बलौदाबाजार: जहां पूरा देश होली की खुशियां रंग-गुलाल लगाकर मना रहा है तो, वहीं कसडोल में मध्यप्रदेश के सागर जिले से आया एक ऐसा विशेष समुदाय है, जिनका जीवन आज भी बेरंग है. इस समुदाय के लोग अपनी रीति रिवाज और मजबूरियों के चलते तीज त्यौहारों से दूर हैं. हम बात कर रहे हैं उन राजस्थानी लोहारों की जिनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं हैं और ये राजस्थानी लोहार परिवार खानाबदोश जीवन जीने को मजबूर हैं.
कसडोल के नगर भवन मैदान में करीब दस राजस्थानी लोहार परिवार पिछले दो महीनों से डेरा जमाए हुए हैं. ये राजस्थानी लोहार परिवार सड़क के किनारे पूरे दिन लोहे को गलाकर औजार बनाते हैं और उन औजारों को बेचकर अपना जीवन चला रहे हैं. लोहे का औजार बनाने के लिए घर की महिलाएं और बच्चे भी पुरुषों के समान ही बराबर भागीदारी निभाते हैं. घर की महिलाएं जहां चूल्हा चौका के अलावा पुरुषों के साथ मिलकर बराबर घन चलाती है और जब लोहे का औजार बन जाता है, तो उसे सड़क किनारे बैठकर बेचा जाता है.
बच्चे भी बनाते हैं लोहे के औजार
ETV भारत ने जब सड़क के किनारे लोहे का औजार बना रहे लोगों से बात किया तो इस लोहार परिवार के एक युवक ने बताया कि ये सभी मध्यप्रदेश के सागर जिले से हैं और इनकी खेती की जमीन नहीं है. जिसकी वजह से ये सभी बरसात के बाद अपना गांव छोड़कर देश के अलग अलग हिस्सों में लोहे का औजार बेचने निकल जाते हैं. इनके पास केवल एक यही व्यवसाय है. इनके बच्चे भी पढ़ाई-लिखाई नहीं करते और बचपन से ही अपने परिजनों के साथ मिलकर लोहे का काम करना सीखते हैं.
सरकारी योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ
गौरतलब है कि हमारा देश आज तरक्की की राह में आगे तो बढ़ रहा है, लेकिन अनेकता में एकता वाले इस देश में अब भी ऐसे कुछ समुदाय हैं, जिनके लिए विशेष पहल करने की आवश्यकता है. इन लोगों का कहना है देश मे जनहित की अलग-अलग तो कई सारी योजनाएं संचालित हो रही है, लेकिन किसी भी योजना का लाभ इन लोगों को नहीं मिल पा रहा है. यही काम इनके पूर्वज भी करते थे और यही काम इनके बच्चे भी करेंगे. अब देखना होगा कि इनके जीवन स्तर को बेहतर करने के लिए सरकार कोई योजना लाती है या फिर इनका जीवन इसी तरह चलता रहेगा.