जगदलपुर: छत्तीसगढ़ राज्य गठन (Chhattisgarh State Formation) के 21 साल पूरे हो चुके हैं और इन 21 सालों में छत्तीसगढ़ के साथ-साथ पूरे बस्तर संभाग की काफी तस्वीर बदली है, हालांकि इन 21 सालों में बस्तर संभाग नक्सल मुक्त ( Naxal Free ) तो नहीं हो सका है. लेकिन बीते कुछ सालों में नक्सलवाद काफी कम हुआ है और संभाग के 7 जिलों में विकास की गति भी बढ़ी है. संभाग मुख्यालय जगदलपुर शहर की भी तस्वीर बदलने के साथ काफी विकास हुआ है.
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21 साल का हुआ बस्तर
आदिवासी अंचल बस्तर में आज भी कई नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आदिवासी ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. यहां विकास कोसों दूर हैं. इसके पीछे बड़ी वजह नक्सलवाद बताई जाती है. लेकिन बीते 21 सालों में कई ग्रामीण अंचलों की समस्या जस की तस बनी हुई है. आज यहां विकास नहीं पहुंच सका है. छत्तीसगढ़ गठन के 21 सालों में बस्तर ने भी काफी कुछ खोया है और काफी कुछ पाया है. जिसमें मुख्य रुप से बस्तर के दिग्गज नेताओं के शहादत के साथ ही नक्सलियों से लोहा ले रहे 500 से अधिक जवानों ने अपनी जान न्योछावर कर की है. तो वहीं एनएमडीसी जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनी ने अपने प्लांट स्थापित कर स्थानीय लोगों को रोजगार देने के साथ ही ग्रामीण अंचलों में शिक्षा और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया है. जिस वजह से स्वास्थ्य के क्षेत्र में बस्तर जैसे बाहुल्य क्षेत्र में काफी सुधार आया है और बस्तर को मेडिकल कॉलेज के साथ ही सर्व सुविधा युक्त डिमरापाल जिला अस्पताल की सुविधा भी मिली है.
बस्तर में हुआ काफी बदलाव
छत्तीसगढ़ गठन के बाद से अब तक बस्तर को काफी पिछड़ा क्षेत्र माना जाता रहा है, चाहे वह विकास के क्षेत्र में हो या फिर शिक्षा और ग्रामीण अंचलों में मूलभूत सुविधाओं के क्षेत्र में. हालांकि बीते कुछ सालों में बस्तर संभाग की तस्वीर बदली है और यहां के लोगों के जीवन शैली में भी काफी बदलाव आया है. एक तरफ जहां बिजली और पेयजल जैसे जरूरी सुविधा के लिए संभाग के अधिकतर इलाको में ग्रामीण तरसते थे , लेकिन बीते कुछ सालों में 60 फीसदी से अधिक इलाकों में इन दोनों की सुविधा ग्रामीण अंचलों के लोगों को मिल रही है.
वहीं नक्सलवाद का दंश झेल रहे बस्तर में सड़क, पुल, पुलिया के अभाव में कई ग्रामीण आज भी शहरी क्षेत्रों से कटे हुए हैं. लेकिन दोनों ही सरकार ने अपने अपने कार्यकाल के दौरान सड़कों का जाल बिछाने के साथ ही पुल- पुलियों के निर्माण और स्टॉप डेम निर्माण में भी विशेष ध्यान दिया. जिसके चलते आदिवासी अंचलों के अधिकतर किसान अब खेती किसानी और वनोपज के संग्रहण पर आश्रित हैं और पिछले सालों के मुकाबले उनके जीवन शैली में भी काफी सुधार हुआ है.
टाटा के स्टील प्लांट से बस्तर वासियों को काफी उम्मीदें थी. टाटा के प्लांट के जरिए स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा और बस्तर का भी चहुमुखी विकास होग सकेगा, लेकिन टाटा इससे पहले बस्तर में अपनी प्लांट स्थापित कर पाती, लेकिन कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद टाटा को बस्तर से बाय कर दिया गया. ग्रामीणों को उनकी जमीन वापस दिलाई गई. आज भी बस्तर में बड़े कंपनियों की प्लांट नहीं है. जिस वजह से बस्तर संभाग बाकी संभागों के मुकाबले विकास से अछूता रह गया है.
