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10 दिसंबर को वीर नारायण सिंह का शहादत दिवस, जानिए उनके जीवन से जुड़े रोचक तथ्य

10 दिसंबर 1857 को ब्रिटिश सरकार ने छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह को सरेआम तोप से उड़ा दिया था. उनकी शहादत स्थल पर जय स्तंभ नाम का स्मारक बनवाया गया है. वीर नारायण सिंह के शहादत दिवस पर ETV भारत छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कहे जाने वाले वीर नारायण सिंह से जुड़े कुछ रोचक तथ्य आपको बता रहा है.

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Published : Dec 9, 2020, 4:05 PM IST

Updated : Dec 9, 2020, 9:51 PM IST

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शहीद वीर नारायण सिंह को नमन

बलौदाबाजार: सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों के सालों के संघर्ष और बलिदान के बाद आज हम स्वतंत्र हैं. देश की आजादी के लिए अपनी जान देने वालों में एक नाम छत्तीसगढ़ के शहीद वीर नारायण सिंह का भी आता है. वीर नारायण सिंह ने अंग्रेजों से हमारी आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी. उनके बारे में एक किस्सा जो आज भी लोग याद करते हैं. उन्होंने जमींदारों से अनाज लूटकर गरीबों में बंटवा दिया था. 500 आदिवासियों की फौज बना कर अंग्रेजों की सेना से भिड़ गए थे. वीर नारायण सिंह के शहादत दिवस पर ETV भारत छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कहे जाने वाले वीर नारायण सिंह से जुड़े कुछ रोचक तथ्य आज आपको बता रहा है.

जमींदार परिवार में जन्म लेने वाले वीर नारायण चाहते तो अंग्रेजों के राज में आराम की जिंदगी गुजार सकते थे. लेकिन उन्होंने आजादी को चुना और लड़ते-लड़ते शहीद हो गए. उनकी शहादत स्थल पर जय स्तंभ नाम का स्मारक बनवाया गया.

वीर नारायण सिंह की यादें

पढ़ें: बस्तर: 8 महीने में 300 नवजातों ने तोड़ा दम, कुपोषण और मांओं की कमजोर सेहत बड़ी वजह

देशभक्ति और विद्रोह विरासत में मिली

वीर नारायण सिंह का जन्म सन् 1795 में सोनाखान के जमींदार रामसाय के घर में हुआ था. वे बिंझवार आदिवासी समुदाय के थे. उनके पिता ने 1818-19 के दौरान अंग्रेजों और भोंसले राजाओं के विरुद्ध तलवार उठाई थी. लेकिन कैप्टन मैक्सन ने विद्रोह को दबा दिया. इसके बाद भी बिंझवार आदिवासियों के सामर्थ्य और संगठित शक्ति के कारण जमींदार रामसाय का सोनाखान क्षेत्र में दबदबा बना रहा. बाद में अंग्रेजों ने उनसे संधि कर ली थी. देशभक्ति और निडरता वीर नारायण सिंह को पिता से विरासत में मिली थी. पिता की मृत्यु के बाद 1830 में वे सोनाखान के जमींदार बने. 1854 में अंग्रेजों ने नए ढंग से टकोली लागू की, इसे जनविरोधी बताते हुए वीर नारायण सिंह ने इसका विरोध किया. जिसके बाद रायपुर के तात्कालीन डिप्टी कमिश्नर इलियट उनके घोर विरोधी हो गए.

पढ़ें: SPECIAL: कभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अड्डा हुआ करता था संभाग आयुक्त कार्यालय

गरीबों के लिए अनाज की लूट

1856 में छत्तीसगढ़ में भयानक सूखा पड़ा था. अकाल और अंग्रेजों के लागू किए गए कानून के कारण लोग भुखमरी का शिकार हो रहे थे. कसडोल के व्यापारी माखन का गोदाम अन्न से भरा था. वीर नारायण ने उससे अनाज गरीबों में बांटने का आग्रह किया. लेकिन वह तैयार नहीं हुआ. इसके बाद उन्होंने माखन के गोदाम के ताले तुड़वा दिए और अनाज निकाल ग्रामीणों में बंटवा दिया. उनके इस कदम से नाराज ब्रिटिश शासन ने उन्हें 24 अक्टूबर 1856 में संबलपुर से गिरफ्तार कर रायपुर जेल में बंद कर दिया. 1857 में जब स्वतंत्रता की लड़ाई तेज हुई तो प्रांत के लोगों ने जेल में बंद वीर नारायण को ही अपना नेता मान लिया. उन्होंने अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचारों के खिलाफ बगावत करने की ठान ली.

