बालोद: शहर के मरार पारा के चमत्कारिक स्वयंभू गणेश मंदिर में भक्तों की गहरी आस्था है. यहां विराजमान भगवान गणेश की प्रतिमा का आकार धीरे धीरे बढ़ रहा है. इसे ध्यान में रखते हुए ही मंदिर भवन का निर्माण कराया गया है. भगवान गणेश यहां आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. निसंतान दंपतियों को संतान सुख प्रदान करते हैं. एक सामान्य पंडाल से शुरू मंदिर का सफर भव्य रूप ले चुका है. इस मंदिर में साईं बाबा और बजरंगबली की भी मूर्ति हैं. यहां इनकी भी पूजा अर्चना होती है.
कोरोना काल में शुरू हुआ सेवा का नया अध्याय: कोरोना काल के समय से यहां जन सेवा का एक नया अध्याय जुड़ा. मंदिर में निशक्तजनों और जरूरतमंदों को मुफ्त में भोजन दिया जाता है. वहीं अन्य लोगों या सामान्य राहगीरों को 30 रुपए में घर जैसा भोजन दिया जाता है.
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रोजाना 500 लोग करते हैं भोजन: स्थानीय भक्त और मोरया मंडल परिवार के सदस्य लकी चांडक ने बताया कि "इस मंदिर में रोजाना 400 से 500 लोग भोजन करते हैं. भगवान की कृपा से दानदाताओं के सहयोग से यहां पर भोजन की व्यवस्था की जाती है. पहले मंदिर समिति ने इसकी शुरआत की थी. कोरोना के संक्रमण काल से ही यहां पर जरूरतमंद लोगों को भोजन दिया जाना शुरू किया गया जो की आज पूरी सफलता से चल रहा है. इसे भक्तों ने गणेश प्रसादम नाम दिया है." समिति के सदस्यों और भक्तों ने बताया कि "यहां पर हर बुधवार शाम 7 बजकर 30 मिनट पर महाआरती का आयोजन होता है. ढोल मंजीरा के थाप के बीच आरती में सैकड़ों भक्त शामिल होते हैं."
मोरिया मंडल परिवार करता है देख रेखा: इस प्राचीन मंदिर के साथ मोरिया मंडल का नाम जुड़ा हुआ है. बालोद जिले में इस समिति को हर कोई जानता और पहचानती है. दरअसल वर्ष 2006 में युवक युवतियों ने एक टोली बनाई, जिसे मोरिया मंडल नाम दिया गया. इसमें 70 से अधिक सदस्य हैं जो इस मंदिर की देखरेख करते हैं. गणेश चतुर्थी के 11 दिन भक्तों का मेला मंदिर में देखने को मिलता है.
100 वर्ष पुराना है यहां का इतिहास: गणेश मंदिर समिति के संरक्षक राजेश मंत्री ने बताया कि "इस मंदिर का इतिहास लगभग 100 साल पुराना है. जमीन के भीतर से भगवान गणेश जी प्रकट हुए. उस समय इस पर सबसे पहले सुल्तानमल बाफना और भोमराज श्रीमाल की नजर पड़ी, जिसके बाद आस्थावान भक्तों का तांता लगना शुरू हुआ. छत्तीसगढ़ के साथ ही दूसरे राज्यों से भी भक्त गणेश जी के दर्शन करने आते हैं."
सपने में आए थे बप्पा: मंदिर समिति के सदस्यों ने बताया कि "पहले बाफना परिवार के किसी सदस्य के सपने में बप्पा आए थे, जिसके बाद दोनों ने स्वयं-भू गणपति के चारों ओर टिन शेड लगाकर एक छोटा सा मंदिर बनाया था." राजेश मंत्री ने बताया कि "एक छप्पर से बप्पा के मंदिर की शुरुआत हुई थी और आज मंदिर को लेकर आस्था और चमत्कार सभी तरफ विख्यात हैं."