीं. रिपोर्ट में मारे गए लोग को ग्रामीण बताया गया था. रिपोर्ट में लिखा था कि एनकाउंटर में जो जवान घायल हुए वो एक-दूसरे की गोलियों से घायल हो गए थे. रिपोर्ट कहती है ग्रामीणों की तरफ से गोली चली ही नहीं थी. गोली चलने के सबूत ही नहीं मिले.

सारकेगुड़ा कांड की बरसी के मौके पर सिलगेर में जुट रहे हजारों आदिवासी, IG ने किए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

7 बिंदुओं पर की गई जांच

बता दें कि राज्य सरकार की ओर से 7 बिंदुओं पर जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया था, जिसके सभी बिंदुओं पर जांच की गई. इन बिंदुओं के अलावा भी आयोग ने पाया कि ग्रामीण खुले मैदान में बैठक कर रहे थे, जबकि सुरक्षाबलों ने घने जंगलों में बैठक की जानकारी दी थी. साथ ही आयोग ने जांच में पाया कि सुरक्षाबलों की ओर से की गई फायरिंग आत्मरक्षा में नहीं थी बल्कि जरूरत से ज्यादा फायरिंग की गई, मारे गए ग्रामीणों में से 6 को सिर पर गोली लगी थी.

क्या है सिलगेर का मामला?

सुकमा और बीजापुर जिले की सीमा पर स्थित सिलगेर गांव में ग्रामीण सीआरपीएफ कैंप बनाए जाने का विरोध कर रहे थे. (what is case of silger ) इस विरोध प्रदर्शन में सिलगेर गांव के साथ ही आसपास के कई गांव के ग्रामीण जुटे हुए थे. इसी दौरान सुरक्षाबलों की गोलीबारी में 3 लोगों की मौत हुई. आदिवासी ग्रमीण उन्हें समान्य नागरिक और अपना साथी बता रहे थे. वहीं सुरक्षाबल उन्हें नक्सली कह रहे थे. इस फायरिंग से ग्रामीण गुस्से में हैं और वह लगातार दोषियों पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.

बीजापुर: सारकेगुड़ा कांड की बरसी (anniversary of sarkeguda incident ) पर जिले में ग्रामीणों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. आज से 9 वर्ष पहले यहां साल 2012 में गोलीकांड की घटना हुई थी. इसमें कई लोग मारे गए थे. जिन्हें ग्रामीण निर्दोष मानते हैं. इसी घटना की बरसी पर ग्रामीण सारकेगुड़ा में जुटे और मारे गए ग्रामीणों को श्रद्धांजलि दी. प्रदर्शन की अगुवाई बीजापुर मूलनिवासी मंच ने की. ग्रामीणों ने इस दौरान सिलगेर कैंप का विरोध भी किया.

सारकेगुड़ा कांड की बरसी पर प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों ने विशाल सभा का आयोजन किया. जिसके बाद एक बड़ा स्मारक बनवाया. प्रदर्शन कर रहे गांव वालों ने सिलगेर कैंप के खिलाफ नारेबाजी भी की. ग्रामीणों ने कहा कि वह कैंप और उद्योगपतियों के लिए अपने जल, जंगल और जमीन किसी भी सूरत में नहीं देंगे.

पुलिस की नाकेबंदी काम नहीं आई

पुलिस ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए इलाके में कंटेनमेंट जोन घोषित किया था. सड़क पर नाकेबंदी भी की गई थी. लेकिन वह काम नहीं आई. गांव वाले सारकेगुड़ा की बरसी पर लामबंद हो गए और गांव में पहुंचकर प्रदर्शन किया. इस मौके पर ग्रामीणों ने कहा कि वह सिलगेर को दूसरा सरकेगुड़ा नहीं बनने देंगे.

क्या है सारकेगुड़ा कांड ?

साल 2012 में 28 जून की रात सारकेगुड़ा में सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस के संयुक्त एनकाउंटर में 17 लोगों की मौत हुई थी. (sarkeguda encounter) बता दें इनमें 6 की उम्र 18 साल से भी कम थी. इस कांड के लिए एक सदस्यीय न्यायिक जांच की रिपोर्ट करीब सात साल बाद सामने आई थी. बता दें इलाके के ग्रामीण इसे फर्जी एनकाउंटर बता रहे थे. फिर सामने आई जांच रिपोर्ट ने भी एंकाउंटर पर सवाल उठाए थे. (what is sarkeguda scandal )रिपोर्ट के मुताबिक सुरक्षाबलों की मुठभेड़ में नक्सलियों के शामिल होने के सबूत मिले ही नहीं. रिपोर्ट में मारे गए लोग को ग्रामीण बताया गया था. रिपोर्ट में लिखा था कि एनकाउंटर में जो जवान घायल हुए वो एक-दूसरे की गोलियों से घायल हो गए थे. रिपोर्ट कहती है ग्रामीणों की तरफ से गोली चली ही नहीं थी. गोली चलने के सबूत ही नहीं मिले.

सारकेगुड़ा कांड की बरसी के मौके पर सिलगेर में जुट रहे हजारों आदिवासी, IG ने किए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

7 बिंदुओं पर की गई जांच

बता दें कि राज्य सरकार की ओर से 7 बिंदुओं पर जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया था, जिसके सभी बिंदुओं पर जांच की गई. इन बिंदुओं के अलावा भी आयोग ने पाया कि ग्रामीण खुले मैदान में बैठक कर रहे थे, जबकि सुरक्षाबलों ने घने जंगलों में बैठक की जानकारी दी थी. साथ ही आयोग ने जांच में पाया कि सुरक्षाबलों की ओर से की गई फायरिंग आत्मरक्षा में नहीं थी बल्कि जरूरत से ज्यादा फायरिंग की गई, मारे गए ग्रामीणों में से 6 को सिर पर गोली लगी थी.

क्या है सिलगेर का मामला?

सुकमा और बीजापुर जिले की सीमा पर स्थित सिलगेर गांव में ग्रामीण सीआरपीएफ कैंप बनाए जाने का विरोध कर रहे थे. (what is case of silger ) इस विरोध प्रदर्शन में सिलगेर गांव के साथ ही आसपास के कई गांव के ग्रामीण जुटे हुए थे. इसी दौरान सुरक्षाबलों की गोलीबारी में 3 लोगों की मौत हुई. आदिवासी ग्रमीण उन्हें समान्य नागरिक और अपना साथी बता रहे थे. वहीं सुरक्षाबल उन्हें नक्सली कह रहे थे. इस फायरिंग से ग्रामीण गुस्से में हैं और वह लगातार दोषियों पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.

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