बीजापुर: नक्सल प्रभावित बीजापुर में शिक्षा की अलख जगाने के लिए एक शिक्षक कई समय से उफनती नदी को पार कर स्कूल पहुंच रहे हैं. यह शिक्षक जिले के उस्कालेड प्राथमिक पाठशाला में बच्चों को पढ़ाते हैं और गांव की नदी में पुल के न होने के कारण उन्हें अपनी जान जोखिम में डालकर स्कूल पहुंचना पड़ता है.
शिक्षक नक्सल प्रभावित गांव में बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके, इसके लिए टी एस तेलम काम कर रहे हैं. वह धूम-गर्म हो या बारिश हर मौसम में जैसे-तैसे स्कूल पहुंचते हैं और अपना कृतव्य निभाते हैं. बीजापुर जिले के भोपालपटनम ब्लॉक में करीब 35-40 स्कूल हैं, जहां के बच्चे नदी पार कर अपने स्कूल तक पहुंचते हैं.
इलाके के उस्कालेड प्राथमिक पाठशाला के शिक्षक टी एस तेलम इस बारे में कहा, 'नदी से हमें कई तरह की परेशानी होती है. जब नदी में कम पानी रहता है तो वह स्कूल आ-जा तो सकते हैं, लेकिन जब पानी बढ़ जाता है तो हम अपनी गाड़ी को नदी किनारे रोक के तैरके नदी पार करते हैं.' उन्होंने आगे कहा कि शाम को जब स्कूल से वापस जाने के वक्त अगर नदी पार करने लायक न हो तो वह स्कूल में ही रहकर रात गुजारते हैं.
गांव की इस समस्या को लेकर उस्कालेड पंचायत के सरपंच ने बताया कि यहां स्कूल में बच्चे और टीचर आते हैं और बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जाती है, लेकिन बारिश के वक्त उन्हें पहुंत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. गांव की नदी पर पुल नहीं है. कई बार पुल की मांग गांव के लोग कर चुके हैं, लेकिन पुल अब तक नहीं बन पाई है.
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गांव की प्राथमिक पाठशाला में पढ़ रहे बच्चों के कई सपने हैं, कोई पढ़-लिखकर टीचर बनना चाहता है तो कोई सेना में जाकर देश की सेवा करना चाहता है, लेकिन सुविधाओं का अभाव बीच का रोड़ा बन रहा है.
उस्कालेड प्राथमिक पाठशाला के हेड मास्टर सुब्बाराव चापा के कहते हैं कि गांव में यह समस्या सबसे परेशान करती है. नदी का पानी बढ़ने से वह अपने वाहन नहीं ले जा पाते हैं. कभी कबार लोगों को पैसा देकर उनको नदी पार करना पड़ता है.
उस्कालेड गांव बीजापुर का घोर नक्सली इलाका है. कुछ समय पहले तो गांव में स्थिति यह थी कि यहां के बच्चे गाय बैल चराने काम काम करते थे. प्राथमिक पाठशाला खुलने के बाद गांव में शिक्षा की पहल तो हुई, लेकिन सुविधाओं के अभाव में अभी भी यहां के बच्चों की जिंदगी और सपने अधर में लटके हुए हैं.