जगदलपुर: बस्तर दशहरे की विश्व प्रसिद्ध रस्म रथ परिक्रमा का शुभारंभ हो चुका है. इस रस्म में बस्तर के स्थानीय आदिवासियों द्वारा हाथों से ही पारंपरिक औजारों से बनाए गए विशालकाय रथ की शहर में परिक्रमा कराई जाती है. करीब 40 फीट ऊंचे और कई टन वजनी इस रथ को परिक्रमा कराने के लिए सैकड़ों आदिवासी स्वेच्छा से पहुंचते हैं. परिक्रमा के दौरान रथ पर मां दंतेश्वरी के छत्र और डोली को विराजमान किया जाता है. दशहरे के दौरान देश में इकलौते इस तरह की परंपरा को देखने हर साल सैकड़ों की संख्या में लोग बस्तर पहुंचते हैं. हालांकि इस वर्ष भी कोविड काल की वजह से बाहरी पर्यटकों के बस्तर आने पर रोक लगा दी गई है और वही कोविड के पूरे नियमों का पालन कर इस रथ परिक्रमा के रस्म को निभाया जा रहा है.
600 साल से निभाई जा रही है रस्म
बस्तर दशहरे के इस अद्भुत रस्म रथ परिक्रमा की शुरुआत 1410 ईसवी में तत्कालीन महाराजा पुरुषोत्तम देव के द्वारा की गई थी. महाराजा पुरुषोत्तम देव ने जगन्नाथ पुरी से रथपति की उपाधि प्राप्त की थी जिसके बाद से अब तक यह परंपरा चली आ रही है. 1400 में राजा पुरषोत्तम देव द्वारा आरंभ किए गए रथ परिक्रमा के इस रस्म को 600 सालों बाद आज भी बस्तरवासी उसी उत्साह के साथ निभाते हैं. नवरात्रि के दूसरे दिन से सप्तमी तक माँ दंतेश्वरी की सवारी को परिक्रमा लगवाने वाले इस रथ को फूल रथ के नाम से जाना जाता है.
मंत्री कवासी लखमा और सांसद दीपक बैज हुए शामिल
बस्तर प्रभारी मंत्री बनने के बाद कवासी लखमा भी विश्व प्रसिद्ध रथ परिक्रमा के रस्म में शामिल हुए. कवासी लखमा ने कहा कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार आने के बाद बस्तर दशहरा को हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस पर्व को धूमधाम से मनाने के लिए किसी तरह की कोई कमी ना हो इसका भी खास ख्याल रखा जा रहा है. लखमा ने कहा कि विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा छत्तीसगढ़ के साथ ही पूरे देश में सबसे बड़ा पर्व है और इस पर्व में किसी तरह की कोई कमी ना हो यह सरकार और प्रशासन का पहला दायित्व है . यही वजह है कि मुख्यमंत्री ने भी इस वर्ष पर्व के लिए बजट बढ़ाने के साथ ही रस्मों को धूमधाम से मनाने के आदेश दिए हैं. वहीं आने वाले 17 अक्टूबर को मुरिया दरबार रस्म में खुद मुख्यमंत्री के शामिल होने की भी पूरी संभावना है.