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बालोद: प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण 'ओना-कोना मंदिर', गंगरेल का है अंतिम छोर

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Published : Sep 7, 2020, 7:58 PM IST

बालोद जिले में कई मनमोहक पर्यटन स्थल है. इसी में एक है ओना-कोना मंदिर. यह मंदिर गुरुर विकासखंड के कोने में महानदी के तट पर स्थित है. इस इलाके को गंगरेल का आखरी छोर भी माना जाता है. यह प्राकृतिक वादियों से घिरा हुआ है.

Ona-Kona Temple in balod
ओना-कोना मंदिर

बालोद: पर्यटन के दृष्टिकोण से छत्तीसगढ़ में अनेकों स्थल है. कुछ जगहें धीरे-धीरे विकसित हो रही हैं और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है. इसी तरह कला का नायाब नमूना है 'ओना-कोना' छत्तीसगढ़ के एक कोने में बसा ये भव्य मंदिर बालोद जिले से लगभग 35 से 40 किलोमीटर दूर NH-30 जगदलपुर रोड में स्थित है. माना जाता है कि ये गंगरेल का अंतिम छोर भी है.

Ona-Kona Temple in balod
ओना-कोना मंदिर

यह मंदिर जिले के गुरुर विकासखंड के कोने में महानदी के तट पर स्थित है, जहां पर गंगरेल बांध का डुबान क्षेत्र आता है. यहां गंगरेल से हवाओं में लहरों की कल-कल और चिड़ियों की चहचहाहट मन को काफी सुकून देती है. यहां पर 12 महीनों नमी जैसा माहौल रहता है. ठंड के दिनों में ये जगह किसी वादियों से कम नहीं लगती, तो गर्मी में इसकी ठंडकता मन को शांत रखती है.

प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण

Ona-Kona Temple in gurur of balod
प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण

यह गांव एक पहाड़ी के नीचे स्थित है. यहां आने के लिए उबड़-खाबड़ रास्ते को पार करना पड़ता है. वैसे तो यह जगह प्राकृतिक रूप से काफी खूबसूरत है. गंगरेल बांध का डुबान क्षेत्र होने की वजह से यह और भी ज्यादा खूबसूरत लगती है. यहां स्थानीय मछुआरों की ओर से बोटिंग की सुविधा भी आने-वाले पर्यटकों को दी जाती हैं. वैसे तो बालोद जिले में पर्यटकों के लिए काफी जगह है. बस जरूरत है इन्हें पहचान दिलाने की. हालांकि इस जगह को लेकर लोगों में उत्साह देखते ही बनता है.

बहुत साल पहले आए थे सूफी संत

Onakona Temple
गंगरेल डुबान क्षेत्र में स्थित मंदिर

गांव वालों के अनुसार यहां पर बहुत साल पहले सूफी संत (बाबा फरीद) आए थे. उन्होंने यहां बैठ कर तपस्या की थी. तब से यहां पर एक धुनी जलाई गई है, जो कि आज भी निरंतर गांव वालों के सहयोग से जल रही है. कहते हैं यहां पर आने वाले और उनके मानने वाले लोगों की मुरादें पूरी होती है. यहां पर एक मजार का भी निर्माण किया गया है, जो की मंदिर के पास ही स्थित है.

नासिक ना जाकर यहीं दर्शन कर सकेंगे श्रद्धालु

हाल ही में कुछ वर्षों से ये जगह यहां निर्मित हो रहे भव्य मंदिर के लिए भी काफी चर्चा में हैं. मंदिर के संस्थापक तीरथराज फुटान ने बताया कि यह मंदिर महाराष्ट्र के नासिक स्थित श्री त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग धाम की तर्ज पर बनाया जा रहा है. जैसा नजारा नासिक में दिखता है. मंदिर निर्माण का उद्देश्य यही है कि गरीब परिवार जो आर्थिक स्थिति से कमजोर होने के कारण नासिक (तीर्थ यात्रा) पर नहीं जा पाते. वे यहां ओना कोना आकर दर्शन लाभ ले सकेंगे, जिस प्रकार उत्तर भारत में प्रवाहित होने वाली पवित्र गंगा नदी का विशेष आध्यात्मिक महत्व है. उसी प्रकार दक्षिण में प्रवाहित होने वाली गोदावरी नदी का महत्व है.

