बालोदः भक्ति प्रधान हमारे देश में आपने मंदिरों में देवी-देवताओं की पूजा होते देखा होगा, लेकिन क्या आपने किसी मंदिर में कुत्ते की पूजा होते देखी है. आपने कभी सुना है कि किसी मंदिर में कुत्ते की प्रतिमा स्थापित कर उसे पूरी श्रद्धा और भक्ति से उसी तरह पूजा जा रहा हो जैसे देवी- देवताओं की पूजा होती है. छत्तीसगढ़ की संस्कृति अनकही कहानियों को अपने अंदर समेटे हुए है. आज ऐसी ही एक कहानी हम आपको रूबरू करवाने जा रहे हैं.
बालोद जिले के मालीघोरी में एक ऐसा मंदिर है जहां कुत्ते की पूजा होती है. यह पूजा ईमानदारी और स्वामी भक्ति की है. इस मंदिर में प्राचीन पत्थरों पर नक्काशी की गई है. इस मंदिर को लेकर लोगों की इतनी आस्था है कि यहां नवरात्र में मनोकामना दीप भी प्रज्जवलित किए जाते हैं. जैसे भगवान नंदी की पूजा होती है वैसे ही यहां कुकुर देव की पूजा की जाती है. मान्यता है कि मंदिर की महिमा से यहां कुत्ते के काटे हुए मरीज ठीक होकर जाते हैं.
मंदिर का इतिहास
कहा जाता है कि फनी नागवंशी शासनकाल में 13वीं-14वीं शताब्दी में यहां बंजारे वास करते थे, उस वक्त यहां सेठ-साहूकार का राज चलता था. बालोद के एक साहूकार से यहां एक बंजारे ने कर्ज लिया हुआ था. बंजारे ने अपने बेहद प्रिय और इमानदार कुत्ते को उस साहूकार के पास कर्ज न चुका पाने समय तक गिरवी में रख दिया. इस दौरान उस साहूकार के यहां चोरी हुई, जब चोरी हो रही थी तब कुत्ते ने भौंकना छोड़ चोरी करते हुए ध्यान से देखा और चोरी का सामान कहां छुपाया है उसे भी देखा. सुबह होते ही कुत्ता, साहूकार को उस जगह तक ले गया और वहां दफन चोरी का सामान साहूकार को वापस मिल गया. कुत्ते की ईमानदारी से साहूकार काफी प्रभावित हुआ और उसने कुत्ते को गले लगाकर कहा कि तुमने अपने मालिक का सहारा कर्ज चुका दिया, तुम आजाद हो. साहूकार ने कुत्ते के गले में बंजारे के नाम एक चिट्ठी बांध कर उसे आजाद कर दिया.
कुत्ता बंजारे के पास वापस जा रहा था और बंजारा साहूकार के पास आ रहा था. इस दौरान रास्ते में उसने कुत्ते को देखा और कुत्ते पर गुस्सा हुआ कि उसने ईमानदारी नहीं दिखाई. साहूकार को धोखा देकर मेरे पास भागा चला आ रहा है. ऐसा कहते हुए उसने कुत्ते को वहीं पीट-पीटकर मार डाला. कुत्ता मर गया तक बंजारे की नजर उसके गले में बंधी चिट्ठी पर पड़ी. इस तरह बंजारे को किए पर खूब पछतावा हुआ. उसे अहसास हुआ कि कुत्ते ने साहूकार और बंजारे दोनों के साथ ही ईमानदारी निभाई. इसके बाद बंजारे वह साहूकार द्वारा मिलकर ग्राम मालिघोरी में कुत्ते को दफन कर मंदिर की स्थापना की गई तब से आज तक यह लोगों की आस्था बनी हुई है.
ऐसा है मंदिर
इस मंदिर में पत्थरों से बने कुत्ते की मूर्ति स्थापित है. अन्य मंदिरों का समूह भी है. इसे संस्कृत व पर्यटन विभाग द्वारा संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है. माना जाता है कि ये अपनी तरह का एक मात्र मंदिर है, शायद ही देश के किसी कोने में दूसरा ऐसा मंदिर बना होगा.