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बिलासपुर: कवर्धा के राज घराने से जुड़ी है पालेश्वर महादेव मंदिर की कहानी - पालेश्वर महादेव मंदिर बिलासपुर

तखतपुर विधानसभा के पाली ग्राम पंचायत के पालेश्वर महादेव मंदिर की कहानी कवर्धा के राज घराने से जुड़ी हुई है. महाशिवरात्रि के दिन यहां भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है.

paleshwar shiv mandir takhatpur
महाशिवरात्रि पर उमड़े श्रद्धालु
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Published : Feb 21, 2020, 5:09 PM IST

Updated : Feb 21, 2020, 5:49 PM IST

तखतपुर/बिलासपुर: बिलासपुर से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर तखतपुर विधानसभा के पाली ग्राम पंचायत के पालेश्वर महादेव मंदिर की कहानी कवर्धा के राज घराने से जुड़ी हुई है. गोंडवाना के आदि शक्ति पालेश्वर महादेव मंदिर परिसर में तीन पुजारियों ने समाधि ली है. वहीं महाशिवरात्रि के दिन यहां भगवान शिव की पूजा और अर्चना करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ी रही है.

महाशिवरात्रि पर उमड़े श्रद्धालु

ऐसा कहा जाता है कि कवर्धा के मंडावी राजा ने अपने कान फूंक गुरु के लिए पाली में लगभग 20 एकड़ भूमि दान में दी थी. वहां रहकर जीवनयापन करने के बाद सैंकड़ों साल के बाद लगभग 2005 तक, गोंड पुजारी हर साल महादेव की आराधना में शिवरात्रि की रात जगराता करते हैं. सभी 57 आदिवासी समुदाय एक स्थल में महादेव के बताए मार्ग पर चलने और समाज में फैली कुरीतियों को सुलझाने के लिए देव गुड़ी संविधान और संस्कृति को सुरक्षित रखने के लिए लोगों को लंगर देने की परंपरा रही है.

2019 के आखिर में यहां के पुजारी पालेश्वरनाथ गणेश गिरी की मृत्यु के बाद वर्तमान में सुदर्शन गिरी इस मंदिर की देखरेख कर रहे हैं. यहां रात से ही भक्तों का तांता देखने को मिलता है. ऐसा माना जाता है कि यहां मांगी गई सभी मुरादें पूरी होती है. प्रशासनिक संरक्षण के आभाव में यह एक ऐतिहासिक धरोहर मात्र दार्शनिक स्थल बन कर रहा गया है.

तखतपुर/बिलासपुर: बिलासपुर से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर तखतपुर विधानसभा के पाली ग्राम पंचायत के पालेश्वर महादेव मंदिर की कहानी कवर्धा के राज घराने से जुड़ी हुई है. गोंडवाना के आदि शक्ति पालेश्वर महादेव मंदिर परिसर में तीन पुजारियों ने समाधि ली है. वहीं महाशिवरात्रि के दिन यहां भगवान शिव की पूजा और अर्चना करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ी रही है.

महाशिवरात्रि पर उमड़े श्रद्धालु

ऐसा कहा जाता है कि कवर्धा के मंडावी राजा ने अपने कान फूंक गुरु के लिए पाली में लगभग 20 एकड़ भूमि दान में दी थी. वहां रहकर जीवनयापन करने के बाद सैंकड़ों साल के बाद लगभग 2005 तक, गोंड पुजारी हर साल महादेव की आराधना में शिवरात्रि की रात जगराता करते हैं. सभी 57 आदिवासी समुदाय एक स्थल में महादेव के बताए मार्ग पर चलने और समाज में फैली कुरीतियों को सुलझाने के लिए देव गुड़ी संविधान और संस्कृति को सुरक्षित रखने के लिए लोगों को लंगर देने की परंपरा रही है.

2019 के आखिर में यहां के पुजारी पालेश्वरनाथ गणेश गिरी की मृत्यु के बाद वर्तमान में सुदर्शन गिरी इस मंदिर की देखरेख कर रहे हैं. यहां रात से ही भक्तों का तांता देखने को मिलता है. ऐसा माना जाता है कि यहां मांगी गई सभी मुरादें पूरी होती है. प्रशासनिक संरक्षण के आभाव में यह एक ऐतिहासिक धरोहर मात्र दार्शनिक स्थल बन कर रहा गया है.

Last Updated : Feb 21, 2020, 5:49 PM IST
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