बालोद: महानदी और शिवनाथ नदी के बीच स्थित लगभग 10 किलोमीटर की परिधि में फैले महापाषाण कालीन पुरातात्विक अवशेष, विशाल कब्र समूह बालोद के ग्राम करकाभाट में मौजूद हैं. यह वैश्विक स्तर के धरोहर हैं जो आज विलुप्ति के कगार पर पहुंच गए हैं. आजादी के इतने वर्षों बाद भी यह धरोहर उपेक्षित है. पुरातत्व विभाग ने एक बोर्ड लगा कर अपनी जिम्मेदारी निभा दी है, लेकिन इस ऐतिहासिक स्थल पर लगातार अतिक्रमण हो रहा है. शासन-प्रशासन को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है.
जानकारी के मुताबिक महापाषाणीय प्राचीन स्मारक पूरे विश्व में दो-तीन जगह ही पाए जाते हैं. प्राचीन काल का ये धरोहर वर्तमान में अपनी पहचान के लिए तरस रहा है. यहां सभी स्मारकों की आकृति लगभग एक जैसी है और कुछ पत्थर ऐसे भी हैं, जिन्हें गौर से देखने पर यह इंसान के चेहरे सा प्रतीत होता है.
करीब 5 हजार साल पुराना है यह विशाल कब्र समूह
ETV भारत ने जब क्षेत्रीय अन्वेषक अरमान अश्क से इस संदर्भ में चर्चा की, तो उन्होंने यह बताया कि करकाभाट क्षेत्र में यह विशाल कब्र समूह लगभग साढ़े 3 हजार साल पुराना है. इस तरह के कब्र नागालैंड, मणिपुर और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में पाए गए हैं. उन सभी की तुलना में यहां का कब्र समूह काफी बड़ा है और 10 किलोमीटर तक फैला हुआ है. प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर के अन्वेषक जब बालोद आए हुए थे तब सभी ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठ बताते हुए इसकी उपेक्षा पर अफसोस जाहिर किया था.
देख-रेख नहीं होने से क्षेत्र में हो रहा बेजा कब्जा
भारत देश के इस पिछड़े हुए क्षेत्र में भारत का गौरवशाली अतीत छिपा हुआ है. जिसे उजागर करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार किसी तरह का कोई प्रयास नहीं कर रही है. जिसके कारण यह उपेक्षित है. यहां पर बेरोकटोक बेजा कब्जा होता जा रहा है. प्राचीन सभ्यता का गौरवशाली अवशेष पूरी तरह नष्ट और बर्बाद होने की कगार पर है. यहां से पत्थर भी चोरी होते हैं. इसकी कई मान्यताएं भी हैं जिसके संदर्भ में पुरातत्व के जानकार कई बार शासन-प्रशासन को अवगत करा चुके हैं. यहां पत्थर तोड़ने के कारण महापाषाणीय स्थल को काफी क्षति पहुंची है.
संरक्षण को लेकर शासन-प्रशासन नहीं दे रहा ध्यान
कहते हैं कि 19वीं शताब्दी में किसी की मृत्यु होने के बाद इस तरह का स्मारक बना दिया जाता था. यह अपने आप में काफी अद्वितीय है, लेकिन आज इसे संरक्षित करने की जरूरत है. इस संदर्भ में कई सारे पुरातत्व के जानकारों ने काफी जानकारी जुटाई है, लेकिन शासन-प्रशासन इन जानकारियों को एकत्र कर इनके संरक्षण को लेकर कोई ध्यान नहीं दे रहा है.
इस वैश्विक स्तर के धरोहर को सहजने से मिल सकती है कई प्राचीन जानकारियां
जब भी कोई अधिकारी आता है, तो इस क्षेत्र का दौरा जरूर करता है पर इसके संदर्भ में संरक्षण को लेकर ध्यान नहीं दिया जाता. यह वैश्विक स्तर के धरोहर हैं. इसे सहेजने से कई सारी जानकारियां और एकत्र हो सकती है. कुछ वर्षों पहले केंद्रीय स्तर की टीम यहां आकर लगभग एक महीने तक कैंप बनाकर रुकी हुई थी. साथ ही कुछ जगहों के नीचे हल्की खुदाई भी की गई और यहां पत्थर के अवशेष जांच के लिए ले जाए गए. कुछ स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां पर खजाने हो सकते हैं. तो वहीं कुछ लोगों का कहना है कि यह अपने प्राचीन काल में युद्ध स्थली रहा होगा या फिर यह एक कब्र समूह है, जहां 5 हजार से ज्यादा कब्र यहां दफन हैं.
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बालोद-धमतरी मार्ग से गुजरने वाले लोग दूर से ही इन पत्थरों को देखते हैं. पर्यटकों की संख्या बढ़ने पर ही यह स्थल पर्यटन स्थल में शामिल हो पाएगा. किसी भी स्थल को पर्यटन में शामिल करने के लिए कुछ शर्तें होती हैं. शर्त पूरा नहीं होने की स्थिति में यह स्थल आज भी उपेक्षित है. क्षेत्रवासियों ने मांग की है कि जल्द महापाषणीय स्थल में सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रयास किया जाए ताकि यहां पर्यटक आए और हजारों वर्ष के इतिहास के बारे में जानकारी हासिल कर सकें.