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Bamboo Craft in Balrampur: बैम्बू क्राफ्टिंग से कमाई के साथ बलरामपुर के कारीगर पूर्वजों की कला को बढ़ा रहे आगे

Story of Balrampur Bamboo craft man Himmat बलरामपुर में हिम्मत गहरवार और उनका पूरा परिवार बांस से हर दिन इस्तेमाल होने वाले सामान बनाते हैं. बांस से बनी वस्तुओं को बेचकर इनका परिवार चलता है. हिम्मत और उसके पूरे परिवार ने पूर्वजों से ये गुण सीखा है. Bamboo Craft in Balrampur

Story of Balrampur Bamboo craft man Himmat
बलरामपुर के बांस शिल्पकार हिम्मत
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Dec 20, 2023, 7:56 PM IST

Updated : Dec 20, 2023, 9:44 PM IST

बलरामपुर के कारीगर पूर्वजों की कला को बढ़ा रहे आगे

बलरामपुर: अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों मे बांस से बने सामान का इस्तेमाल लोग घरों में करते हैं. यही कारण है कि इसकी डिमांड भी ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक होती है. खासकर सूपा और दउरा तो लोगों के घर-घर में होता है. हालांकि समय के साथ इसके जगह पर लोगों ने आधुनिक प्लास्टिक से बने सामानों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. बावजूद इसके कुछ ग्रामीण आज भी बांस से हर दिन इस्तेमाल होने वाले सामानों को बनाते हैं, क्योंकि विकल्प उतना बेहतर नहीं होता, जितना बांस से बनीं सामान होती है. कई लोग आज भी बांस से उपयोगी सामान बनाकर उसे बाजार में ऊंचे दामों में बेचते हैं.

बांस के सामान बनाकर चला रहे पूरा परिवार: दरअसल, हम बात कह रहे हैं बलरामपुर जिले के हिम्मत गहरवार की. ये तूरी बसोर जाति से हैं. बांस का सामान बनाना इनका पारिवारिक व्यवसाय है. यही कारण है ये इसी को बनाकर बेचते हैं. इसी से इनका घर परिवार चलता है. या यूं कहें कि इसी से इनकी आजीविका चलती है. हिम्मत गहरवार का पूरा परिवार मिलकर बांस से दैनिक उपयोग का सामान तैयार करता है. बांस शिल्प इनका पैतृक व्यवसाय है. ये पूरा परिवार बांस से तरह-तरह के उपयोगी सामान बनाकर बेचते हैं. बांस से बनाए सामान बेचकर ही अपना गुजर-बसर करते हैं. ये परिवार पीढ़ी-दर-पीढ़ी बांस से बना सामान बेचकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं.

हमारे पूर्वज बांस के सामान बनाने का काम करते थे. पूर्वजों को देखकर यह काम सीखा है. हमारी तूरी जाति बांस के सूपा, दउरा, टोकरी, झांपी सहित बांस के अन्य सामान बनाने का काम करती है. हम इससे ही अपनी आजिविका चलाते हैं. - हिम्मत गहरवार, बांस शिल्पकार

बांस से बने सामान बेचकर करते हैं गुजारा: ये पूरा परिवार बांस से बनी वस्तुएं बेचकर उससे अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. बांस शिल्प छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में काफी प्रचलित है. बांस के कई उपयोग हैं. ये परिवार पुश्तैनी हुनर को न केवल अपनाए हुए हैं, बल्कि इसी हुनर पर निर्भर भी हैं.

हम बांस से सामान बनाकर बेचते हैं. हमने अपने माता-पिता और दादा-दादी को देखकर ही यह काम सीखा है. बांस के सामान सूपा, दउरा, टोकरी और झांपी बनाकर 200 रुपए से लेकर 600 रुपए तक में बेचते हैं.- लक्ष्मी तूरी, बांस शिल्पकार

इस समय रहती है अधिक डिमांड: बांस शिल्पकार परिवार की मानें तो नवंबर से मार्च माह तक रामानुजगंज के जामवंतपुर में सड़क किनारे झोपड़ी बनाकर रहते हैं. ये परिवार बांस के सामान बनाकर बेचते हैं. यहां महुआ के सीजन में महुआ चुनकर रखने के लिए छोटी-बड़ी टोकरियों की काफी डिमांड रहती है. मार्च के महीने के बाद वापस अपने गांव शंकरगढ़ के घुघरी कला लौट जाते हैं.

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बलरामपुर: अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों मे बांस से बने सामान का इस्तेमाल लोग घरों में करते हैं. यही कारण है कि इसकी डिमांड भी ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक होती है. खासकर सूपा और दउरा तो लोगों के घर-घर में होता है. हालांकि समय के साथ इसके जगह पर लोगों ने आधुनिक प्लास्टिक से बने सामानों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. बावजूद इसके कुछ ग्रामीण आज भी बांस से हर दिन इस्तेमाल होने वाले सामानों को बनाते हैं, क्योंकि विकल्प उतना बेहतर नहीं होता, जितना बांस से बनीं सामान होती है. कई लोग आज भी बांस से उपयोगी सामान बनाकर उसे बाजार में ऊंचे दामों में बेचते हैं.

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हमारे पूर्वज बांस के सामान बनाने का काम करते थे. पूर्वजों को देखकर यह काम सीखा है. हमारी तूरी जाति बांस के सूपा, दउरा, टोकरी, झांपी सहित बांस के अन्य सामान बनाने का काम करती है. हम इससे ही अपनी आजिविका चलाते हैं. - हिम्मत गहरवार, बांस शिल्पकार

बांस से बने सामान बेचकर करते हैं गुजारा: ये पूरा परिवार बांस से बनी वस्तुएं बेचकर उससे अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. बांस शिल्प छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में काफी प्रचलित है. बांस के कई उपयोग हैं. ये परिवार पुश्तैनी हुनर को न केवल अपनाए हुए हैं, बल्कि इसी हुनर पर निर्भर भी हैं.

हम बांस से सामान बनाकर बेचते हैं. हमने अपने माता-पिता और दादा-दादी को देखकर ही यह काम सीखा है. बांस के सामान सूपा, दउरा, टोकरी और झांपी बनाकर 200 रुपए से लेकर 600 रुपए तक में बेचते हैं.- लक्ष्मी तूरी, बांस शिल्पकार

इस समय रहती है अधिक डिमांड: बांस शिल्पकार परिवार की मानें तो नवंबर से मार्च माह तक रामानुजगंज के जामवंतपुर में सड़क किनारे झोपड़ी बनाकर रहते हैं. ये परिवार बांस के सामान बनाकर बेचते हैं. यहां महुआ के सीजन में महुआ चुनकर रखने के लिए छोटी-बड़ी टोकरियों की काफी डिमांड रहती है. मार्च के महीने के बाद वापस अपने गांव शंकरगढ़ के घुघरी कला लौट जाते हैं.

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Last Updated : Dec 20, 2023, 9:44 PM IST
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