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Balod: आदिवासी सपेरों की बस्ती पर ग्रामीणों का हमला, तहसीलदार ने पीड़ितों से की मुलाकात

बालोद में आदिवासी सपेरों की बस्ती को उजाड़ने का मामला सामने आया है. बालोद के गांव केरी जुंगेरा में रह रहे सपेरों के घरों को तोड़ने का आरोप गांव वालों पर लगा है. घटना की शिकायत आदिवासी सपेरों ने कलेक्टर जनदर्शन में जाकर भी की है.

Tehsildar gave advice to villagers
आदिवासी सपेरों की बस्ती पर हमला
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Published : Apr 21, 2023, 11:40 PM IST

आदिवासी सपेरों की बस्ती पर हमला

बालोद: पूरा मामला गांव केरी जुंगेरा का है. जहां बीते लगभग 8 से 10 साल से आदिवासी सपेरे निवास कर रहे हैं. पिछले दिनों अंचल में मूसलाधार बारिश एवं ओले गिरने के कारण इन परिवारों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. आनन-फानन में इन्होंने कच्चे छप्पर बनाएं और जैसे-तैसे गुजारा किया.

कलेक्टर जनदर्शन में की शिकायत: पीड़ित परिवारों ने बताया कि "हम लोग यहां पर आज से 10 वर्ष पहले आकर बसे हुए हैं. ग्रामीणों ने ही रजामंदी दी थी, परंतु सोमवार अचानक गांव की महिलाएं एवं पुरुष आए और घरों को तोड़ने लगे. इसके बाद हमने मंगलवार को कलेक्टर जनदर्शन में जाकर भी शिकायत दर्ज कराई थी."



तहसीलदार मौके पर जांच पहुंचे: डौंडीलोहारा अनुविभागीय अधिकारी राजस्व मनोज मरकाम ने इस घटना की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि "तहसीलदार मौके पर जांच के लिए गए हुए थे. यहां पर जांच रिपोर्ट बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. ग्रामीणों को समझाइश दी गई है है कि, जो छप्पर उखाड़े गए हैं. घरों को जो नुकसान पहुंचाया गया है. उन सभी की भरपाई हो. उसे सुधारा जाए. ताकि आपसी सामंजस्य बना रहे."

सरपंच ने मामले से झाड़ा पल्ला: पूरे मामले पर जब हमने ग्राम पंचायत चिखली के सरपंच आशा देवी केकाम से बात की, तो सरपंच मामले से पल्ला झाड़ती नजर आयीं. जबकि यह क्षेत्र उनके पंचायत क्षेत्र में ही आता है. सरपंच ने कहा कि "मैं इस संदर्भ में कुछ नहीं जानती. पूरा मामला ग्रामीणों से जुड़ा हुआ है, ग्रामीणों के विषय में मैं कुछ नहीं कहना चाहती."

यह भी पढ़ें: World Earth Day: बालोद से विश्व पृथ्वी दिवस मनाने की शुरुआत, आदिवासी समाज ने भरी हुंकार


बर्तन फेंके, राशन पानी सब बंद: सपेरे की बस्ती से केंवरा बाई ने बताया कि "हम लोग यहां 10 साल से निवास कर रहे हैं, लेकिन अब तक कोई परेशानी नहीं आई. लेकिन अचानक क्या हुआ कि, ग्रामीण इतना गुस्सा हो गए. हम 17 लोग पहले घूम घूम कर जीवन यापन करते थे. कुछ लोगों ने हमें यहां रहने की सलाह दी, तब से हम यहीं पर रह रहे हैं. किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. ग्रामीणों ने दुकान से सामान देने के साथ ही पानी देना भी बंद कर दिया है. जीते जी हम नरक जैसा जीवन जीने को मजबूर हैं."