लोगों पर हो रहे अत्याचार रोकने के लिए किया समपर्ण

अगस्त 1857 में कुछ सैनिकों और समर्थकों की मदद से वीर नारायण जेल से भाग निकले. और अपने गांव सोनाखान पहुंच गए. वहां उन्होंने 500 बंदूकधारियों की सेना बनाई और अंग्रेजी सैनिकों से मुठभेड़ की. इस बगावत से बौखलाई अंग्रेज सरकार ने जनता पर अत्याचार बढ़ा दिया. अपनी जनता को बचाने के लिए उन्होंने समर्पण कर दिया. जिसके बाद उन्हें मौत की सजा सुनाई गई. 10 दिसंबर 1857 को ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सरेआम तोप से उड़ा दिया.

पढ़ें: कोरबा: नहीं थम रहा गजराज का उत्पात, 24 घंटे में हाथियों ने 2 लोगों की ली जान

आज भी मौजूद है वीर नारायण सिंह की निशानी

वीर नारायण सिंह अंग्रेजों से लड़ने के लिए तलवार, भाला, गदा और कटार का उपयोग करते थे जो आज भी सोनाखान से 7 किलोमीटर दूर घने जंगलों के बीच एक गुफा में सुरक्षित रखा हुआ है. गुफा में 200 साल पुरानी एक भगवान की मूर्ति भी है. जिसकी पूजा वीर नारायण सिंह और उनके पूर्वज करते थे. मान्यता है कि आज भी शहीद के कुलदेवता उनके हथियारों की रक्षा करते हैं. जो भी उनके हथियारों को चुरा कर या फिर संग्रहालय में प्रदर्शनी के लिए लाया जाता है. वे सभी हथियार वापस उसी जगह पहुंच जाता है.

9 और 10 दिसंबर को प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है वीर मड़ई मेला

शहीद वीर नारायण सिंह के शहादत दिवस पर हर साल दो दिन के मड़ई मेले का आयोजन होता है. जिसे देखने हजारों की संख्या में लोग और श्रद्धालु आते हैं. हर साल की तरह इस साल भी आयोजन होगा. शहादत दिवस पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे. जिसकी तैयारी लगभग पूरी कर ली गई है. कोरोना महामारी को देखते हुए जिला प्रशासन के अधिकारी और कर्मचारियों के लिए बड़ी चुनौती है. जिसके लिए पिछले एक हफ्ते से विभाग के कर्मचारी व्यवस्था में जुटे हैं.

पढ़ें: बलौदाबाजार: 10 दिसंबर को CM भूपेश बघेल वीर मड़ई मेला में होंगे शामिल, तैयारियों में जुटी प्रशासन की टीम

वीर नारायण सिंह के वंशजों की स्थिति खराब

वीर नारायण सिंह के वंशज राजेंद्र सिंह दीवान ने बताया कि एक तरफ शहीद वीर नारायण सिंह को छत्तीसगढ़ का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कहा जाता है. लेकिन आज तक प्रमाणित दस्तावेज के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है. आज तक राजपत्र में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में वीर नारायण सिंह का उल्लेख नहीं मिलता है. आज शहीद के वंशजों कि स्थिति इतनी खराब है कि उनको अपने जीवन यापन के लिए दूसरों के घर में मजदूरी कर पेट पालना पड़ रहा है. सरकार की ओर से दी जाने वाली पेंशन भी उनकों नही मिल पा रही है. वंशज बताते हैं कि मौजूदा कांग्रेस सरकार को जानकारी दी गई है. जो सम्मान वीर नारायण सिंह को मिलनी चाहिए और उनके वंशज को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए थी. वो अभी तक नही मिल पाई है. ऐसे में उन्हें मदद की जरूरत है. बता दें शहीद वीर नारायण सिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी 130वीं बरसी पर 1987 में सरकार ने 60 पैसे का स्टाम्प जारी किया था. जिसमें वीर नारायण सिंह को तोप के आगे बंधा दिखाया गया.

