बालोद: देश के इतिहास को खोलकर देखा जाए तो कुछ ही ऐसे मजदूर नेता हुए हैं, जिनपर मजदूरों का समर्पण शत प्रतिशत रहा है. इन मजदूर नेताओं में एक ऐसा ही नाम शहीद शंकर गुहा नियोगी का है, जिन्होंने मजदूरों के हक को लेकर एक ऐसी लड़ाई की शुरुआत की. जिसमें हर वर्ग शामिल हुआ. शुरुआत से लेकर उनका रुझान मजदूरों की दयनीय स्थिति को सुधारने के लिए रहा. धीरे-धीरे मजदूरों के दिल में शंकर गुहा नियोगी ने एक अमिट जगह बनाई और निरंतर लड़ते रहे. लोगों का कहना है कि उनकी यह लड़ाई रसूखदारों, व्यापारियों और उच्च वर्ग के लोगों को खलने लगी. शायद यहीं कारण है कि एक दिन उनकी षड्यंत्र के तहत गोली मारकर हत्या कर दी गई.
बता दें, शहीद कॉमरेड शंकर गुहा नियोगी का आज 29 वां शहादत दिवस है, जिसे लेकर छत्तीसगढ़ जन मुक्ति मोर्चा ने तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया है. जिसके दूसरे दिन यानी 28 सितंबर को शहीद भगत सिंह के जन्मदिन पर शंकर नियोगी द्वारा बनाए गए मजदूर और किसान के एकता के प्रतीक लाल-हरा झंडे के सम्मान में फ्लैग मार्च निकाला गया. यह फ्लैग मार्च छत्तीसगढ़ जन मुक्ति मोर्चा द्वारा दल्ली राजहरा में किया गया.
1977 में छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ का गठन
जानकारी के मुताबिक शंकर गुहा नियोगी ने जब मजदूरों के हक को लेकर लड़ाई की शुरुआत की थी तो उस समय बीएसपी की दल्ली और राजहरा स्थित लौह अयस्क खदानों में ठेके पर काम करने वाले मजदूरों की बहुत बुरी दशा थी. 14-16 घंटे काम करने के बदले उन्हें महज दो रुपये मजदूरी मिलती थी. उस समय उनकी कोई ट्रेड यूनियन भी नहीं थी. शंकर ने इन मजदूरों को साथ लेकर 1977 में छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ (CMSS) का गठन किया और इसके बैनर तले मजदूरों के कल्याण के लिए कई गतिविधियां की.
अनिश्चितकालीन हड़ताल पर गए थे हजारों श्रमिक
छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ तब देशभर में चर्चा का विषय बना, जब 1977 में दल्ली-राजहरा के हजारों मजदूरों ने शंकर नियोगी के नेतृत्व में अनिश्चितकालीन हड़ताल कर दी. यह हड़ताल ठेके पर काम करने वाले मजदूरों की देश में सबसे बड़ी हड़ताल थी. इसका असर इतना हुआ कि संयंत्र प्रबंधन को मजदूरों की सभी मांगें माननी पड़ी थी. बताया जाता है कि दल्ली राजहरा माइंस को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले नियोगी ने लोहे की खदान में मजदूर के रूप में काम भी किया था. वहीं उस समय नियोगी ने छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के रूप में एक बड़ा श्रमिक संगठन भी बनाया था. जानकारी के मुताबिक वे छत्तीसगढ़ की जमीनी हकीकत से वाकिफ थे, लिहाजा एक ओर तो वे औद्योगिक और खदान मजदूरों की लड़ाई लड़ रहे थे, तो दूसरी ओर उद्योगों और खदानों के कारण अपनी जमीन से बेदखल हो रहे किसानों के संघर्ष में साथ थे.
जानिए कौन थे नियोगी
श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी का जन्म 19 फरवरी सन 1943 को पश्चिम बंगाल के आसनसोल जिले में एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था. उनकी स्कूली शिक्षा कलकत्ता और जलपाईगुड़ी में हुई थी. छात्र जीवन से ही उनका झुकाव वामपंथी विचारधारा की ओर हुआ. वे ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन की स्थानीय इकाई के संयुक्त सचिव भी रहे. 60 के दशक की शुरुआत में वे छत्तीसगढ़ की औद्योगिक नगरी भिलाई आ गए. यहां वे दुर्ग में अपने चाचा के साथ रहने लगे. यहां आने के बाद वे हिंदी और छत्तीसगढ़ी भी बोलने लगे थे. उनकी मौत 28 सितंबर 1991 को भिलाई नगर हुडको सेक्टर स्थित मकान में सोते समय गोली लगने से हुई थी.