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पहले चाइनीज मार्केट तो अब गोबर के दीये ने कम कर दी कुम्हार के दीपों की लौ

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बालोद (Balod) में कुम्हारों के दीये (Potters lamps) को इस बार चाइनीज (Chinese) नहीं बल्कि गोबर से बने दीये (Dung lamps) के कारण मंदी झेलनी पड़ रही है. दरअसल, इस बार बाजार में गोबर से बने दीपों की अधिक डिमांड है, जिसका खामियाजा कुम्हारों को भुगतना पड़ रहा है.

potter's lamp
कुम्हार के दीपों की लौ घटी
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Published : Oct 29, 2021, 4:14 PM IST

बालोदः पिछले कई वर्षों से चाइनीज बल्बों (Chinese bulbs) ने कुम्हार के दीपों (diyas) की लौ को कम कर दिया था. हालांकि चाइनीज (Chinese) वस्तुओं के वहिष्कार से पिछले दो वर्षों से कुम्हारों को राहत तो थी, लेकिन कोरोना की मार से वो भी न बच सके. एसे में इस साल गोबर से बने दीयों (Dung lamps) की छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh)में काफी डिमांड है. बताया जा रहा है कि गोबर के दीये न सिर्फ देखने में सुन्दर होते हैं, बल्कि इसे जलाने के बाद खाद के रूप में छोटे-मोटे पेड़-पौधों में इस्तेमाल किया जा सकता है.

गोबर के दीयों की बढ़ी मांग

SPECIAL: इस दिवाली ईको फ्रेंडली दीयों की भारी डिमांड, इस गांव की महिलाएं गोबर के दीए बनाकर बन रहीं सशक्त

लोगों को पसंद आ रहे गोबर के दीए

इस बार बाजारों में गोबर के बने दीये लोग खासा पसंद कर रहे हैं, यही कारण है कि कुम्हार के मिट्टी के दीए आज भी ग्राहकों के राह तक रहे हैं. दीपावली पर्व कुम्हारों के लिए भी बेहद खास होता है. मिट्टी से बनाए दीए, मां लक्ष्मी की मूर्तियां, मटकी इत्यादि पूजन में प्रयुक्त होने वाले सामानों की विशेष मांग रहती है, लेकिन बीते कुछ वर्षों से चाइनीज बाजार ने इनकी कमर तोड़ कर रख दी थी. अब-जब से गोबर के दीए को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार द्वारा योजना बनाई गई है. तो एक बार फिर कुम्हारों के जीवन यापन में संकट देखने को मिल रहा है. पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष 25 फीसद कुम्हार ऐसे हैं, जिन्होंने दीए बनाने का कार्य लगभग छोड़ दिया है. इनकी मांग है कि जो समूह गोबर के लिए बना रहे हैं उसके बदले कुम्हारों को यह काम दिया जाना था.

गोबर के दीए से मुश्किल में कुम्हार

बता दें कि इस बार बाजार में गोबर के दीये आने से कुम्हारों की उम्मीद टूट गई है. वजह है कि लोग गोबर से बने दीए को ज्यादा पसंद कर रहे हैं. दूसरी ओर सरकार भी गोबर से बने दीए को उपयोग में लाने के लिए लोगों को प्रेरित कर रही है. कुम्हार बताते हैं कि पहले सब कुछ ठीक था. कुम्हार अपने काम में मस्त थे. उन्हें उम्मीद थी कि हर बार की तरह इस बार भी वे अच्छी कमाई कर लेंगे. लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है. बालोद जिले के ग्राम बरही में जब ईटीवी भारत की टीम पहुंची तो वहां निवासरत कुम्हारों ने अपनी व्यथा बताई.

साल भर से रहता है इंतजार

कुम्हारों को साल भर इस पर्व का इंतजार रहता है. वे मिट्टी के दीए बनाकर इस पर्व में आमदनी की बाट जोहते हैं. लेकिन इस साल सब कुछ उम्मीद के मुताबिक नहीं हो रहा है. कोरोना की मार से परेशान कुम्हारों को पहले गणेश पूजा में नुकसान उठाना पड़ा अब दिवाली में भी नुकसान के हालात बन रहे हैं. जिले के कुम्हार छोटूलाल कुम्भकार बताते हैं कि अब दिवाली का त्यौहार पास है,जिसके लिए शासन की तरफ से गोबर के दीए बनवाए जा रहे हैं. उसे शासन स्तर पर प्रचार-प्रसार और प्रोत्साहित किया जा रहा है. इससे कुम्हार परिवार पहले चाइनीज दीए से परेशान थे. अब गोबर के दीए बनने से रोजी-रोटी का संकट बढ़ रहा है. जिले के लगभग सभी कुम्हार परिवार केवल कुम्हार से जुड़े अपने पैतृक व्यवसाय पर आश्रित हैं.

स्टील, एल्यूमिनियम के भी बर्तन का पड़ा है असर

इतना ही नहीं कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. आज के परिवेश में जब से स्टील एल्यूमीनियम के बर्तन बनने शुरू हुए हैं. तब से कुम्हारों का पैतृक व्यवसाय विलुप्ति के कगार पर पहुंच गया है. केवल त्यौहारी सीजन में ही कुम्हारों को कुछ कमाई हो जाती है. इधर, कुम्हारों ने छत्तीसगढ़ सरकार पर आरोप लगाया है कि वह गोबर के दीए को बढ़ावा देकर उनकी कमाई को प्रभावित करने का काम कर रहे हैं.