बलौदाबाजार: सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों के सालों के संघर्ष और बलिदान के बाद आज हम स्वतंत्र हैं. देश की आजादी के लिए अपनी जान देने वालों में एक नाम छत्तीसगढ़ के शहीद वीर नारायण सिंह का भी आता है. वीर नारायण सिंह ने अंग्रेजों से हमारी आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी. उनके बारे में एक किस्सा जो आज भी लोग याद करते हैं. उन्होंने जमींदारों से अनाज लूटकर गरीबों में बंटवा दिया था. 500 आदिवासियों की फौज बना कर अंग्रेजों की सेना से भिड़ गए थे. वीर नारायण सिंह के शहादत दिवस पर ETV भारत छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कहे जाने वाले वीर नारायण सिंह से जुड़े कुछ रोचक तथ्य आज आपको बता रहा है.

जमींदार परिवार में जन्म लेने वाले वीर नारायण चाहते तो अंग्रेजों के राज में आराम की जिंदगी गुजार सकते थे. लेकिन उन्होंने आजादी को चुना और लड़ते-लड़ते शहीद हो गए. उनकी शहादत स्थल पर जय स्तंभ नाम का स्मारक बनवाया गया.

वीर नारायण सिंह की यादें

पढ़ें: बस्तर: 8 महीने में 300 नवजातों ने तोड़ा दम, कुपोषण और मांओं की कमजोर सेहत बड़ी वजह

देशभक्ति और विद्रोह विरासत में मिली

वीर नारायण सिंह का जन्म सन् 1795 में सोनाखान के जमींदार रामसाय के घर में हुआ था. वे बिंझवार आदिवासी समुदाय के थे. उनके पिता ने 1818-19 के दौरान अंग्रेजों और भोंसले राजाओं के विरुद्ध तलवार उठाई थी. लेकिन कैप्टन मैक्सन ने विद्रोह को दबा दिया. इसके बाद भी बिंझवार आदिवासियों के सामर्थ्य और संगठित शक्ति के कारण जमींदार रामसाय का सोनाखान क्षेत्र में दबदबा बना रहा. बाद में अंग्रेजों ने उनसे संधि कर ली थी. देशभक्ति और निडरता वीर नारायण सिंह को पिता से विरासत में मिली थी. पिता की मृत्यु के बाद 1830 में वे सोनाखान के जमींदार बने. 1854 में अंग्रेजों ने नए ढंग से टकोली लागू की, इसे जनविरोधी बताते हुए वीर नारायण सिंह ने इसका विरोध किया. जिसके बाद रायपुर के तात्कालीन डिप्टी कमिश्नर इलियट उनके घोर विरोधी हो गए.

पढ़ें: SPECIAL: कभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अड्डा हुआ करता था संभाग आयुक्त कार्यालय

गरीबों के लिए अनाज की लूट

1856 में छत्तीसगढ़ में भयानक सूखा पड़ा था. अकाल और अंग्रेजों के लागू किए गए कानून के कारण लोग भुखमरी का शिकार हो रहे थे. कसडोल के व्यापारी माखन का गोदाम अन्न से भरा था. वीर नारायण ने उससे अनाज गरीबों में बांटने का आग्रह किया. लेकिन वह तैयार नहीं हुआ. इसके बाद उन्होंने माखन के गोदाम के ताले तुड़वा दिए और अनाज निकाल ग्रामीणों में बंटवा दिया. उनके इस कदम से नाराज ब्रिटिश शासन ने उन्हें 24 अक्टूबर 1856 में संबलपुर से गिरफ्तार कर रायपुर जेल में बंद कर दिया. 1857 में जब स्वतंत्रता की लड़ाई तेज हुई तो प्रांत के लोगों ने जेल में बंद वीर नारायण को ही अपना नेता मान लिया. उन्होंने अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचारों के खिलाफ बगावत करने की ठान ली.

