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इस गौठान में ऐसा क्या है कि यहां की महिलाएं हजारों रुपये कमा रही हैं ?

बेमेतरा के झालम गौठान में गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनाकर महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही है.ETV भारत से बातचीत के दौरान समूह की महिलाएं काफी खुश नजर आ रही हैं. चरवाहे भी अब गोबर बेचकर 60 हजार रुपये से ज्यादा कमा रहे है.

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बेमेतरा का झालम गौठान
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Published : Dec 29, 2020, 3:59 PM IST

Updated : Dec 29, 2020, 5:31 PM IST

बेमेतरा: प्रदेश सरकार की महत्वकांक्षी योजना नरवा गरवा घुरवा बारी से न सिर्फ गौठान में काम करने वाली महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि गोधन योजना के तहत गोबर बेचकर पशुपालक भी अच्छी खासी कमाई कर रहे है. महिलाएं वर्मी खाद बेचकर बेहद खुश नजर आ रही हैं.

झालम गौठान में गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनाकर महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही है

अब तक 41 क्विंटल खाद की बिक्री, 45 हजार रुपये का हुआ लाभ

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गौठानों में वर्मी कंपोस्टर तैयार करती महिलाएं

झालम गांव के गौठान में 30 वर्मी टैंक स्थापित किए गए है.जिसमें 10 टैंकों से लगभग 50 क्विंटल खाद का उत्पादन समूह की महिलाओं ने किया है.50 क्विंटल वर्मी खाद में से 41 क्विंटल खाद की बिक्री हो चुकी है. जिसे बेचने से महिला समूह को 45 हजार रुपये का लाभ हुआ है.बाकी अन्य टैंकों में भी खाद का निर्माण जारी है. जो करीब महीनेभर बाद बनकर तैयार हो जाएगा.

पढ़ें: छत्तीसगढ़ के इमरान को वो अवार्ड मिला जो देश में सिर्फ एक मत्स्य कृषक को मिलता है

40-45 दिन में वर्मी कम्पोस्ट होता है तैयार

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गोठान में वर्मी कंपोस्ट बना रही महिलाएं

समूह की महिलाओं ने ETV भारत से बता करते हुए बताया कि वर्मी कंपोस्ट बनाने की प्रक्रिया में 40 दिन लगते है. सबसे पहले गोबर को धूप में सुखाया जाता है. उसके बाद गोबर में भूसा, बेसन, गेहूं और केचुआ डाला जाता है. जिसके बाद गीले बोरे की परत से ढक दिया जाता है. 40 से 45 दिनों बात वर्मी कंपोस्ट खाद बनकर तैयार हो जाता है. बाजार में थोक में इसका भाव 10 रुपये और चिल्हर में 15 रुपये किलो तक बिकती है.

पार्ट टाइम जॉब की कमाई से समूह की महिलाएं खुश
ETV भारत से बातचीत के दौरान महिला स्व सहायता समूह की महिलाओं ने बताया कि उन्हें जनपद पंचायत कृषि विभाग एवं कृषि विज्ञान केंद्र के मार्गदर्शन से वर्मी खाद बनाने की प्रक्रिया बताई गई. जिसके बाद इसे बनाना शुरू कर दिया गया.अब तक 50 दिनों में 50 क्विंटल खाद बना चुकी है. उनमें से 45 हजार के वर्मी खाद की बिक्री भी हो चुकी है. महिलाओं ने बताया की वह अपने घर और खेत के काम के बाद दोपहर बाद गौठान आती हैं और शाम 5 बजे तक वर्मी कम्पोष्ट खाद निर्माण संबंधी काम करती है. पार्ट टाइम काम से हो रहे फायदे से महिलाएं काफी खुश है.

पढ़ें: रायपुर: हैंडलूम एक्सपो पर पड़ रही कोविड-19 और किसान आंदोलन की दोहरी मार

गोबर बेचकर चरवाहे ने कमाए 60 हजार रुपये
सरकार के महत्वकांक्षी योजना से गांव के चरवाहे भी खुश नजर आ रहे हैं. झालम गांव के चरवाहा संतोष यादव ने बताया कि 25 जुलाई से गौठान में गोबर बेच रहा है. गौठान समिति में अब तक करीब 60 से 65 हजार का गोबर बेच चुका है.गांव के सरपंच टेकु राम साहू ने बताया कि गौठान में वर्मी कंपोस्ट बनाकर गांव की महिला आत्मनिर्भर बन रही है.

