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SPECIAL: छत्तीसगढ़ का ऐसा मंदिर जहां होती है कुत्ते की पूजा, अनोखा है इतिहास - मंदिर में कुत्ते की पूजा

बालोद जिले के मालीघोरी में एक ऐसा मंदिर है जहां कुत्ते की पूजा होती है. यह पूजा ईमानदारी और स्वामी भक्ति की है. इस मंदिर में प्राचीन पत्थरों पर नक्काशी की गई है. इस मंदिर को लेकर लोगों की इतनी आस्था है कि यहां नवरात्र में मनोकामना दीप भी प्रज्जवलित किए जाते हैं.

मंदिर में रखी कुत्ते की प्रतिमा
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Published : Oct 5, 2019, 1:55 PM IST

Updated : Oct 5, 2019, 2:17 PM IST

बालोदः भक्ति प्रधान हमारे देश में आपने मंदिरों में देवी-देवताओं की पूजा होते देखा होगा, लेकिन क्या आपने किसी मंदिर में कुत्ते की पूजा होते देखी है. आपने कभी सुना है कि किसी मंदिर में कुत्ते की प्रतिमा स्थापित कर उसे पूरी श्रद्धा और भक्ति से उसी तरह पूजा जा रहा हो जैसे देवी- देवताओं की पूजा होती है. छत्तीसगढ़ की संस्कृति अनकही कहानियों को अपने अंदर समेटे हुए है. आज ऐसी ही एक कहानी हम आपको रूबरू करवाने जा रहे हैं.

ये है छत्तीसगढ़ का ऐसा मंदिर जहां होती है कुत्ते की पूजा, अनोखा है इतिहास

बालोद जिले के मालीघोरी में एक ऐसा मंदिर है जहां कुत्ते की पूजा होती है. यह पूजा ईमानदारी और स्वामी भक्ति की है. इस मंदिर में प्राचीन पत्थरों पर नक्काशी की गई है. इस मंदिर को लेकर लोगों की इतनी आस्था है कि यहां नवरात्र में मनोकामना दीप भी प्रज्जवलित किए जाते हैं. जैसे भगवान नंदी की पूजा होती है वैसे ही यहां कुकुर देव की पूजा की जाती है. मान्यता है कि मंदिर की महिमा से यहां कुत्ते के काटे हुए मरीज ठीक होकर जाते हैं.

मंदिर का इतिहास
कहा जाता है कि फनी नागवंशी शासनकाल में 13वीं-14वीं शताब्दी में यहां बंजारे वास करते थे, उस वक्त यहां सेठ-साहूकार का राज चलता था. बालोद के एक साहूकार से यहां एक बंजारे ने कर्ज लिया हुआ था. बंजारे ने अपने बेहद प्रिय और इमानदार कुत्ते को उस साहूकार के पास कर्ज न चुका पाने समय तक गिरवी में रख दिया. इस दौरान उस साहूकार के यहां चोरी हुई, जब चोरी हो रही थी तब कुत्ते ने भौंकना छोड़ चोरी करते हुए ध्यान से देखा और चोरी का सामान कहां छुपाया है उसे भी देखा. सुबह होते ही कुत्ता, साहूकार को उस जगह तक ले गया और वहां दफन चोरी का सामान साहूकार को वापस मिल गया. कुत्ते की ईमानदारी से साहूकार काफी प्रभावित हुआ और उसने कुत्ते को गले लगाकर कहा कि तुमने अपने मालिक का सहारा कर्ज चुका दिया, तुम आजाद हो. साहूकार ने कुत्ते के गले में बंजारे के नाम एक चिट्ठी बांध कर उसे आजाद कर दिया.

कुत्ता बंजारे के पास वापस जा रहा था और बंजारा साहूकार के पास आ रहा था. इस दौरान रास्ते में उसने कुत्ते को देखा और कुत्ते पर गुस्सा हुआ कि उसने ईमानदारी नहीं दिखाई. साहूकार को धोखा देकर मेरे पास भागा चला आ रहा है. ऐसा कहते हुए उसने कुत्ते को वहीं पीट-पीटकर मार डाला. कुत्ता मर गया तक बंजारे की नजर उसके गले में बंधी चिट्ठी पर पड़ी. इस तरह बंजारे को किए पर खूब पछतावा हुआ. उसे अहसास हुआ कि कुत्ते ने साहूकार और बंजारे दोनों के साथ ही ईमानदारी निभाई. इसके बाद बंजारे वह साहूकार द्वारा मिलकर ग्राम मालिघोरी में कुत्ते को दफन कर मंदिर की स्थापना की गई तब से आज तक यह लोगों की आस्था बनी हुई है.

