सरगुजा: कोरोना संक्रमण काल ने पूरी दुनिया की जीवनशैली और कार्यशैली को बदलकर रख दिया. लगातार बढ़ते संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए छत्तीसगढ़ में लॉकडाउन भी किया गया. कोरोना सकंट के मद्देनजर किए गए लॉकडाउन ने प्रदेश में दैनिक दिनचर्या में उपयोग किए जाने वाले राशन और सब्जी की दरों पर गहरा प्रभाव डाला. प्रदेश में राशन और सब्जियों के दाम इन दिनों आसमान छू रहे हैं. ETV भारत ने अंबिकापुर के लोगों और सब्जी व्यापारियों से इसे लेकर बातचीत की और पाया कि आम लोगों की जिदंगी पर इस महंगाई का काफी असर पड़ा है.
लगातार कई लॉकडाउन ने कोविड-19 की चेन तो नहीं तोड़ी, बल्कि आम लोगों की कमर जरूर टूटी हुई नजर आ रही है. बाजार बंद होने से आर्थिक मंदी आई और इसका असर प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों पर पड़ा, लिहाजा लोग बीते 6 महीनों से परेशान हैं. इस दौरान बाजार में आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमत ने तो मानो कहर ही ढाया हो, जिसका सीधा असर आम आदमी के बजट पर पड़ता है.
लोगों पर पड़ी महंगाई की मार
किसी भी विपदा काल में इंसान अपनी सारी जरूरतें रोक सकता है, लेकिन सब्जी, राशन, दवाईयां जैसी कुछ ऐसी आवश्यकताएं हैं, जो जिंदा रहने के लिए जरूरी हैं और इसलिए इन्हें आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में शामिल किया गया है. इन सामानों के दाम अब लगातार बढ़ रहे हैं, नतीजतन लोगों पर महंगाई की मार पड़ रही है.
ETV भारत की पड़ताल में यह बात सामने आई कि सब्जियों की कीमत में ज्यादा बढ़ोतरी हुई है, हालांकि दाम तो राशन और किराने के भी बढ़े हैं, लेकिन सिर्फ खुले में बिकने वाले सामानों के. जैसे दाल और तेल के दाम 10 प्रतिशत ही ज्यादा हैं, लेकिन सब्जियों की कीमत में तेज उछाल आया है. आमतौर पर 20 रुपए किलो बिकने वाला आलू भी 50 रुपए किलो बिक रहा है.
महंगा हुआ सब्जी का स्वाद
ज्यादातर लोग दो सब्जियों का उपयोग बड़ी मात्रा में करते हैं, जिनमें आलू और टमाटर शामिल हैं. वर्तमान में आलू 50 रुपए और टमाटर 60-70 रुपए किलो में बेचा जा रहा है. जिसका सीधा नुकसान आम लोगों की जेब पर पड़ रहा है. लोग मजबूर हैं अधिक कीमत पर सामान खरीदने को. जो वस्तुएं सील बंद और एमआरपी के साथ बाजार में उपलब्ध हैं, उनके दाम तो नहीं बढ़े हैं. ऐसे प्रोडक्ट जैसे साबुन, टूथपेस्ट ये सब उस प्रिंट कीमत पर ही उपलब्ध हैं, लेकिन किलो के भाव से खुले बिकने वाले अनाज के रेट में थोड़ी वृद्धि देखी जा रही है.
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सब्जियों को लोग स्टोर करके भी नहीं रख सकते, क्योंकि ज्यादा दिन में उनका ताजापन खत्म हो जाता है और सब्जियां जल्द खराब हो जाती हैं. ऐसे में लोग महंगी कीमत पर सब्जियां लेने को वे मजबूर हैं. जनता महंगाई का सीधा आरोप सरकार पर लगा रही है.
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बहरहाल पड़ताल में सामने आया कि किराने के सामान के रेट तो फिर भी ठीक हैं, क्योंकि आजकल ज्यादातर सामान पैकेट में आते हैं और मैक्सिमम रिटेल प्राइस बेचे या खरीदे जाते हैं, लेकिन सब्जियों की कीमत में जमकर लूट मची हुई है. ना कोई रेट का निर्धारण है और ना ही कोई मॉनिटरिंग करने वाला, लिहाजा रोज कोचियों के द्वारा अपने हिसाब से बाजार में रेट खोला जाता है और लोगों की मजबूरी होती है उसी कीमत पर सामान खरीदने की. देखना यह होगा कि अब कलेक्टर के संज्ञान में लाए जाने के बाद प्रशासन क्या करवाई करता है.