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स्टील प्लांट स्थापित होने से मिला रोजगार
जगदलपुर के नगरनार में निर्माणाधीन NMDC स्टील प्लांट से स्थानीय लोगों को काफी कुछ उम्मीदें हैं और सरकार को भी इस एनएमडीसी स्टील प्लांट से मिलने वाले सीएसआर CSR मद से भी बस्तर का विकास तेजी से होने की उम्मीद है. लेकिन अब तक यह प्लांट पूरा नहीं हो सका है, स्थानीय लोगों का मानना है कि एनएमडीसी स्टील प्लांट स्थापित होने से निश्चित तौर पर बस्तर के सैकड़ों बेरोजगारों को रोजगार मिलने के साथ ही बस्तर के विकास की गति भी बढ़ेगी.
जगदलपुर ने किया तेजी से विकास
इधर संभाग मुख्यालय जगदलपुर शहर की बात की जाए तो पिछले 6 सालों में जगदलपुर शहर विकास की ओर तेजी से अग्रसर हुआ है. बस्तर वासियों को विमानसेवा की सौगात मिलने के साथ ही पिछले 21 सालों में बस्तरवासियों को 6 यात्री ट्रेनें भी मिली है. इसके अलावा शिक्षा , स्वास्थ्य क्षेत्र में भी जगदलपुर शहर में काफी विकास हुआ है. शहर को स्मार्ट सिटी के तर्ज पर विकसित करने के लिए जिला प्रशासन और नगर निगम के द्वारा कई काम स्वीकृत कराए गए. जिसके चलते जगदलपुर वासियों के जीवन शैली में भी बदलाव आया है.
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वनोपज के जरिए बस्तर में हुआ अच्छा काम
बस्तर में पाए जाने वाले वनोपज के जरिए इस क्षेत्र में सरकार और जिला प्रशासन ने काफी कुछ काम किया है. जिसके चलते आज बस्तर के वनोपज जिसमें महुआ, काजू, टोरा , कोदो, कुटकी और तेंदूपत्ता समेत बस्तर की इमली इन वनोपज के जरिए ग्रामीण अंचलों में लोगों को रोजगार उपलब्ध हो रहा है. आज बस्तर के वनोपज, ट्राइबल आर्ट देश विदेशों में निर्यात की जा रही है. जिससे ग्रामीणों को आय भी हो रही है. हालांकि बस्तर में वनोपज की अपार संभावनाओं के बावजूद भी संसाधनों की कमी की वजह से ग्रामीण अंचलों के लोगों को उनके मेहनत का सही दाम नहीं मिल पा रहा है. इसलिए ग्रामीण बस्तर से पलायन करने को भी मजबूर होते हैं.
काम नहीं तो, लोग हुए पलायन
इन 21 सालों में बस्तर के सैकड़ों गांव के ग्रामीण काम की तलाश में पलायन कर चुके हैं. हालांकि दोनों ही सरकार ने स्ट्रक्चर निर्माण से लेकर सड़कों का जाल बिछाने के साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अच्छे कार्य किए हैं, लेकिन ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराने के अभाव में नक्सलवाद की समस्या जस की तस बनी हुई है.
अभी भी नक्सलवाद हावी
आज भी ग्रामीण अंचल के युवा बेरोजगारी के चलते गलत रास्ते पर चलने को मजबूर हैं और सरकार नक्सलवाद की समस्या को समाप्त करने और ज्यादा से ज्यादा रोजगार उपलब्ध कराने में नाकामयाब ही साबित हो रही है. कहा जा सकता है कि 21 सालों में बस्तर की तस्वीर जरूर बदली है और ग्रामीण अंचलों के साथ-साथ शहरवासियों की जीवन शैली में भी काफी बदलाव आया है.