ऐसा है मंदिर
इस मंदिर में पत्थरों से बने कुत्ते की मूर्ति स्थापित है. अन्य मंदिरों का समूह भी है. इसे संस्कृत व पर्यटन विभाग द्वारा संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है. माना जाता है कि ये अपनी तरह का एक मात्र मंदिर है, शायद ही देश के किसी कोने में दूसरा ऐसा मंदिर बना होगा.

बालोदः भक्ति प्रधान हमारे देश में आपने मंदिरों में देवी-देवताओं की पूजा होते देखा होगा, लेकिन क्या आपने किसी मंदिर में कुत्ते की पूजा होते देखी है. आपने कभी सुना है कि किसी मंदिर में कुत्ते की प्रतिमा स्थापित कर उसे पूरी श्रद्धा और भक्ति से उसी तरह पूजा जा रहा हो जैसे देवी- देवताओं की पूजा होती है. छत्तीसगढ़ की संस्कृति अनकही कहानियों को अपने अंदर समेटे हुए है. आज ऐसी ही एक कहानी हम आपको रूबरू करवाने जा रहे हैं.

ये है छत्तीसगढ़ का ऐसा मंदिर जहां होती है कुत्ते की पूजा, अनोखा है इतिहास

बालोद जिले के मालीघोरी में एक ऐसा मंदिर है जहां कुत्ते की पूजा होती है. यह पूजा ईमानदारी और स्वामी भक्ति की है. इस मंदिर में प्राचीन पत्थरों पर नक्काशी की गई है. इस मंदिर को लेकर लोगों की इतनी आस्था है कि यहां नवरात्र में मनोकामना दीप भी प्रज्जवलित किए जाते हैं. जैसे भगवान नंदी की पूजा होती है वैसे ही यहां कुकुर देव की पूजा की जाती है. मान्यता है कि मंदिर की महिमा से यहां कुत्ते के काटे हुए मरीज ठीक होकर जाते हैं.

मंदिर का इतिहास
कहा जाता है कि फनी नागवंशी शासनकाल में 13वीं-14वीं शताब्दी में यहां बंजारे वास करते थे, उस वक्त यहां सेठ-साहूकार का राज चलता था. बालोद के एक साहूकार से यहां एक बंजारे ने कर्ज लिया हुआ था. बंजारे ने अपने बेहद प्रिय और इमानदार कुत्ते को उस साहूकार के पास कर्ज न चुका पाने समय तक गिरवी में रख दिया. इस दौरान उस साहूकार के यहां चोरी हुई, जब चोरी हो रही थी तब कुत्ते ने भौंकना छोड़ चोरी करते हुए ध्यान से देखा और चोरी का सामान कहां छुपाया है उसे भी देखा. सुबह होते ही कुत्ता, साहूकार को उस जगह तक ले गया और वहां दफन चोरी का सामान साहूकार को वापस मिल गया. कुत्ते की ईमानदारी से साहूकार काफी प्रभावित हुआ और उसने कुत्ते को गले लगाकर कहा कि तुमने अपने मालिक का सहारा कर्ज चुका दिया, तुम आजाद हो. साहूकार ने कुत्ते के गले में बंजारे के नाम एक चिट्ठी बांध कर उसे आजाद कर दिया.

कुत्ता बंजारे के पास वापस जा रहा था और बंजारा साहूकार के पास आ रहा था. इस दौरान रास्ते में उसने कुत्ते को देखा और कुत्ते पर गुस्सा हुआ कि उसने ईमानदारी नहीं दिखाई. साहूकार को धोखा देकर मेरे पास भागा चला आ रहा है. ऐसा कहते हुए उसने कुत्ते को वहीं पीट-पीटकर मार डाला. कुत्ता मर गया तक बंजारे की नजर उसके गले में बंधी चिट्ठी पर पड़ी. इस तरह बंजारे को किए पर खूब पछतावा हुआ. उसे अहसास हुआ कि कुत्ते ने साहूकार और बंजारे दोनों के साथ ही ईमानदारी निभाई. इसके बाद बंजारे वह साहूकार द्वारा मिलकर ग्राम मालिघोरी में कुत्ते को दफन कर मंदिर की स्थापना की गई तब से आज तक यह लोगों की आस्था बनी हुई है.

ऐसा है मंदिर
इस मंदिर में पत्थरों से बने कुत्ते की मूर्ति स्थापित है. अन्य मंदिरों का समूह भी है. इसे संस्कृत व पर्यटन विभाग द्वारा संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है. माना जाता है कि ये अपनी तरह का एक मात्र मंदिर है, शायद ही देश के किसी कोने में दूसरा ऐसा मंदिर बना होगा.

