बीजापुर: छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाके खासकर बस्तर संभाग में राजनीतिक और सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए धर्मांतरण और आदिवासी युवतियों से शादी करने का मामला सामने आया है. आदिवासी समाज के प्रमुखों का कहना है कि सामान्य वर्ग के लोग राजनीतिक और सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए आदिवासी युवतियों से शादी कर रहे हैं, इससे उनके समाज पर खतरा मंडराने लगा है. इलाके में भारी मात्रा में धर्मांतरण की बात भी समाज प्रमुखों ने बताई है.
धर्मांतरण और बस लाभ के लिए अंतरजातीय विवाह को रोकने के लिए आदिवासी समाज के प्रमुख गांव-गांव जाकर बैठक कर रहे हैं. बैठक में आदिवासी महिलाओं और उनके परिवार को धर्मांतरण और अंतरजातीय विवाह नहीं करने और समाज की मुख्य धारा से जुड़े रहने की बात कही जा रही है. आदिवासी समाज प्रमुख के मुताबिक इस क्षेत्र में लंबे समय से धर्मांतरण के मामले देखे जा रहे हैं. इसके अलावा आदिवासी समाज की युवतियों से अन्य समाज के युवकों की शादी के भी कई मामले सामने आये हैं. समाज प्रमुखों का कहना है कि ज्यादातर अंतरजातीय विवाह राजनीतिक लाभ या सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए ही किया जाता है.
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प्रलोभन देकर कराया जा रहा धर्मांतरण
समाज के प्रमुखों ने बस लाभ के लिए अंतरजातीय विवाह और धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए राज्यपाल अनुसुइया उइके को ज्ञापन सौंपा है. गोंडवाना समाज के प्रमुखों का कहना है कि भोले-भाले आदिवासियों को सामान्य वर्ग के लोग बहला फुसलाकर उनकी बेटियों से विवाह कर लेते हैं. कई लोग प्रलोभन देकर भोले-भाले आदिसावियों से धर्मांतरण भी करा रहे हैं. समाज प्रमुखों ने बताया कि इसके विरोध में वे और उनका समाज बीजापुर जिला मुख्यालय में बड़ा सम्मेलन करने जा रहे हैं.
शादी में विदेशी शराब पर प्रतिबंध का फैसला
समाज प्रमुख इसके लिए 'शुंकु पंडुग' कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं. इस कार्यक्रम में आदिवासी समाज के प्रमुख, अध्यक्ष, पटेल, मांझी, मुखिया, प्रमुख शामिल हो रहे हैं. कार्यक्रम के माध्यम से शादी और अन्य सामाजिक आयोजनों के दौरान विदेशी शराब पर प्रतिबंध, विवाह और गृह प्रवेश के कार्यक्रमों में ब्राह्मणों को नहीं बुलाने, बकरे हलाल करने पर जुर्माना समेत कई चीजों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया गया है. 10 फरवरी को बस्तर प्रवास के दौरान राज्यपाल अनुसुइया उइके ने भी धर्मांतरण और अंतरजातीय विवाह को गंभीरता से लेते हुए कहा था कि ऐसे मामले कानून से नहीं बल्कि आदिवासी समाज के लोगों द्वारा इसका हल गंभीरता से मंथन करने से निकलेगा.