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Special: लॉकडाउन में महिला सशक्तिकरण की मिसाल हैं बलरामपुर की बैंक सखियां

बलरामपुर की बैंक सखियों ने महिला सशक्तिकरण की मिसाल पेश की है. 468 ग्राम पंचायतों में 81 बैंक सखी काम कर रही हैं. जो लॉकडाउन के दौरान निरंतर ग्रामीणों को मदद पहुंचा रहीं हैं.

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मिसाल हैं बलरामपुर की बैंक सखियां
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Published : May 27, 2020, 9:57 PM IST

बलरामपुर: कोरोनाकाल में बलरामपुर की बैंक सखियों ने महिला सशक्तिकरण की मिसाल पेश की है. छत्तीसगढ़ और झारखंड की सीमा पर बसा बलरामपुर एक आदिवासी बाहुल्य जिला है. यहां की बैंक सखियों ने लॉकडाउन के दौरान अपनी मेहनत से ग्रामीणों के घरों में रुपयों की कमी नहीं होने दी . इनके जरिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को इस मुश्किल दौर में रफ्तार मिली है. ग्रामीण लोगों को कैश की किल्लत से दो चार नहीं होना पड़ा. लॉकडाउन में गांव का संपर्क शहरों से टूट गया, लेकिन बैंक सखियों ने गांव में बैंक की कमी महसूस नहीं होने दी.

मिसाल हैं बलरामपुर की बैंक सखियां

ऐसे में ग्रामीण कोरोना वायरस से अपना बचाव भी कर पा रहे हैं, साथ ही बैंकों में भीड़ भी नहीं हो रही है. इसके अलावा ग्रामीणों का मनरेगा मजदूरी, गैस सब्सिडी, वृद्धा पेंशन, दिव्यांग पेंशन को घर-घर पहुंचाने के लिए ये बैंक सखी काम कर रही हैं. बैंक सखियों ने ग्रामीणों के साथ ही खुद का भी ख्याल रखा है. ग्रामीण इलाकों में जाने के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ख्याल रख रहीं हैं. ग्रामीण शासन के नियमों का पालन भी कर रहीं हैं. मास्क ,सैनिटाइजर और ग्लब्स का प्रॉपर इस्तेमाल भी कर रहीं हैं.

पढ़ें: छत्तीसगढ़: कोरोना संकट के बीच सरकारी कर्मचारियों पर 'चाबुक', प्रमोशन और इंक्रीमेंट पर रोक

कितने गांव संभाल रहीं बैंक सखिंयां

जिला भले ही आदिवासी बहुल हो, लेकिन सरकारी योजनाएं यहां धरातल में कमाल का काम कर रहीं हैं. यहां 2 लाख 88 हजार जनधन खाते हैं. जिन्हें 468 ग्राम पंचायतों के ग्रामीणों ने खुलवाएं हैं. अब बैंक सखी इन खातों की रकम इन ग्रामीणों के घरों तक पहुंचाती हैं. 468 ग्राम पंचायतों में 81 बैंक सखी काम कर रही हैं. 6 गांव का एक क्लस्टर बनाया गया है और एक क्लस्टर की जिम्मेदारी एक बैंक सखी को दी गई है.

एक साल में आत्मनिर्भर बन गई

बैंक सखी योजना का शुभारंभ एक साल पहले कलेक्टर ने किया था. आज ये बैंक सखियां रुपये कमाकर खुद को आत्मनिर्भर तो बना ही रहीं हैं. साथ ही ग्रामीणों की मदद को आगे आ रही हैं. कलेक्टर ने बताया है कि प्रतिदिन का औसतन ट्रांजक्शन 9 से 10 लाख रुपए का है. जिससे अच्छी कमाई हो रही है.

बलरामपुर: कोरोनाकाल में बलरामपुर की बैंक सखियों ने महिला सशक्तिकरण की मिसाल पेश की है. छत्तीसगढ़ और झारखंड की सीमा पर बसा बलरामपुर एक आदिवासी बाहुल्य जिला है. यहां की बैंक सखियों ने लॉकडाउन के दौरान अपनी मेहनत से ग्रामीणों के घरों में रुपयों की कमी नहीं होने दी . इनके जरिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को इस मुश्किल दौर में रफ्तार मिली है. ग्रामीण लोगों को कैश की किल्लत से दो चार नहीं होना पड़ा. लॉकडाउन में गांव का संपर्क शहरों से टूट गया, लेकिन बैंक सखियों ने गांव में बैंक की कमी महसूस नहीं होने दी.

मिसाल हैं बलरामपुर की बैंक सखियां

ऐसे में ग्रामीण कोरोना वायरस से अपना बचाव भी कर पा रहे हैं, साथ ही बैंकों में भीड़ भी नहीं हो रही है. इसके अलावा ग्रामीणों का मनरेगा मजदूरी, गैस सब्सिडी, वृद्धा पेंशन, दिव्यांग पेंशन को घर-घर पहुंचाने के लिए ये बैंक सखी काम कर रही हैं. बैंक सखियों ने ग्रामीणों के साथ ही खुद का भी ख्याल रखा है. ग्रामीण इलाकों में जाने के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ख्याल रख रहीं हैं. ग्रामीण शासन के नियमों का पालन भी कर रहीं हैं. मास्क ,सैनिटाइजर और ग्लब्स का प्रॉपर इस्तेमाल भी कर रहीं हैं.

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कितने गांव संभाल रहीं बैंक सखिंयां

जिला भले ही आदिवासी बहुल हो, लेकिन सरकारी योजनाएं यहां धरातल में कमाल का काम कर रहीं हैं. यहां 2 लाख 88 हजार जनधन खाते हैं. जिन्हें 468 ग्राम पंचायतों के ग्रामीणों ने खुलवाएं हैं. अब बैंक सखी इन खातों की रकम इन ग्रामीणों के घरों तक पहुंचाती हैं. 468 ग्राम पंचायतों में 81 बैंक सखी काम कर रही हैं. 6 गांव का एक क्लस्टर बनाया गया है और एक क्लस्टर की जिम्मेदारी एक बैंक सखी को दी गई है.

एक साल में आत्मनिर्भर बन गई

बैंक सखी योजना का शुभारंभ एक साल पहले कलेक्टर ने किया था. आज ये बैंक सखियां रुपये कमाकर खुद को आत्मनिर्भर तो बना ही रहीं हैं. साथ ही ग्रामीणों की मदद को आगे आ रही हैं. कलेक्टर ने बताया है कि प्रतिदिन का औसतन ट्रांजक्शन 9 से 10 लाख रुपए का है. जिससे अच्छी कमाई हो रही है.

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