Intro:बालोद।

छत्तीसगढ़ की संस्कृति विभिन्न अनकही कहानियों को अपने अंदर समाए हुए हैं यहां भक्ति से जुड़े कई विभिन्न ना कहानियां पर ऐसी ही एक अनोखी कहानी है कुकुर देव की जी हां बालोद ज़िले के मालीघोरी में एक ऐसा मंदिर है जहां कुत्ते की पूजा होती है दरअसल यह पूजा ईमानदारी और स्वामी भक्ति की है पुरातत्व विभाग द्वारा इसे संजोने का प्रयास किया जा रहा है यह अपने आप मे एक ऐसा मंदिर है जो कि काफी विख्यात है शायद ही इसके जैसा और कोई मंदिर प्रदेश या देश मे हो जहां कुत्ते की पूजा की जाती है यहां प्राचीन विभिन्न पत्थरों पर नक्कासी है और कई मंदिर समूह भी यहां स्थापित है इस मंदिर को लेकर लोगों की इतनी आस्था है कि यहां नवरात्र में मनोकामना दीप भी प्रज्वलित होते हैं जैसे भगवान नंदी की पूजा होती है वैसे ही यहां कुत्ते की भी पूजा की जाती है और भगवान कुकुर देव की महिमा से यहां कुत्ते के कांटे हुए मरीज ठीक होकर जाते हैं।




Body:वीओ - दरअसल इस मंदिर के बारे में कहावत है कि फनी नागवंशी शासनकाल में 13 वी 14 वी शताब्दी में यहां बंजारे नाश करते थे और सेठ साहूकार की प्रक्रिया उस समय चलती थी इसी तरह बालोद के एक साहूकार से एक बंजारे ने कर्ज लिया हुआ था जहां बंजारे ने अपने बेहद प्रिय और इमानदार कुत्ते को उस साहूकार के पास कर्ज ना चुका पाने समय तक गिरवी में रखा हुआ था इसी समय उस साहूकार के यहां चोरी हुई जब चोरी हो रही थी तब कुत्ते ने भोकना छोड़ चोरी करते हुए ध्यान से देखा और चोरी का सामान कहां छुपाया है उसे भी देखा ऐसे ही सुबह हुई तो वक्ता साहूकार को भोंकते भोंकते उस जगह तक ले गया और चोरी का सामान उसे वापस दिलाया जिस जगह कुत्ता ले गया था उसी जगह चोरी का सामान दफन मिला कुत्ते की इमानदारी से साहूकार काफी प्रभावित हुआ और उसने कुत्ते को गले लगा कर कहा कि तुमने अपने मालिक का सहारा कर्ज़ छूट दिया है तुम मेरे लिए बहुत फ्री हो आज से तुम आजाद हो ऐसा कहते हैं उसके गले में कुत्ते के असली मालिक बंजारे के नाम के पत्थर लिखकर उसे वापस भेज दिया।

वीओ - कुत्ता बंजारे के पास वापस जा रहा था और बंजारा साहूकार के पास आ रहा था जहां रास्ते में उसने कुत्ते को देखा और कुत्ते पर गुस्सा हुआ कि ईमानदार नहीं है मैंने तुझे उसके पास गिरवी रखा था उस साहूकार को धोखा देकर मेरे पास भागा चला आ रहा है ऐसा कहते हुए उसने कुत्ते को वहीं पीट-पीटकर मार डाला कुत्ता मर गया उसकी नजर उसके गले में बंद है उस चिट्ठी से हुई जो साहूकार ने बंजारे के लिए लिखा हुआ था छुट्टी पढ़कर बंजारे को बेहद अफसोस हुआ और जाऊंगा को इसकी जानकारी मिली तो वह भी काफी उदास हो गया अनजाने में बंजारे ने एक ईमानदार कुत्ते की जान ले ली इस कुत्ते द्वारा बंजारे व साहूकार दोनों के साथ ईमानदारी दिखाया गया था इस कुत्ते की इमानदारी मिसाल बनी और बंजारे वह साहूकार द्वारा मिलकर ग्राम मालिघोरी में कुत्ते को दफन कर मंदिर की स्थापना की गई तब से आज तक यह लोगों की आस्था बनी हुई है।


Conclusion:इस मंदिर में पत्थरों से बने कुत्ते की मूर्ति स्थापित है जैसे भगवान नंदी की पूजा होती है वैसे ही कुत्ते की भी इसके दत्त ही यहां नवरात्र में ज्योत प्रज्वलित किये गए हैं और अन्य मंदिरों का समूह भी है इसे पर्यटन विभाग द्वारा संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है यह अपने आप मे इकलौता मंदिर है जब इस जैसे मंदिर की खोज की जाती है तो केवल माली घोरी का नाम सामने आता है।

बाइट - महेश राम साहू, केअर टेकर मंदिर

बाइट - गोपाल सिंह भक्त

बाइट - नारायण पटेल, भक्त।
Last Updated : Oct 5, 2019, 2:17 PM IST
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