बारिश से हुई समस्या: सपेरों ने बताया कि "गुरुवार रात को तेज गरज चमक के साथ बारिश हुई. साथ ही ओले भी गिरे. जिसके कारण टूटे हुए घरों में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. आधी रात को हमने जैसे तैसे कच्चे छप्पर बनाएं और रात गुजारी. आगे यदि कोई विवाद ना हो, तो हम अपने छप्पर पक्के कर लेते. परंतु अब तक तो कोई ठोस जानकारी हमारे पास नहीं आई है कि, हमें यहां रहना है कि यहां से जाना है." बहरहाल मामला चाहे जो भी हो. लेकिन किसी को नियम विरुद्ध घरों में तोड़फोड़ करने का अधिकार नहीं है."

आदिवासी सपेरों की बस्ती पर हमला

बालोद: पूरा मामला गांव केरी जुंगेरा का है. जहां बीते लगभग 8 से 10 साल से आदिवासी सपेरे निवास कर रहे हैं. पिछले दिनों अंचल में मूसलाधार बारिश एवं ओले गिरने के कारण इन परिवारों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. आनन-फानन में इन्होंने कच्चे छप्पर बनाएं और जैसे-तैसे गुजारा किया.

कलेक्टर जनदर्शन में की शिकायत: पीड़ित परिवारों ने बताया कि "हम लोग यहां पर आज से 10 वर्ष पहले आकर बसे हुए हैं. ग्रामीणों ने ही रजामंदी दी थी, परंतु सोमवार अचानक गांव की महिलाएं एवं पुरुष आए और घरों को तोड़ने लगे. इसके बाद हमने मंगलवार को कलेक्टर जनदर्शन में जाकर भी शिकायत दर्ज कराई थी."



तहसीलदार मौके पर जांच पहुंचे: डौंडीलोहारा अनुविभागीय अधिकारी राजस्व मनोज मरकाम ने इस घटना की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि "तहसीलदार मौके पर जांच के लिए गए हुए थे. यहां पर जांच रिपोर्ट बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. ग्रामीणों को समझाइश दी गई है है कि, जो छप्पर उखाड़े गए हैं. घरों को जो नुकसान पहुंचाया गया है. उन सभी की भरपाई हो. उसे सुधारा जाए. ताकि आपसी सामंजस्य बना रहे."

सरपंच ने मामले से झाड़ा पल्ला: पूरे मामले पर जब हमने ग्राम पंचायत चिखली के सरपंच आशा देवी केकाम से बात की, तो सरपंच मामले से पल्ला झाड़ती नजर आयीं. जबकि यह क्षेत्र उनके पंचायत क्षेत्र में ही आता है. सरपंच ने कहा कि "मैं इस संदर्भ में कुछ नहीं जानती. पूरा मामला ग्रामीणों से जुड़ा हुआ है, ग्रामीणों के विषय में मैं कुछ नहीं कहना चाहती."

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बर्तन फेंके, राशन पानी सब बंद: सपेरे की बस्ती से केंवरा बाई ने बताया कि "हम लोग यहां 10 साल से निवास कर रहे हैं, लेकिन अब तक कोई परेशानी नहीं आई. लेकिन अचानक क्या हुआ कि, ग्रामीण इतना गुस्सा हो गए. हम 17 लोग पहले घूम घूम कर जीवन यापन करते थे. कुछ लोगों ने हमें यहां रहने की सलाह दी, तब से हम यहीं पर रह रहे हैं. किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. ग्रामीणों ने दुकान से सामान देने के साथ ही पानी देना भी बंद कर दिया है. जीते जी हम नरक जैसा जीवन जीने को मजबूर हैं."

बारिश से हुई समस्या: सपेरों ने बताया कि "गुरुवार रात को तेज गरज चमक के साथ बारिश हुई. साथ ही ओले भी गिरे. जिसके कारण टूटे हुए घरों में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. आधी रात को हमने जैसे तैसे कच्चे छप्पर बनाएं और रात गुजारी. आगे यदि कोई विवाद ना हो, तो हम अपने छप्पर पक्के कर लेते. परंतु अब तक तो कोई ठोस जानकारी हमारे पास नहीं आई है कि, हमें यहां रहना है कि यहां से जाना है." बहरहाल मामला चाहे जो भी हो. लेकिन किसी को नियम विरुद्ध घरों में तोड़फोड़ करने का अधिकार नहीं है."

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