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सवरा डेरा में सुविधाओं की कमी, ठंड में ठिठुरने को मजबूर 600 लोग - आदिवासी परिवार को मदद की दरकार

बलौदा बाजार जिला मुख्यालय से 4 किलोमीटर दूर कुकुरदी ग्राम पंचायत के पास आदिवासी समुदाय के करीब 600 लोग शासन-प्रशासन की उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं, यहां शासन-प्रशासन ने व्यवस्था किए जाने की बात कही, लेकिन अब तक किसी तरह की कोई व्यवस्था नहीं की गई है.

aadiwasi family needs help
ठंड में ठिठुरते आदिवासी परिवार
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Published : Jan 4, 2020, 3:16 PM IST

Updated : Jan 4, 2020, 7:46 PM IST

बलौदा बाजार: जिला मुख्यालय से 4 किलोमीटर दूर कुकुरदी ग्राम पंचायत के पास सवरा आदिवासी समुदाय के करीब 600 लोग रहते हैं, शासन-प्रशासन ने यहां मूलभूत सुविधा और अलाव के व्यवस्था की बात कही थी, लेकिन यहां किसी तरह की कोई व्यवस्था नहीं की गई है.

ठंड में ठिठुर रहा आदिवासी परिवार


आदिवासी परिवार पहले नगर पालिका के वार्ड क्रमांक 2 में रहते थे. लेकिन शासन ने इन्हें सवरा डेरा में भेज दिया, और व्यवस्था का भी भरोसा दिलाया,लेकिन सवरा डेरा में जब ETV भारत की टीम पहुंची तो जिला प्रशासन के दावे की पोल खुल गई. वहां न तो अलाव की व्यवस्था दिखी और न ही बारिश से बचने के लिए कोई व्यवस्था.

aadiwasi family needs help
अध्ययन शाला में लगा ताला

शिक्षा से दूर नौनिहाल
लोगों की मानें तो शासन-प्रशासन की ओर से उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही है,यहां लोग ठंड में ठिठुरने को मजबूर है, वहीं लोगों ने बताया कि 'कुछ समय पहले यहां बच्चों को पढ़ाने की व्यवस्था थी लेकिन अब वो भी बंद कर दिया गया है, साथ ही यहां इलाज के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं है'.

मतदान सूची से भी कटा नाम
लोगों का कहना है कि 'पहले नगरपालिका में उनका नाम मतदान के लिए आता था लेकिन इस बार उनका नाम मतदान के लिए कट गया है. अब उन्हें यह भी मालूम नहीं है कि वह कहां के निवासी हैं'.

aadiwasi family needs help
ठंड में ठिठुरते आदिवासी परिवार

अब तो इनकी सुन लो सरकार
आदिवासी परिवार को सवरा डेरा में बसा दिया गया, लेकिन कोई भी जिम्मेदार अधिकारी इनकी सुध लेने तक नहीं आते हैं.बिना व्यवस्था और सुविधा के तंगहाली और ठंड में ठिठुरते मजबूर आदिवासी सरकार से मदद की आस में है.

बलौदा बाजार: जिला मुख्यालय से 4 किलोमीटर दूर कुकुरदी ग्राम पंचायत के पास सवरा आदिवासी समुदाय के करीब 600 लोग रहते हैं, शासन-प्रशासन ने यहां मूलभूत सुविधा और अलाव के व्यवस्था की बात कही थी, लेकिन यहां किसी तरह की कोई व्यवस्था नहीं की गई है.

ठंड में ठिठुर रहा आदिवासी परिवार


आदिवासी परिवार पहले नगर पालिका के वार्ड क्रमांक 2 में रहते थे. लेकिन शासन ने इन्हें सवरा डेरा में भेज दिया, और व्यवस्था का भी भरोसा दिलाया,लेकिन सवरा डेरा में जब ETV भारत की टीम पहुंची तो जिला प्रशासन के दावे की पोल खुल गई. वहां न तो अलाव की व्यवस्था दिखी और न ही बारिश से बचने के लिए कोई व्यवस्था.

