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LOCKDOWN : जिंदगी की जंग हार गई, बस्तर की बिटिया

तेलंगाना से अपने घर छत्तीसगढ़ के बीजापुर लौट रही एक 12 साल की बच्ची जमलो मंजिल पर पहुंचने से पहले ही मौत के मुंह में पहुंच गई. कड़ी धूप में पैदल चलने की वजह से उसके शरीर में पानी की कमी हो गई, जिससे डिहाइड्रेशन हो गया और उसने दम तोड़ दिया.

jamalo lost Battle of life due to lockdown
लॉकडाउन की मार, जिंदगी की जंग हार गई जमलो
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Published : Apr 22, 2020, 9:20 PM IST

बीजापुर : 12 साल की जमलो की मौत ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है. तेलंगाना से अपने घर छत्तीसगढ़ के बीजापुर लौट रही बच्ची मंजिल पर पहुंचने से पहले ही मौत के मुंह में पहुंच गई. माता-पिता को जिस बेटी के घर लौटने का इंतजार था, वो घर नहीं लौटी, उसकी मौत की खबर पहुंची. जमलो बीजापुर के आदेड गांव के कुछ लोगों के साथ 2 महीने पहले मिर्ची तोड़ने तेलंगाना के पेरूर गांव गई थी. लॉकडाउन 2 लगने के बाद 16 अप्रैल को गांव के 11 लोगों के साथ पैदल ही जंगल के रास्ते से होते हुए तेलंगाना से बीजापुर के लिए रवाना हुई, लेकिन रास्ते में ही उसकी तबीयत बिगड़ गई.

बिटिया हार गई जंग

रास्ते में जमलो दर्द से तड़पती रही. जंगल के सन्नाटे में न दवा मिली और न दुआ ही काम आई. कुछ मिला तो वो था, सुस्ताने के लिए पेड़ का साया. गांव वाले हिम्मत बंधाते रहे. लड़खड़ाते-डगमगाते कदमों से करीब 135 किलोमीटर जंगल का सफर तय भी किया. लेकिन मोदकपाल पहुंचते ही उसकी सांसों ने जिंदगी का लिहाज करना छोड़ दिया. बताया जा रहा है कि 20 अप्रैल को इस बच्ची ने दम तोड़ दिया.

स्वास्थ्य विभाग में मचा हड़कंप

बच्ची की मौत की खबर लगते ही स्वास्थ्य विभाग की टीम हरकत में आई. बच्ची के शव को बीजापुर लाया गया. जमलो के साथ आए सभी मजदूरों को क्वॉरेंटाइन कर लिया गया. एहतियातन शव का कोरोना टेस्ट के लिए सैंपल भी भेजा गया. जिसकी रिपोर्ट निगेटिव आई है.

घर नहीं पहुंच सकी बिटिया

कोरोना संकट से बचने के लिए लॉकडाउन का फैसला जिंदगी बचाने के लिए लिया गया है लेकिन जमलो की मौत से आप अंदाजा लगा सकते हैं, कि इसने प्रवासी मजदूरों की मुश्किल किस हद तक बढ़ा दी है. 12 साल की जमलो को रोजगार कैसे मिला, ये सवाल भी उठ सकते हैं. लेकिन पेट की आग शायद सारे नियम-कानूनों पर भारी पड़ जाए. काम न मिलने की वजह से हालात भुखमरी जैसे थे, इसलिए जमलो भी गांव लौटना चाहती थी. लेकिन बिटिया घर नहीं पहुंच सकी.

बीजापुर : 12 साल की जमलो की मौत ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है. तेलंगाना से अपने घर छत्तीसगढ़ के बीजापुर लौट रही बच्ची मंजिल पर पहुंचने से पहले ही मौत के मुंह में पहुंच गई. माता-पिता को जिस बेटी के घर लौटने का इंतजार था, वो घर नहीं लौटी, उसकी मौत की खबर पहुंची. जमलो बीजापुर के आदेड गांव के कुछ लोगों के साथ 2 महीने पहले मिर्ची तोड़ने तेलंगाना के पेरूर गांव गई थी. लॉकडाउन 2 लगने के बाद 16 अप्रैल को गांव के 11 लोगों के साथ पैदल ही जंगल के रास्ते से होते हुए तेलंगाना से बीजापुर के लिए रवाना हुई, लेकिन रास्ते में ही उसकी तबीयत बिगड़ गई.

बिटिया हार गई जंग

रास्ते में जमलो दर्द से तड़पती रही. जंगल के सन्नाटे में न दवा मिली और न दुआ ही काम आई. कुछ मिला तो वो था, सुस्ताने के लिए पेड़ का साया. गांव वाले हिम्मत बंधाते रहे. लड़खड़ाते-डगमगाते कदमों से करीब 135 किलोमीटर जंगल का सफर तय भी किया. लेकिन मोदकपाल पहुंचते ही उसकी सांसों ने जिंदगी का लिहाज करना छोड़ दिया. बताया जा रहा है कि 20 अप्रैल को इस बच्ची ने दम तोड़ दिया.

स्वास्थ्य विभाग में मचा हड़कंप

बच्ची की मौत की खबर लगते ही स्वास्थ्य विभाग की टीम हरकत में आई. बच्ची के शव को बीजापुर लाया गया. जमलो के साथ आए सभी मजदूरों को क्वॉरेंटाइन कर लिया गया. एहतियातन शव का कोरोना टेस्ट के लिए सैंपल भी भेजा गया. जिसकी रिपोर्ट निगेटिव आई है.

घर नहीं पहुंच सकी बिटिया

कोरोना संकट से बचने के लिए लॉकडाउन का फैसला जिंदगी बचाने के लिए लिया गया है लेकिन जमलो की मौत से आप अंदाजा लगा सकते हैं, कि इसने प्रवासी मजदूरों की मुश्किल किस हद तक बढ़ा दी है. 12 साल की जमलो को रोजगार कैसे मिला, ये सवाल भी उठ सकते हैं. लेकिन पेट की आग शायद सारे नियम-कानूनों पर भारी पड़ जाए. काम न मिलने की वजह से हालात भुखमरी जैसे थे, इसलिए जमलो भी गांव लौटना चाहती थी. लेकिन बिटिया घर नहीं पहुंच सकी.

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