बीजापुर: बस्तर, ये नाम सुनते ही बारूद, नक्सली, आदिवासी, पिछड़ापन दिमाग में कौंध जाते हैं. संस्कृति, परंपराओं और प्रकृति की गोद में बैठा ये क्षेत्र किसी को दिखाई नहीं देता. बस्तर की एक शिक्षिका और कवयित्री यही तस्वीर बदलने की कोशिश कर रही है. पूनम वासम अपनी कलम से दुनिया के सामने असल बस्तर पेश कर रही हैं. वे कहती हैं कि शायद बस्तर के प्रति आस्था को वो ऐसे ही जता सकती हैं.
पूमन वासम बीजापुर में टीचर हैं और साहित्य में रुचि रखती हैं. पति शैलेश का साथ मिला और वो अपनी लेखनी के जरिए बस्तर के आदिवासियों की परंपरा, सभ्यता के साथ-साथ उनके दुख, दर्द और तकलीफों को दुनिया के सामने लाने लगीं. पूनम कहती हैं कि इस काम में उन्हें पति का भरपूर सहयोग मिला. पति की प्रेरणा के बाद उन्होंने लिखना शुरू किया और आज आदिवासियों की आवाज बन गई हैं.
बस्तर के आदिवासियों की आवाज बनीं पूनम
बीजापुर एक पिछड़ा इलाका माना जाता है, जिसे पूनम ने बौद्धिक और साहित्य के क्षेत्र में आगे लाने का संकल्प लिया है. पूनम बीजापुर से निकलकर देशभर के वरिष्ठ और प्रतिष्ठित साहित्यकारों के साथ मंच में शामिल होकर बस्तर के आदिवासियों की आवाज बन चुकी हैं. यही नहीं पूनम अब तक साहित्य अकादमी दिल्ली, ग्वालियर, भोपाल और कोलकाता में आयोजित कई कार्यक्रमों में बस्तर को लिख और पढ़ चुकी हैं. उनकी कविताओं में आदिवासियों का दर्द साफ झलकता है.
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पूनम की कविताओं पर हो रहा शोध
ओडिशा, झारखंड और बिहार के शोधार्थी उनकी कविताओं पर शोध कर रहे हैं. पूनम ने बताया कि जल्द ही उनका एक कविता संग्रह प्रकाशित होने वाला है. उनकी किताब का नाम 'मछली गाएगी एक दिन पंडुम गीत' है. पंडुम का हिंदी में अर्थ होता है त्योहार. पूनम बस्तर की महिलाओं की मनोदशा पर भी बहुत लिखना चाहती हैं. वे कहानी को इसका माध्यम बनाएंगी. पूनम कहती हैं कि बस्तर के दूसरे पहलू को लोग जानते नहीं हैं. विश्व का अद्भुत क्षेत्र बस्तर है. वे कहती हैं कि बस्तर का कर्ज है उन पर, जिसे वे जीवनभर लिखकर उतारना चाहती हैं.