बालोद: समय के साथ ही छत्तीसगढ़ की सारी संस्कृति विलुप्त हो गयी है. विभिन्न संस्कृतियों के गढ़ छत्तीसगढ़ में डंडा नृत्य विधा की अपनी एक अलग पहचान है. इस विधा को संजोय रखने के लिए युवा महोत्सव के आयोजन में एक टीम ऐसी आई जो अब तक इस विधा को जीवित रखे हुए है.
इस विधा को आगे बढ़ाने कि लिए यह टीम युवाओं को साथ लाने का प्रयास किया है. अब यहा टीम बालोद के इस मंच से 100 साल पुरानी इस रीति को प्रदेश के मंच पर प्रस्तुत करने जा रही है और काफी खुश हैं कि गांव की गलियों से निकल कर उनकी प्रतिभा प्रदेश स्तर पर राजधानी से पूरा राज्य देखेगा.
डंडा नृत्य से युवाओं को जोड़ने का प्रयास
इस डंडा नृत्य के विधा को बचपन से सींचने वाले हनुमान सिंह ने बताया कि 'हम लगातर प्रयास कर रहे हैं कि प्रदेश की हमारी यह संस्कृति विलुप्त ना हो जाए इसलिए युवाओं को भी साथ लेकर चल रहे हैं, इनकी टीम में हर उम्र के लोग शामिल हैं. उन्होंने कहा कि 'हम बेहद प्रसन्न हैं कि यहां हमे इस तरह का मंच मिला और हमारा प्रयास रहेगा कि यहां युवा वर्ग हमारे इस रीति को देखे सुनें और अपने गांव में शुरू करने मे प्रयास करें'.
गायन करने वाले फत्ते लाल साहू ने बताया
उन्होंने कहा कि 'नए-नए लोगों को जोड़ना हमारी प्राथमिकता है और हम नए लोगों को जोड़ रहे हैं और इसे काफी आगे तक ले जाना चाहते हैं ताकि इसका सकारात्मक असर देखने को मिलेगा और छत्तीसगढ़ की संस्कृति पूरे देश भर में विख्यात इसके लिए हम सबको साथ मिलकर आगे आने की आवश्यकता है उन्होंने कहा कि सरकार का यह पहल काफी अच्छा है जिसने एक मंच पर कलाकार और शासन प्रशासन को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया'.
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नृत्य करने वाले लोगों ने बताया कि 'यह बेहद कठिन विधा है जिसे हम सीख रहे हैं और हमें सबसे अच्छा लगता है जब हम छत्तीसगढ की संस्कृति को जीवित रखने के लिए गांव की गलियों पर यह प्रस्तुति देते हैं उन्होंने कहा कि पहली बार हमें यह मंच मिला है इस काम सम्मान करते हैं और प्रदेश स्तर पर भी बेहतर प्रदर्शन करेंगे उन्होंने कहा कि हम रोजाना रात में अब खाना खाने के बाद प्रैक्टिस करेंगे ताकि हम बेहतरीन ढंग से इसकी प्रस्तुति दे सकें'.