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अध्ययन शाला में लगा ताला

शिक्षा से दूर नौनिहाल
लोगों की मानें तो शासन-प्रशासन की ओर से उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही है,यहां लोग ठंड में ठिठुरने को मजबूर है, वहीं लोगों ने बताया कि 'कुछ समय पहले यहां बच्चों को पढ़ाने की व्यवस्था थी लेकिन अब वो भी बंद कर दिया गया है, साथ ही यहां इलाज के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं है'.

मतदान सूची से भी कटा नाम
लोगों का कहना है कि 'पहले नगरपालिका में उनका नाम मतदान के लिए आता था लेकिन इस बार उनका नाम मतदान के लिए कट गया है. अब उन्हें यह भी मालूम नहीं है कि वह कहां के निवासी हैं'.

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ठंड में ठिठुरते आदिवासी परिवार

अब तो इनकी सुन लो सरकार
आदिवासी परिवार को सवरा डेरा में बसा दिया गया, लेकिन कोई भी जिम्मेदार अधिकारी इनकी सुध लेने तक नहीं आते हैं.बिना व्यवस्था और सुविधा के तंगहाली और ठंड में ठिठुरते मजबूर आदिवासी सरकार से मदद की आस में है.

Intro:बलौदा बाजार - जिला मुख्यालय से 4 किलोमीटर दूर कुकुरदी ग्राम पंचायत के पास सवरा आदिवासी समुदाय के करीब 600 लोग रहते हैं । जो कभी बलौदा बाजार नगर पालिका के वार्ड क्रमांक 2 में रहते थे। बलौदा बाजार जिले में इन दिनों शीतलहर के साथ बारिश भी हो रही है जिस को ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन ने अलाव जलाने और रैन बसेरों में प्राप्त साधन होने की बात कही है लेकिन यहां शासन का दावा फेल नजर आ रहा है ।


Body:जिला मुख्यालय से महज 4 किलोमीटर दूरी पर बसे सवरा डेरा में जब ईटीवी भारत की टीम पहुंची तो जिला प्रशासन के दावे की पोल खुल गई. वहां तो ना ही अलाव की व्यवस्था दिखी और ना ही बारिश से बचने के लिए कोई व्यवस्था. सवरा डेरा में 600 आबादी तक के लोग रहते हैं जिसमें पुरुष, महिला सहित मासूम बच्चे भी शामिल है। यहां रहने वाले लोगों की माने तो शासन प्रशासन की ओर से उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही है ना बच्चों के पढ़ने के लिए स्कूल है और ना ही इलाज के लिए कोई डॉक्टर। यहां के लोग शीतलहर में कांपने को मजबूर है. यहां रहने वाले लोगों ने बताया कि पहले नगरपालिका में उनका नाम मतदान के लिए आता था लेकिन इस बार उनका नाम मतदान के लिए कट गया है. अब उन्हें यह भी मालूम नहीं है कि वह कहां के निवासी हैं. इस बात की अवगत कराने के लिए उनके पास कोई जिम्मेदार अधिकारी आज तक नहीं गया. बच्चों के लिए डेरा के सामने एक घुमंतू शाला खोला गया था जहां उनके बच्चे पढ़ने जाते थे लेकिन अब वह स्कूल भी बंद कर दिया गया है. बंद करने का कारण भी किसी ग्रामीणों को पता नहीं है.


Conclusion:कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि शासन प्रशासन इन मजबूर आदिवासी परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हट रहा है. अब खबर दिखाए जाने के बाद देखना होगा कि शासन प्रशासन इस ओर कब ध्यान देती है और इन मजबूर ग्रामीणों की सहायता कब कर पाती है.

बाइट01 - कोइली बाई - ग्रमीण

बाइट02- पुनम - मजबूर छात्रा

बाइट03- मोहनी बाई-ग्रमीण

बाइट04 - दानीराम- ग्रमीण

पीटूसी- करन साहू- संवाददाता बलौदाबाजार
Last Updated : Jan 4, 2020, 7:46 PM IST
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