बालोद: प्रदेश सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ की संकृति को सहेजने नित नए नए प्रयास किए जा रहे हैं ऐसे में यहां बालोद शहर में पहली बार सुआ महोत्सव (Sua Festival) का आयोजन किया गया है. जहां पर महिला पार्षद भी पारंपरिक वेशभूषा (traditional costumes) में शामिल हुए और यहां सुआ नृत्य भी किया. यह कार्यक्रम पूरी तरह संस्कृति को सहेजने वाला लग रहा था और यहां पर पूरे कार्यक्रम का संचालन छत्तीसगढ़ी भाषा में किया गया. यहां पर पूरे जिले भर से सुआ नृत्य करने वाली युवतियां और महिलाएं शामिल हुई यह आयोजन बालोद शहर के नया बस स्टैंड परिसर ऑडिटोरियम में किया गया.
ऐसे आयोजन टैक्स फ्री
सुआ महोत्सव के मुख्य अतिथि विकास चोपड़ा ने कहा कि, इस तरह का आयोजन हमारे बालोद में हो रहा है. यह अपने आप में गौरव की बात है. यह संस्कृति से जुड़ा हुआ कार्यक्रम है और उन्होंने कहा कि यहां पर सुआ नृत्य का आयोजन देखने को नहीं मिलता था. इससे हमारे जिले में एक नई लहर देखने को मिलेगी यह एक शुरुआत है और आने वाले दिनों में यह आयोजन भव्य रहे इसके लिए शुभकामनाएं दी. उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजनों के लिए नगर पालिका का हमेशा सहयोग बना रहेगा उन्होंने ऑडिटोरियम को भी इस आयोजन के लिए टैक्स फ्री किया है.
संस्कृति को जानने की मिलेगी प्रेरणा
आयोजक दीपक थवानी ने कहा कि, ऐसे आयोजन की महती आवश्यकता है. इसीलिए हमने ऐसे आयोजन की शुरुआत की और यहां पर ऐसे आयोजन से इस संस्कृति को एक नई दिशा मिलेगी. लोग प्रेरित होंगे. सुआ महोत्सव में विशेष सहयोग करने वाले कादम्बिनी यादव ने बताया कि, सुआ जो है वो महिलाओं की प्रतिनिधि होती हैं और धान कटाई से सुआ नृत्य शुरू हो जाता है. उन्होंने सुआ महोत्सव और सुआ की जो पारंपरिक संस्कृति की जानकारी दी इसके साथ ही यहां मौजूद महिलाएं यहां पर सुआ संगीत में झूमती नजर आई. इसके साथ ही नगर पालिका अध्यक्ष विकास चोपड़ा भी जमकर थिरके.
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जानिए क्या है सुआ नृत्य
छत्तीसगढ़ में सुआ नृत्य (suwa folk dance ) की संस्कृति सालों से चली आ रही है. सुआ लोकनृत्य दीपावली पर विशेष तौर पर किया जाता है. इस लोकनृत्य की शुरुआत शरद पूर्णिमा से होती है जो भाईदूज के दिन तक चलती है. ये लोकनृत्य महिलाएं समूह में करती हैं, जो घर-घर जाकर सुआ गीत गाती है और नृत्य करती हैं.
इस लोकनृत्य में धान से भरी टोकरी में मिट्टी का सुआ (तोता) रखती है. जिसके चारों तरफ घूमते हुए नृत्य करती हैं. सुआ जो हूबहू इंसान की नकल करता है उसे महिलाएं अपने प्रतीक के रूप में रखती है जो उनकी व्यथा लोगों को सुना सके. ये नृत्य प्रदेश की पुरानी परंपराओं में से एक है. प्रदेश में दान की परंपरा चलती आ रही है यदि कोई किसी को कुछ देता है तो बदले में उसका आभार व्यक्त करने के लिए कुछ भेंट दी जाती है, ऐसा ही सुआ नृत्य करने वाले टोलियों को लोग भेट स्वरुप चावल, धान, रुपये आदि देते हैं.
- महिलाएं और युवतियां सुआ को अपने प्रतिक के रूप में रखती हैं.
- ये सुआ महिलाओं की व्यथा लोगों तक पहुंचाता है.
- ये महिलाएं अपने नृत्य और सुआ गीत के जरिए हरियाली, कृष्ण गाथा, गोपियों की नोंक-झोंक की कहानीयां सुनाते हुए नृत्य करती है.
- सुवा के चारों ओर महिलाएं ताली बजाकर नृत्य करती है.
लुप्त हो रही है परंपरा
सुआ नृत्य का प्रचलन धीरे-धीरे कम होते जा रहा है. शहरों में सुआ नृत्य की ये टोलियां कम ही देखने को मिलती है. गांवों में ये परंपरा अभी भी सलामत है. अब महिलाओं की जगह छोटी बच्चियों की टोलियां सुआ नृत्य करते दिख जाती हैं.