अम्बिकापुर: विश्व पशु चिकित्सा दिवस हर साल अप्रैल के अंतिम शनिवार को मनाया जाता है. इस साल 29 अप्रैल को विश्व पशु चिकित्सा दिवस है. पशु चिकित्सा सुने पर ऐसा लगता है कि जानवरों के इलाज का विभाग. लेकिन इस दिन को महज पशु चिकित्सा ही नहीं अन्य उद्देश्यों के लिए भी सेलिब्रेट किया जाता है. इस बारे में अधिक जानकारी के लिए ईटीवी भारत ने वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ. चंद्र कुमार मिश्रा से बातचीत की. उन्होंने इस दिन के उद्देश्य के साथ-साथ पशु चिकित्सकों की समाज में महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में भी बताया.
बढ़ी है पशु चिकित्सा: डॉ. चंद्र कुमार मिश्रा ने बताया कि, "इस दिन का उद्देश्य इन बातों को बताना है कि पशु चिकित्सक किस तरह से इलाज के साथ पशुओं में उत्पादन क्षमता बढ़ाने का काम कर रहे हैं. इससे किसानों की आय बढ़ती है. इस तरह हम देखते हैं कि पशु चिकित्सक की आज उपयोगिता बढ़ी है. इन दिनों पशु चिकित्सा का कार्यक्षेत्र भी व्यापक हुआ है."
जनसंख्या आधार पर उत्पादन में बढ़त जरूरी: पशु चिकित्सकों का उत्पादन क्षमता बढ़ाने में अहम रोल है. किसानों की आय से जुड़ा डेयरी या बॉयलर फॉर्म हर जगह काम करता है. इसमें उत्पादन बढ़ाना बेहद जरूरी होता है. क्योंकि जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती जा रही है, चाहे दूध हो या मांस सबकी मांग बढ़ रही है. यदि हम आज इसको नही बढ़ाएंगे तो आने वाले समय में भूखमरी जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाएगी. आज के समय में पशु चिकित्सक का दायित्व है कि जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है, मांस और दूध का उत्पादन भी बढ़ाया जाये.
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डेयरी को बढ़ावा देना: पशु चिकित्सा विभाग ने जब डेयरी में काम किया तो कृत्रिम गर्भधारण का काम शुरू हुआ. पहले हमारे पास गाय होती थी, वो 1 से 2 लीटर दूध देती थी. जैसे ही भारत में श्वेत क्रांति आई, लोगों ने कृत्रिम गर्भधारण पर काम किया. आज हमारे देश में एक गाय से 20 से 25 लीटर तक दूध उपल्ब्ध होती है. इस तरह से उत्पादन बढ़ा है. जब उत्पादन बढ़ा तो किसान की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ. इसमें हम दो चीजों को देखते हैं कि बढ़े हुए उत्पादन से किसान की आय बढ़ी है. आबादी के साथ-साथ देश में दूध की मांग भी पूरी हुई है. इसमें पशु चिकित्सक का खास योगदान रहा है.
सेक्स शॉर्ट सीमेन से कृत्रिम गर्भधारण: पशु चिकित्सकों ने नवाचार किया. ऋषिकेश से सेक्स शॉर्ट सीमेन लाकर कृत्रिम गर्भधारण शुरू किया. जिसमें काफी सफलता मिली. सेक्स शॉर्ट सीमेन से कृत्रिम गर्भधारण करने से 90 से 92 फीसद बछिया का जन्म होता है. इससे किसानों को खासा लाभ होता है. पुरानी विधि से हुए गर्भधारण पर नर और मादा दोनो ही 50 फीसद के जने जाते थे. मांस का उत्पादन बढ़ाने के लिये पशु चिकित्सकों ने बकरियों में भी यह शुरू किया क्योंकि देशी नस्ल का वजन काफी कम होता है. इससे उन्नत नस्ल की बकरियों से उत्पादन बढ़ा है. कृत्रिम गर्भाधारण के कारण लोगों को बकरा नहीं रखना पड़ता और उन्नत नस्ल के बकरों से अधिक वजन के बकरे मिल रहे है.