नरवा, गरवा, घुरवा बाड़ी योजना ने गोबर की डिमांड प्रदेश में काफी बढ़ा दी है. अक्सर पशुपालक सिर्फ साल में एक बार गोबर बेच पाते थे, लेकिन अब गौठानों और गोधन योजना से पशुपालकों के साथ ही गौठानों में महिलाएं भी लाभ कमा रही हैं.

बेमेतरा: प्रदेश सरकार की महत्वकांक्षी योजना नरवा गरवा घुरवा बारी से न सिर्फ गौठान में काम करने वाली महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि गोधन योजना के तहत गोबर बेचकर पशुपालक भी अच्छी खासी कमाई कर रहे है. महिलाएं वर्मी खाद बेचकर बेहद खुश नजर आ रही हैं.

झालम गौठान में गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनाकर महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही है

अब तक 41 क्विंटल खाद की बिक्री, 45 हजार रुपये का हुआ लाभ

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गौठानों में वर्मी कंपोस्टर तैयार करती महिलाएं

झालम गांव के गौठान में 30 वर्मी टैंक स्थापित किए गए है.जिसमें 10 टैंकों से लगभग 50 क्विंटल खाद का उत्पादन समूह की महिलाओं ने किया है.50 क्विंटल वर्मी खाद में से 41 क्विंटल खाद की बिक्री हो चुकी है. जिसे बेचने से महिला समूह को 45 हजार रुपये का लाभ हुआ है.बाकी अन्य टैंकों में भी खाद का निर्माण जारी है. जो करीब महीनेभर बाद बनकर तैयार हो जाएगा.

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40-45 दिन में वर्मी कम्पोस्ट होता है तैयार

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गोठान में वर्मी कंपोस्ट बना रही महिलाएं

समूह की महिलाओं ने ETV भारत से बता करते हुए बताया कि वर्मी कंपोस्ट बनाने की प्रक्रिया में 40 दिन लगते है. सबसे पहले गोबर को धूप में सुखाया जाता है. उसके बाद गोबर में भूसा, बेसन, गेहूं और केचुआ डाला जाता है. जिसके बाद गीले बोरे की परत से ढक दिया जाता है. 40 से 45 दिनों बात वर्मी कंपोस्ट खाद बनकर तैयार हो जाता है. बाजार में थोक में इसका भाव 10 रुपये और चिल्हर में 15 रुपये किलो तक बिकती है.

पार्ट टाइम जॉब की कमाई से समूह की महिलाएं खुश
ETV भारत से बातचीत के दौरान महिला स्व सहायता समूह की महिलाओं ने बताया कि उन्हें जनपद पंचायत कृषि विभाग एवं कृषि विज्ञान केंद्र के मार्गदर्शन से वर्मी खाद बनाने की प्रक्रिया बताई गई. जिसके बाद इसे बनाना शुरू कर दिया गया.अब तक 50 दिनों में 50 क्विंटल खाद बना चुकी है. उनमें से 45 हजार के वर्मी खाद की बिक्री भी हो चुकी है. महिलाओं ने बताया की वह अपने घर और खेत के काम के बाद दोपहर बाद गौठान आती हैं और शाम 5 बजे तक वर्मी कम्पोष्ट खाद निर्माण संबंधी काम करती है. पार्ट टाइम काम से हो रहे फायदे से महिलाएं काफी खुश है.

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गोबर बेचकर चरवाहे ने कमाए 60 हजार रुपये
सरकार के महत्वकांक्षी योजना से गांव के चरवाहे भी खुश नजर आ रहे हैं. झालम गांव के चरवाहा संतोष यादव ने बताया कि 25 जुलाई से गौठान में गोबर बेच रहा है. गौठान समिति में अब तक करीब 60 से 65 हजार का गोबर बेच चुका है.गांव के सरपंच टेकु राम साहू ने बताया कि गौठान में वर्मी कंपोस्ट बनाकर गांव की महिला आत्मनिर्भर बन रही है.

नरवा, गरवा, घुरवा बाड़ी योजना ने गोबर की डिमांड प्रदेश में काफी बढ़ा दी है. अक्सर पशुपालक सिर्फ साल में एक बार गोबर बेच पाते थे, लेकिन अब गौठानों और गोधन योजना से पशुपालकों के साथ ही गौठानों में महिलाएं भी लाभ कमा रही हैं.

Last Updated : Dec 29, 2020, 5:31 PM IST
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