सरकार से कर रहे मांग

साथ ही छत्तीसगढ़ कुंभकार समाज ने सरकार से मांग की है कि, गोबर से निर्मित दीए की अपेक्षा कुम्हारों की तरफ से बनाए गए मिट्टी के दीए का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा करने की बात की जाए. ताकि उनके द्धारा बनाए गए दीए बिक सके. इस संबंध में धमतरी कलेक्टर जयप्रकाश मौर्य ने कहा कि मार्केट में डिमांड के अनुसार गोबर से बनाए गए सामग्री को प्रोत्साहित किया जा रहा है.

बालोदः पिछले कई वर्षों से चाइनीज बल्बों (Chinese bulbs) ने कुम्हार के दीपों (diyas) की लौ को कम कर दिया था. हालांकि चाइनीज (Chinese) वस्तुओं के वहिष्कार से पिछले दो वर्षों से कुम्हारों को राहत तो थी, लेकिन कोरोना की मार से वो भी न बच सके. एसे में इस साल गोबर से बने दीयों (Dung lamps) की छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh)में काफी डिमांड है. बताया जा रहा है कि गोबर के दीये न सिर्फ देखने में सुन्दर होते हैं, बल्कि इसे जलाने के बाद खाद के रूप में छोटे-मोटे पेड़-पौधों में इस्तेमाल किया जा सकता है.

गोबर के दीयों की बढ़ी मांग

SPECIAL: इस दिवाली ईको फ्रेंडली दीयों की भारी डिमांड, इस गांव की महिलाएं गोबर के दीए बनाकर बन रहीं सशक्त

लोगों को पसंद आ रहे गोबर के दीए

इस बार बाजारों में गोबर के बने दीये लोग खासा पसंद कर रहे हैं, यही कारण है कि कुम्हार के मिट्टी के दीए आज भी ग्राहकों के राह तक रहे हैं. दीपावली पर्व कुम्हारों के लिए भी बेहद खास होता है. मिट्टी से बनाए दीए, मां लक्ष्मी की मूर्तियां, मटकी इत्यादि पूजन में प्रयुक्त होने वाले सामानों की विशेष मांग रहती है, लेकिन बीते कुछ वर्षों से चाइनीज बाजार ने इनकी कमर तोड़ कर रख दी थी. अब-जब से गोबर के दीए को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार द्वारा योजना बनाई गई है. तो एक बार फिर कुम्हारों के जीवन यापन में संकट देखने को मिल रहा है. पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष 25 फीसद कुम्हार ऐसे हैं, जिन्होंने दीए बनाने का कार्य लगभग छोड़ दिया है. इनकी मांग है कि जो समूह गोबर के लिए बना रहे हैं उसके बदले कुम्हारों को यह काम दिया जाना था.

गोबर के दीए से मुश्किल में कुम्हार

बता दें कि इस बार बाजार में गोबर के दीये आने से कुम्हारों की उम्मीद टूट गई है. वजह है कि लोग गोबर से बने दीए को ज्यादा पसंद कर रहे हैं. दूसरी ओर सरकार भी गोबर से बने दीए को उपयोग में लाने के लिए लोगों को प्रेरित कर रही है. कुम्हार बताते हैं कि पहले सब कुछ ठीक था. कुम्हार अपने काम में मस्त थे. उन्हें उम्मीद थी कि हर बार की तरह इस बार भी वे अच्छी कमाई कर लेंगे. लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है. बालोद जिले के ग्राम बरही में जब ईटीवी भारत की टीम पहुंची तो वहां निवासरत कुम्हारों ने अपनी व्यथा बताई.

साल भर से रहता है इंतजार

कुम्हारों को साल भर इस पर्व का इंतजार रहता है. वे मिट्टी के दीए बनाकर इस पर्व में आमदनी की बाट जोहते हैं. लेकिन इस साल सब कुछ उम्मीद के मुताबिक नहीं हो रहा है. कोरोना की मार से परेशान कुम्हारों को पहले गणेश पूजा में नुकसान उठाना पड़ा अब दिवाली में भी नुकसान के हालात बन रहे हैं. जिले के कुम्हार छोटूलाल कुम्भकार बताते हैं कि अब दिवाली का त्यौहार पास है,जिसके लिए शासन की तरफ से गोबर के दीए बनवाए जा रहे हैं. उसे शासन स्तर पर प्रचार-प्रसार और प्रोत्साहित किया जा रहा है. इससे कुम्हार परिवार पहले चाइनीज दीए से परेशान थे. अब गोबर के दीए बनने से रोजी-रोटी का संकट बढ़ रहा है. जिले के लगभग सभी कुम्हार परिवार केवल कुम्हार से जुड़े अपने पैतृक व्यवसाय पर आश्रित हैं.

स्टील, एल्यूमिनियम के भी बर्तन का पड़ा है असर

इतना ही नहीं कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. आज के परिवेश में जब से स्टील एल्यूमीनियम के बर्तन बनने शुरू हुए हैं. तब से कुम्हारों का पैतृक व्यवसाय विलुप्ति के कगार पर पहुंच गया है. केवल त्यौहारी सीजन में ही कुम्हारों को कुछ कमाई हो जाती है. इधर, कुम्हारों ने छत्तीसगढ़ सरकार पर आरोप लगाया है कि वह गोबर के दीए को बढ़ावा देकर उनकी कमाई को प्रभावित करने का काम कर रहे हैं.

सरकार से कर रहे मांग

साथ ही छत्तीसगढ़ कुंभकार समाज ने सरकार से मांग की है कि, गोबर से निर्मित दीए की अपेक्षा कुम्हारों की तरफ से बनाए गए मिट्टी के दीए का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा करने की बात की जाए. ताकि उनके द्धारा बनाए गए दीए बिक सके. इस संबंध में धमतरी कलेक्टर जयप्रकाश मौर्य ने कहा कि मार्केट में डिमांड के अनुसार गोबर से बनाए गए सामग्री को प्रोत्साहित किया जा रहा है.

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