सरगुजा : संभाग का मुख्यालय अंबिकापुर विधानसभा सीट अनारक्षित है, लेकिन जीत के लिए यहां भी आदिवासी मतदाता ही डिसाइडिंग फैक्टर हैं. यहां वर्तमान में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव विधायक हैं, जिन्होंने करीब 40 हजार के अंतर से जीत दर्ज की थी. दूसरे मंत्री अमरजीत भगत ने भी करीब 36 हजार वोट से बीजेपी के उम्मीदवार को शिकस्त दी. इस संभाग में 2018 तक आदिवासी मतदाता एक तरफा कांग्रेस के साथ था. अब एक बार फिर सूबे में चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में आदिवासी मतदाताओं को साधना हर राजनीतिक दल के लिए बेहद अहम है.
बीजेपी ने बुलाया आदिवासी सम्मेलन : सरगुजा में बड़ी शिकस्त खा चुकी बीजेपी ने नई टीम के साथ चुनावी तैयारी शुरू की है. आदिवासी वोटर्स को रिझाने के लिए बीजेपी ने प्रदेश कार्यसमिति की बैठक सरगुजा में आयोजित की थी. इसके बाद एक बड़ा जनजातीय सम्मेलन सरगुजा में रखा गया.जिसमें हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोगों को बुलाया गया था. इस सम्मेलन में एमपी के आदिवासी मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते भी आमंत्रित थे.
कांग्रेस ने सरहुल पूजा का किया आयोजन : बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस भी आदिवासी वोटर्स को अपने पक्ष में रखना चाहती है. इसके लिए सरगुजा में सरहुल पूजा का आयोजन किया गया, जिसमें सूबे के मुखिया भूपेश बघेल समेत कैबिनेट मंत्री भी शामिल हुए. आयोजन की पूरी तैयारी कांग्रेस के मंत्री अमरजीत भगत ने की थी.
क्या है बीजेपी की तैयारी : इस बारे में बीजेपी नेता प्रशांत त्रिपाठी कहते हैं कि "जनजातीय वर्ग बीजेपी के साथ रहा है. यह भी सत्य है कि पिछले चुनाव में आदिवासी हमारे साथ कम थे. इसको देखते हुये राष्ट्रपति आदिवासी मुर्मू जी को बनाया गया. इतना ही नहीं 15 नवंबर को हम बिरसामुण्डा जयंती मना रहे हैं. बीजेपी आदिवासियों के लिए जल जीवन मिशन के तहत घर घर तक पानी पहुंचाने का काम कर रही है. एकलव्य विद्यालय का विस्तार कर रही है. पीएम आवास दिए जा रहे हैं. घर घर शौचालय बनवाए हैं. हमारे पास एक से एक आदिवासी लीडर हैं. आने वाले विधानसभा चुनाव में आदिवासी बीजेपी के साथ जाएंगे."
कांग्रेस पर झूठे वादों का आरोप : प्रशांत त्रिपाठी की मानें तो "कांग्रेस ने 2018 में झूठे वादे करके आदिवासियों को बरगलाया था. प्रदेश में शराबंदी का मुद्दा सबसे अहम है. प्रदेश सरकार ने हाथ में गंगाजल लेकर शराबबंदी की कसम खाई थी, लेकिन शराब बंद नहीं की. कांग्रेस चाहती है कि आदिवासी शराब के नशे में डूबे रहें और समाज आगे ना आ सके. इनके मंत्री तो यहां तक कहते है कि शराब पियो और कितनी क्वांटिटी में पीना है ये तक वो बताते हैं. तो आदिवासियों को आगे लाने में कांग्रेस का कोई रोल नही है."
आदिवासी अब भी कांग्रेस के साथ : कांग्रेस नेता जेपी श्रीवास्तव कहते हैं "अपनो को साधा नहीं जाता है. आप इतिहास उठाकर देख लीजिए जब संयुक्त मध्य प्रदेश था तब मध्य प्रदेश में जो सरकार बनती थी वो छत्तीसगढ़ के आदिवासी भाइयों के सहयोग से बनती थी. 2018 का चुनाव आप देखिए जो सघन आदिवासी क्षेत्र है बस्तर और सरगुजा, वहां पूरी सीट हमारे पास हैं. बस्तर में 12 में से 11 सीट मिली थी, एक सीट उप चुनाव में भी कांग्रेस के पास आ गई. भाजपा आदिवासी सम्मेलन करे या कुछ भी करे, ये उनको करना है. हमारे लिए तो आदिवासी हमारे कांग्रेस के सबसे अभिन्न अंग हैं और उन्होंने हमेशा कांग्रेस को साथ दिया है."
बीजेपी पर बांटने का लगाया आरोप : जेपी श्रीवास्तव ने बताया "देखिये बंटवारा करना, जातिगत राजनीति करना, तोड़ना फोड़ना ये भारतीय जनता पार्टी की नीति है. आप राजनीतिक परिपेक्ष्य में देखिये इतिहास में जो भी जाति आधार पर राजनीति किया है वो पनप नही पाई है. भारतीय जनता पार्टी भी यही करती है. जातियों को लाना फिर जातियों को तोड़ना, फिर जातियों को विभाजित करना, फिर उनके अंदर तोड़ फोड़ करना, ये सब करने से कोई फर्क नही पड़ना है. क्योंकि हमारे आदिवासी भाई समझदार हैं. वो समझते हैं कि ये क्यों किया जा रहा है. उस आधार पर उनको अब लगने लगा है कि भाजपा जातियों को तोड़ने वाली पार्टी है,कांग्रेस हमारी हितैषी पार्टी है. इससे हमें लाभ मिलेगा."
यह भी पढ़ें- Raipur: छत्तीसगढ़ की राजनीति में 'बस्तर' के आशीर्वाद से होता है राजतिलक !
हिंदू आदिवासी को साधने का प्रयास : वरिष्ठ पत्रकार मनोज गुप्ता कहते हैं "भले ही संभाग में 5 सीट आदिवासी आरक्षित नहीं है. लेकिन इन सीटों में भी निर्णायक वोट इन्हीं के होते हैं. पिछले चुनाव में बहुत सारे फैक्टर थे, लेकिन आदिवासी समाज का भी झुकाव कांग्रेस के तरफ रहा. यही कारण है कि कांग्रेस की बड़े अंतर से जीत हुई. बीजेपी का खाता भी नहीं खुल सका. कांग्रेस योजनाओं को सामने रखकर आदिवासियों के बीच जाएगी. यहां जितने भी कार्यक्रम हो रहे हैं सभी आदिवासियों से संबंधित ही हैं."
बीजेपी की रणनीति दिख रही उल्टी : मनोज गुप्ता की मानें तो ''बीजेपी की आदिवासी वर्ग को लेकर जो रणनीति है वो छत्तीसगढ़ में उल्टी पड़ती दिख रही है. क्योंकि आदिवासी जाति वर्ग मात्र नहीं है. उनमें अलग-अलग काम करने वाले लोग हैं. ज्यादातर उसमें किसान हैं या नौकरी पेशा वाले लोग हैं. हर व्यक्ति अपना हित देखता है . मौजूदा समय में छत्तीसगढ़ सरकार के कामकाज से आदिवासी वर्ग नाराज नहीं है, जो कांग्रेस को फायदा पहुंचाएगा.''