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Bilaspur sand mining: तुर्काडीह-कोनी पुल मरम्मत में निर्माण के बराबर लग गए रुपए, रेत उत्खनन से अब खतरे में पुल

बिलासपुर में अवैध रेत उत्खनन से पुलों का अस्तित्व खतरे में है, जिसका जीता जागता उदाहरण है तुर्काडीह-कोनी पुल. इस पुल की मरम्मत में इसके निर्माण के बराबर पैसे खर्च हो चुके हैं. रेत से भरी ओवरलोड गाड़ियों की आवाजाही अब इस पुल को खतरे में डाल दिया है.

Turkadih Koni Bridge Repair
तुर्काडीह कोनी पुल मरम्मत
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Published : Mar 30, 2023, 8:54 PM IST

बिलासपुर अवैध रेत उत्खनन

बिलासपुर: जिले में अवैध रेत उत्खनन अब पुलों के लिए काल बनता जा रहा है. यहां रेत माफियाओं की मनमानी और रेत माफियाओं के साथ कुछ अधिकारियों की मिलीभगत के कारण पुल ही नहीं बल्कि अरपा नदी का अस्तित्व ही खतरे में है. इसका एक उदाहरण तुर्काडीह-कोनी पुल है, जिसके मरम्मत में निर्माण के बराबर पैसे खर्च हो चुके हैं. ऐसे रेत माफियाओं से अरपा बेसिन विकास प्राधिकरण के सदस्य भी परेशान हैं.

बनाने में 3.80 करोड़ लगे तो मरम्मत की खर्च 3.53 करोड़: बिलासपुर के कोनी क्षेत्र में तुर्काडीह-कोनी के अरपा नदी पर साल 2005 में 2 मार्च को पुल बनना शुरू हुआ. साल 2007 के 23 जनवरी को पुल का काम पूरा हो गया. पुल की लंबाई लगभग 270 मीटर है. इसे बनाने में 3 करोड़ 80 लाख रुपए लगे थे. जबकि पुल की मरम्मत में 3 करोड़ 53 लाख रुपए लग गए. पुल के निर्माण के बाद से ही अवैध उत्खनन करने वाले पुल के पास से रेत उत्खनन करने लगे. लगातार पुल के आसपास और पिलर के नीचे सालों तक रेत का अवैध उत्खनन किया जाता रहा. इससे पुल के सभी पिलर क्षतिग्रस्त होने लगे, जिन्हें ठीक कराने में पुल बनाने जितना ही खर्चा बैठा. ठीक ऐसे ही जिले के दूसरे ब्रिज के नीचे भी अवैध रेत उत्खनन किया जा रहा है. बावजूद इसके प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है.

यह भी पढ़ें: GPM News : बेमौसम बारिश ने खोली सड़क निर्माण की पोल

खतरे में अरपा नदी का अस्तित्व: लगातार प्रशासन की ओर से अरपा नदी को बचाने का प्रयास किया जा रहा है. राज्य सरकार और जिला प्रशासन कई तरह के प्रयास कर रहे हैं. लेकिन आरोप है कि जिला प्रशासन के कुछ अधिकारी रेत माफियाओं से मिले हुए हैं. बिलासपुर शहर के बीच नेहरू चौक के पास से बहने वाली नदी में ही देर रात अवैध उत्खनन का खेल खेला जा रहा है. प्रशासन को इसकी जानकारी है लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है.

सबको मिलकर करना होगा बचाव: बिलासपुर के सामाजिक चिंतक राकेश शर्मा ने कहा "अरपा नदी शहर के लगभग 30 किलोमीटर तक लोगों को पानी उपलब्ध कराती है. रेत का अवैध उत्खनन अरपा नदी के अस्तित्व को खतरे में डाल रहा है. इसके लिए जन आक्रोश होना चाहिए. जनता को खड़ा होना चाहिए. सरकार पर ही पूरी जिम्मेदारी नहीं डालनी चाहिए. सामाजिक संगठन, राजनीतिक संगठन और अन्य संगठनों को आगे बढ़कर अरपा के अस्तित्व को बचाने प्रयास करना चाहिए."

बिलासपुर अवैध रेत उत्खनन

बिलासपुर: जिले में अवैध रेत उत्खनन अब पुलों के लिए काल बनता जा रहा है. यहां रेत माफियाओं की मनमानी और रेत माफियाओं के साथ कुछ अधिकारियों की मिलीभगत के कारण पुल ही नहीं बल्कि अरपा नदी का अस्तित्व ही खतरे में है. इसका एक उदाहरण तुर्काडीह-कोनी पुल है, जिसके मरम्मत में निर्माण के बराबर पैसे खर्च हो चुके हैं. ऐसे रेत माफियाओं से अरपा बेसिन विकास प्राधिकरण के सदस्य भी परेशान हैं.

बनाने में 3.80 करोड़ लगे तो मरम्मत की खर्च 3.53 करोड़: बिलासपुर के कोनी क्षेत्र में तुर्काडीह-कोनी के अरपा नदी पर साल 2005 में 2 मार्च को पुल बनना शुरू हुआ. साल 2007 के 23 जनवरी को पुल का काम पूरा हो गया. पुल की लंबाई लगभग 270 मीटर है. इसे बनाने में 3 करोड़ 80 लाख रुपए लगे थे. जबकि पुल की मरम्मत में 3 करोड़ 53 लाख रुपए लग गए. पुल के निर्माण के बाद से ही अवैध उत्खनन करने वाले पुल के पास से रेत उत्खनन करने लगे. लगातार पुल के आसपास और पिलर के नीचे सालों तक रेत का अवैध उत्खनन किया जाता रहा. इससे पुल के सभी पिलर क्षतिग्रस्त होने लगे, जिन्हें ठीक कराने में पुल बनाने जितना ही खर्चा बैठा. ठीक ऐसे ही जिले के दूसरे ब्रिज के नीचे भी अवैध रेत उत्खनन किया जा रहा है. बावजूद इसके प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है.

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खतरे में अरपा नदी का अस्तित्व: लगातार प्रशासन की ओर से अरपा नदी को बचाने का प्रयास किया जा रहा है. राज्य सरकार और जिला प्रशासन कई तरह के प्रयास कर रहे हैं. लेकिन आरोप है कि जिला प्रशासन के कुछ अधिकारी रेत माफियाओं से मिले हुए हैं. बिलासपुर शहर के बीच नेहरू चौक के पास से बहने वाली नदी में ही देर रात अवैध उत्खनन का खेल खेला जा रहा है. प्रशासन को इसकी जानकारी है लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है.

सबको मिलकर करना होगा बचाव: बिलासपुर के सामाजिक चिंतक राकेश शर्मा ने कहा "अरपा नदी शहर के लगभग 30 किलोमीटर तक लोगों को पानी उपलब्ध कराती है. रेत का अवैध उत्खनन अरपा नदी के अस्तित्व को खतरे में डाल रहा है. इसके लिए जन आक्रोश होना चाहिए. जनता को खड़ा होना चाहिए. सरकार पर ही पूरी जिम्मेदारी नहीं डालनी चाहिए. सामाजिक संगठन, राजनीतिक संगठन और अन्य संगठनों को आगे बढ़कर अरपा के अस्तित्व को बचाने प्रयास करना चाहिए."

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