लोगों पर हो रहे अत्याचार रोकने के लिए किया समपर्ण

अगस्त 1857 में कुछ सैनिकों और समर्थकों की मदद से वीर नारायण जेल से भाग निकले. और अपने गांव सोनाखान पहुंच गए. वहां उन्होंने 500 बंदूकधारियों की सेना बनाई और अंग्रेजी सैनिकों से मुठभेड़ की. इस बगावत से बौखलाई अंग्रेज सरकार ने जनता पर अत्याचार बढ़ा दिया. अपनी जनता को बचाने के लिए उन्होंने समर्पण कर दिया. जिसके बाद उन्हें मौत की सजा सुनाई गई. 10 दिसंबर 1857 को ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सरेआम तोप से उड़ा दिया.

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आज भी मौजूद है वीर नारायण सिंह की निशानी

वीर नारायण सिंह अंग्रेजों से लड़ने के लिए तलवार, भाला, गदा और कटार का उपयोग करते थे जो आज भी सोनाखान से 7 किलोमीटर दूर घने जंगलों के बीच एक गुफा में सुरक्षित रखा हुआ है. गुफा में 200 साल पुरानी एक भगवान की मूर्ति भी है. जिसकी पूजा वीर नारायण सिंह और उनके पूर्वज करते थे. मान्यता है कि आज भी शहीद के कुलदेवता उनके हथियारों की रक्षा करते हैं. जो भी उनके हथियारों को चुरा कर या फिर संग्रहालय में प्रदर्शनी के लिए लाया जाता है. वे सभी हथियार वापस उसी जगह पहुंच जाता है.

9 और 10 दिसंबर को प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है वीर मड़ई मेला

शहीद वीर नारायण सिंह के शहादत दिवस पर हर साल दो दिन के मड़ई मेले का आयोजन होता है. जिसे देखने हजारों की संख्या में लोग और श्रद्धालु आते हैं. हर साल की तरह इस साल भी आयोजन होगा. शहादत दिवस पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे. जिसकी तैयारी लगभग पूरी कर ली गई है. कोरोना महामारी को देखते हुए जिला प्रशासन के अधिकारी और कर्मचारियों के लिए बड़ी चुनौती है. जिसके लिए पिछले एक हफ्ते से विभाग के कर्मचारी व्यवस्था में जुटे हैं.

पढ़ें: बलौदाबाजार: 10 दिसंबर को CM भूपेश बघेल वीर मड़ई मेला में होंगे शामिल, तैयारियों में जुटी प्रशासन की टीम

वीर नारायण सिंह के वंशजों की स्थिति खराब

वीर नारायण सिंह के वंशज राजेंद्र सिंह दीवान ने बताया कि एक तरफ शहीद वीर नारायण सिंह को छत्तीसगढ़ का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कहा जाता है. लेकिन आज तक प्रमाणित दस्तावेज के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है. आज तक राजपत्र में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में वीर नारायण सिंह का उल्लेख नहीं मिलता है. आज शहीद के वंशजों कि स्थिति इतनी खराब है कि उनको अपने जीवन यापन के लिए दूसरों के घर में मजदूरी कर पेट पालना पड़ रहा है. सरकार की ओर से दी जाने वाली पेंशन भी उनकों नही मिल पा रही है. वंशज बताते हैं कि मौजूदा कांग्रेस सरकार को जानकारी दी गई है. जो सम्मान वीर नारायण सिंह को मिलनी चाहिए और उनके वंशज को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए थी. वो अभी तक नही मिल पाई है. ऐसे में उन्हें मदद की जरूरत है. बता दें शहीद वीर नारायण सिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी 130वीं बरसी पर 1987 में सरकार ने 60 पैसे का स्टाम्प जारी किया था. जिसमें वीर नारायण सिंह को तोप के आगे बंधा दिखाया गया.

Last Updated : Dec 9, 2020, 9:51 PM IST
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