जगदलपुर: 'नदिया किनारे, किसके सहारे' इस खास कवरेज में अब बात करते हैं उस नदी की जिसे छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी कहा जाता है. जिससे बस्तर की प्यास बुझती है और जिसे बस्तरवासियों ने मां का दर्जा दिया है. ओडिशा कालाहांडी के रामपुर से बहने वाली इंद्रावती की कुल लंबाई 300 किलोमीटर है. जिंदगी देने के साथ यह नदी बस्तरवासियों के लिए आस्था का भी प्रतीक है.
बस्तर संभाग में आने वाली जदगलपुर की आधी आबादी को जल भी इसी के जरिए नसीब होता है. इसके अलावा बस्तर के किसान खेती के लिए भी इसी के पानी पर निर्भर रहते हैं. मिनी नियाग्रा के नाम से प्रसिद्ध सूबे का मशहूर पिकनिक स्पॉट चित्रकोट वॉटर फॉल भी इसी नदी की देन है. नदी सूख रही है और बस्तर के 4 लाख लोगों को जल संकट का खतरा सताने लगा है.
इतिहास और विस्तार से जानिए-
- इंद्रावती नदी के किनारे मौजूद इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान के जानवरों के लिए भी यह पेयजल का प्रमुख स्त्रोत है.
- पिछले कुछ साल में हालत बड़ी तेजी से बदल रहे हैं और छत्तीसगढ़ की जीवनदायी इंद्रावती नदी तेजी से सूखती जा रही है और अगर यही आलम रहा तो शायद वह दिन दूर नहीं जब जीवन देने वाली इस नदी का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है.
- बस्तर मे गहराते जल संकट को देखते हुए साल 1999 में अविभाजित तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री दिगविजय सिंह ने केन्द्रीय जल आयोग को पत्र लिखकर जोरानाला में इंद्रावती नदीं पर स्ट्रक्चर निर्माण की इजाजत मांगी, लेकिन कई सालों तक मंजूरी नहीं मिली.
- इसके बाद केंद्रीय जल आयोग ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए ऑडिशा और अविभाजित मध्यप्रदेश की सरकार के बीच मध्यस्था कराई.
- इस दौरान समझौते के बाद जोरानाला में कंट्रोल स्ट्रक्चर के निर्माण की मंजूरी दी गई और साल 2003 मे कंट्रोल स्ट्रक्चर निर्माण की अनुमति मिलने के बाद जोरा नाला पर काम शुरू किया गया और साल 2015 में इसे मूलस्वरूप मिला.
- स्ट्रक्चर निर्माण से पहले इंद्रावती नदी का 90 फीसदी पानी जोरा नाला की ओर डायवर्ट हो जाता था, लेकिन स्ट्रक्चर निर्माण के बावजूद भी उडीसा से आने वाली इंद्रावती नदी के पानी का 65 फीसदी हिस्सा आज भी जोरा नाला की ओर जाता है, जबकि मात्र 35 प्रतिशत पानी ही बस्तर की ओर आ रहा है.
- ओडिशा के लोगों ने कई बार जोरा नाला में बने स्ट्रक्चर को नुकसान पंहुचाने की कोशिश की, ताकि बस्तर की ओर आने वाले पानी में और भी कमी की जा सके और जोरा नाला की ओर साल के बारहों महीने पानी का बहाव बना रह सके.
- करीब 21 करोड़ की लागत से बने इस स्ट्रक्चर के निर्माण से बस्तरवासियों को कुछ खास फायदा तो नहीं हुआ, बल्कि शहर की आबादी बढ़ने के साथ ही उनपर जलसंकट का खतरा भी मंडराने लगा.
- बस्तर की ओर इंद्रावती नदी के बहाव का तेजी से घटने का एक नुकसान यह भी हुआ कि, इंद्रावती नदी के तटीय इलाकों में रेत माफिया और अतिक्रमणकारियों ने नदी में खनन करने के साथ-साथ पेड़ों की कटाई शुरू कर दी, इसका अंजाम यह हुआ कि, धीरे-धीरे इंद्रावती नदी के अस्तिस्व पर ही संकट छा गया.
- बस्तर के विशेष जानकार हेमंत कश्यप बताते हैं कि 'इंद्रावती नदी पर उड़ीसा के नवरंगपुर के पास खातीगुड़ा में डेम भी बनाया गया. यह डेम 1980 में बनना शुरू हुआ जिसे पूरा होने में 19 साल का वक्त लग गया.
- बांध बनने के बाद इंद्रावती नदी में उड़ीसा की ओर से पानी आना बंद हो गया, जबकि दोनों सरकार के बीच हुए समझौते के मुताबिक 45 टीएमसी पानी छत्तीसगढ़ को दिया जाना था, लेकिन ओडिशा सरकार ने इस समझौते को ताक में रखते हुए छत्तीसगढ़ के बस्तर को उतना पानी नहीं दिया.
- इस मुद्दे को लेकर दोनों प्रदेशों के बीच बातचीत भी हुई, लेकिन इस दौरान छत्तीसगढ़ सरकार अपना पक्ष ठीक से नहीं रख पाई जिसका नतीजा आप इंद्रावती नदी की हालत देखकर बखूबी लगा सकते हैं.
- साल दर साल इंद्रावती का दायरा सिमटता जा रहा है और अगर सिस्टम ने इस ओर जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो शायद वह दिन दूर नहीं जब जिंदगी की यह धारा इतिहास में दफ्न हो जाएगी और बस्तर के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के लोग पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस जाएंगे.