बालोद: पर्यटन के दृष्टिकोण से छत्तीसगढ़ में अनेकों स्थल है. कुछ जगहें धीरे-धीरे विकसित हो रही हैं और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है. इसी तरह कला का नायाब नमूना है 'ओना-कोना' छत्तीसगढ़ के एक कोने में बसा ये भव्य मंदिर बालोद जिले से लगभग 35 से 40 किलोमीटर दूर NH-30 जगदलपुर रोड में स्थित है. माना जाता है कि ये गंगरेल का अंतिम छोर भी है.

Ona-Kona Temple in balod
ओना-कोना मंदिर

यह मंदिर जिले के गुरुर विकासखंड के कोने में महानदी के तट पर स्थित है, जहां पर गंगरेल बांध का डुबान क्षेत्र आता है. यहां गंगरेल से हवाओं में लहरों की कल-कल और चिड़ियों की चहचहाहट मन को काफी सुकून देती है. यहां पर 12 महीनों नमी जैसा माहौल रहता है. ठंड के दिनों में ये जगह किसी वादियों से कम नहीं लगती, तो गर्मी में इसकी ठंडकता मन को शांत रखती है.

प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण

Ona-Kona Temple in gurur of balod
प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण

यह गांव एक पहाड़ी के नीचे स्थित है. यहां आने के लिए उबड़-खाबड़ रास्ते को पार करना पड़ता है. वैसे तो यह जगह प्राकृतिक रूप से काफी खूबसूरत है. गंगरेल बांध का डुबान क्षेत्र होने की वजह से यह और भी ज्यादा खूबसूरत लगती है. यहां स्थानीय मछुआरों की ओर से बोटिंग की सुविधा भी आने-वाले पर्यटकों को दी जाती हैं. वैसे तो बालोद जिले में पर्यटकों के लिए काफी जगह है. बस जरूरत है इन्हें पहचान दिलाने की. हालांकि इस जगह को लेकर लोगों में उत्साह देखते ही बनता है.

बहुत साल पहले आए थे सूफी संत

Onakona Temple
गंगरेल डुबान क्षेत्र में स्थित मंदिर

गांव वालों के अनुसार यहां पर बहुत साल पहले सूफी संत (बाबा फरीद) आए थे. उन्होंने यहां बैठ कर तपस्या की थी. तब से यहां पर एक धुनी जलाई गई है, जो कि आज भी निरंतर गांव वालों के सहयोग से जल रही है. कहते हैं यहां पर आने वाले और उनके मानने वाले लोगों की मुरादें पूरी होती है. यहां पर एक मजार का भी निर्माण किया गया है, जो की मंदिर के पास ही स्थित है.

नासिक ना जाकर यहीं दर्शन कर सकेंगे श्रद्धालु

हाल ही में कुछ वर्षों से ये जगह यहां निर्मित हो रहे भव्य मंदिर के लिए भी काफी चर्चा में हैं. मंदिर के संस्थापक तीरथराज फुटान ने बताया कि यह मंदिर महाराष्ट्र के नासिक स्थित श्री त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग धाम की तर्ज पर बनाया जा रहा है. जैसा नजारा नासिक में दिखता है. मंदिर निर्माण का उद्देश्य यही है कि गरीब परिवार जो आर्थिक स्थिति से कमजोर होने के कारण नासिक (तीर्थ यात्रा) पर नहीं जा पाते. वे यहां ओना कोना आकर दर्शन लाभ ले सकेंगे, जिस प्रकार उत्तर भारत में प्रवाहित होने वाली पवित्र गंगा नदी का विशेष आध्यात्मिक महत्व है. उसी प्रकार दक्षिण में प्रवाहित होने वाली गोदावरी नदी का महत्व है.

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