बस्तरः रथ निर्माण के लिए बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई से पर्यावरण को पहुंच रहे नुकसान को लेकर ग्रामीणों ने मोर्चा खोल दिया है. ग्रामीणों के विरोध के बाद जिला प्रशासन ने इन जगहों पर अधिक से अधिक पेड़ लगाने का निर्णय लिया है. इस फैसले के बाद ग्रामीणों ने इस बार रथ निर्माण के लिए लकड़ी देने की अनुमति दे दी है. वहीं, रथ निर्माण के लिए वनों की कटाई के साथ ही वन विभाग ने इन जगह पर पेड़ लगाने का काम शुरू भी कर दिया है.
बस्तर के जिन ग्रामीण अंचलों से रथ निर्माण के लिये हरे-भरे पेड़ों की कटाई की जाती है, उन गांवों में रहने वाले ग्रामीणों द्वारा पिछले 10 साल से मांग की जा रही है. उनका कहना है कि, दशहरा पर्व में रथ निर्माण के लिए काटे जाने वाले पेड़ों के बदले नए पेड़ लगाए जाएं. उन पेड़ों को सुरक्षित किया जाए. इस मामले में पिछले साल बस्तर सांसद दीपक बैज की अध्यक्षता में बैठक कर निर्णय लिया गया था कि रथ निर्माण में उपयोग किए जाने वाले पेड़ों के बदले संबंधित वन परिक्षेत्रों में ही पौधरोपण किया जाएगा और उस क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों की सक्रिय भागीदारी कर पेड़ों को सुरक्षित भी किया जाएगा. इसके बाद इस साल ग्रामीणों ने इसी शर्त पर दशहरा पर्व के लिए अपने गांव से लकड़ी देने की अनुमति दी है. वहीं, वन विभाग के द्वारा इन गांवों में पौधरोपण का कार्य शुरू कर दिया गया है. साथ ही इसकी देख भाल खुद वन विभाग और स्थानीय ग्रामीणों द्वारा की जा रही है.
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दशहरा पर रथ निर्माण के लिए काटे जाते हैं हरे पेड़
विशालकाय रथ निर्माण के लिए हरे-भरे साल वन और अन्य प्रजाति के पेड़ों को काट कर रथ का निर्माण हर साल किया जाता है. रथ निर्माण के लिए जिले के माचकोट, कांगेर और दरभा वन परिक्षेत्रों के 61 जगहों से साल, टीवंस और धामन के पेड़ काटे जाते हैं. वर्तमान में संबंधित वन परिक्षेत्रों में पेड़ों का घनत्व कम होता जा रहा है. कलेक्टर रजत बंसल ने कहा कि बस्तर दशहरा की सभी रस्मों को विधि-विधान से सम्पन्न कराना जिला प्रशासन की प्राथमिकता है. साथ ही पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि रथ निर्माण के लिए काटे जाने वाले पेड़ों के बदले जमीन चयनित किया जाए. संबंधित वन परिक्षेत्रों में वन विभाग, राजस्व विभाग और ग्राम पंचायत ग्रामीणों की सक्रिय भागीदारी से न केवल पेड़ लगाए बल्कि उसे सुरक्षित भी किया जाय. संबंधित वन परिक्षेत्रों में हर साल रथ निर्माण के लिए काटे जाने वाले पेड़ों की तुलना में 3 गुना पेड़ लगा कर वन परिक्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों की भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाए.