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आदिवासी क्यों मनाते हैं 'डोकरा मेला'

पूर्व कलेक्टर और सामाजिक कार्यकर्ता ब्रह्मदेव शर्मा (Former Collector and Social Activist Brahmdev Sharma) ने आदिवासियों को उनकी जमीन और संवैधानिक अधिकारों के लिए जागरूक किया था. जिन्हें गांव के लोग 'डोकरा' कहते है. इसी वजह से हर साल डोकरा मेले का आयोजन किया जाता है.

डोकरा मेला
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Published : Oct 2, 2022, 3:16 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

बस्तर: पूरे प्रदेश में जहां आदिवासियों से जुड़े आरक्षण और पेशा कानून को लेकर चर्चा है. दूसरी तरफ आदिवासियों को उनके अधिकारों के लिए जागरुक करने बस्तर के मावलीभाटा गांव के स्थानीय लोगों ने खास पहल की है. यह पहल डोकरा ( बुजुर्ग) मेले की है. इस मेले में आदिवासियों को उनके संवैधानिक अधिकारों के लिए जागुरुक करने का काम खुद आदिवासी कर रहे हैं.

डोकरा मेला

यह भी पढ़ें: रायपुर दशहरा उत्सव में नहीं दिख रहा कोरोना और महंगाई का असर

कंपनी के खिलाफ शुरू हुआ था आंदोलन: आयोजनकर्ता हिरमो वेट्टी ने बताया कि मावलीभाटा में आदिवासियों ने सबसे पहले डाइकेन और मुकुंद आयरन नामक कंपनियों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था. इन उद्योगों के लिए जमीन नहीं दी थी. इससे सटे क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ( 9 मई 2014) अल्ट्रामेगा स्टील प्लांट लगाने की भी घोषणा की थी. जिसकी शुरुआत भी नहीं हो सकी.

इस गांव में सबसे पहले पूर्व कलेक्टर और सामाजिक कार्यकर्ता ब्रह्मदेव शर्मा ( Former Collector and Social Activist Brahmdev Sharma ) ने आदिवासियों को उनकी जमीन और संवैधानिक अधिकारों के लिए जागरूक किया था. जिन्हें गांव के लोग 'डोकरा' कहते है. इसी वजह से इस मेले का नाम डोकरा मेला (Dokra Mela) रखा गया है. सन 1992 से गांव में इस आयोजन की शुरुआत की गई है. धीरे-धीरे लोग और गांव के लोग जुड़ते गए और आदिवासी समाज से जुड़े लोगों ने इसे 'डोकरा मेला' का नाम दिया.

यह भी पढ़ें: बस्तर दशहरे में राजकुमारी चमेली बाबी की स्मृति में जलाते हैं ज्योति कलश, जानें कहानी

बस्तर दशहरा के अवसर होता है तीन दिवसीय मेले का आयोजन: साल 1992 से लगातार बस्तर दशहरा के अवसर पर तीन दिवसीय इस मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें संविधान पर चर्चा के साथ आदिवासियों के अधिकारों को लेकर लोगों को जानकारी दी जाती है. धाकड़ समाज के संभागीय अध्यक्ष तरुण सिंह धाकड़ ने बताया कि 'पूर्व कलेक्टर और आंदोलन के नेतृत्वकर्ता बेहद ही बुजुर्ग थे. इसके बावजूद वे आदिवासियों के हक के लिए आगे आये और उनकी मेहनत की वजह से उन्होंने विजय पाया है. जिसके कारण इसके विजय मेला कहा जाता है. मुख्य रूप से इसे डोकरा (बुजुर्ग) मेला कहा जाता है.

बस्तर: पूरे प्रदेश में जहां आदिवासियों से जुड़े आरक्षण और पेशा कानून को लेकर चर्चा है. दूसरी तरफ आदिवासियों को उनके अधिकारों के लिए जागरुक करने बस्तर के मावलीभाटा गांव के स्थानीय लोगों ने खास पहल की है. यह पहल डोकरा ( बुजुर्ग) मेले की है. इस मेले में आदिवासियों को उनके संवैधानिक अधिकारों के लिए जागुरुक करने का काम खुद आदिवासी कर रहे हैं.

डोकरा मेला

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कंपनी के खिलाफ शुरू हुआ था आंदोलन: आयोजनकर्ता हिरमो वेट्टी ने बताया कि मावलीभाटा में आदिवासियों ने सबसे पहले डाइकेन और मुकुंद आयरन नामक कंपनियों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था. इन उद्योगों के लिए जमीन नहीं दी थी. इससे सटे क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ( 9 मई 2014) अल्ट्रामेगा स्टील प्लांट लगाने की भी घोषणा की थी. जिसकी शुरुआत भी नहीं हो सकी.

इस गांव में सबसे पहले पूर्व कलेक्टर और सामाजिक कार्यकर्ता ब्रह्मदेव शर्मा ( Former Collector and Social Activist Brahmdev Sharma ) ने आदिवासियों को उनकी जमीन और संवैधानिक अधिकारों के लिए जागरूक किया था. जिन्हें गांव के लोग 'डोकरा' कहते है. इसी वजह से इस मेले का नाम डोकरा मेला (Dokra Mela) रखा गया है. सन 1992 से गांव में इस आयोजन की शुरुआत की गई है. धीरे-धीरे लोग और गांव के लोग जुड़ते गए और आदिवासी समाज से जुड़े लोगों ने इसे 'डोकरा मेला' का नाम दिया.

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बस्तर दशहरा के अवसर होता है तीन दिवसीय मेले का आयोजन: साल 1992 से लगातार बस्तर दशहरा के अवसर पर तीन दिवसीय इस मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें संविधान पर चर्चा के साथ आदिवासियों के अधिकारों को लेकर लोगों को जानकारी दी जाती है. धाकड़ समाज के संभागीय अध्यक्ष तरुण सिंह धाकड़ ने बताया कि 'पूर्व कलेक्टर और आंदोलन के नेतृत्वकर्ता बेहद ही बुजुर्ग थे. इसके बावजूद वे आदिवासियों के हक के लिए आगे आये और उनकी मेहनत की वजह से उन्होंने विजय पाया है. जिसके कारण इसके विजय मेला कहा जाता है. मुख्य रूप से इसे डोकरा (बुजुर्ग) मेला कहा जाता है.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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