सरगुजा: छत्तीसगढ़ प्रदेश का सबसे बड़ा संग्रहालय इन दिनों संरक्षण के अभाव में खंडहर में तब्दील होता जा रहा है. यह संग्रहालय इतना जर्जर हो चुका है कि अब यहां न तो सैलानी आते हैं और न इसकी सुध लेने कोई जिम्मेदार. बजट के अभाव और अधिकारियों की अनदेखी ने इसे खंडहर में तब्दील कर दिया है. हालत इतने बुरे हो गए हैं कि बिजली का बिल जमा नहीं होने की वजह से बिजली कनेक्शन भी काट दिया गया है. जिसके कारण शाम होते ही यहां अंधेरा छा जाता है.
2016 में तत्कालीन भजपा सरकार ने अम्बिकापुर में इस संग्रहालय का निर्माण कराया था. लोगों को एक ही स्थान पर प्रदेशभर की पुरातात्विक, साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहरों को देखने-जानने का मौका मिला. पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना 2013 में हुई थी. 3 एकड़ भूमि में से एक एकड़ जमीन पर लगभग डेढ़ करोड़ की लागत से म्यूजियम का निर्माण कराया गया था.
दीवारों में जगह-जगह दरारें
भवन में आठ गैलरी, एक लाइब्रेरी, एक ऑडिटोरियम, एक कार्यालय सहित केयर टेकर के लिए भी कमरे बनाये गये थे. तत्कालीन सरकार ने बड़ी ही धूमधाम से इसका उद्घाटन किया था. युवाओं में पुरातत्व की जानकारी जिंदा रखने के उद्देश्य से इसकी स्थापना की गई. बीतते वक्त के साथ राजधानी में बैठे आला अधिकारियों ने इस संग्रहालय की सुध लेनी छोड़ दी. लिहाजा बजट के अभाव में धीरे-धीरे यह जर्जर होता चला गया. पूरे प्रांगण में जंगली झाड़ी लग चुकी है. इमारत जर्जर होकर टूटने लगे हैं. कई जगह तो जमीन भी धंस रही है. दीवारों में जगह-जगह दरारें पड़ गई हैं, रजवार हाउस की भित्ति भी टूट रही है.
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पुनर्निर्माण का काम 4 वर्षों से अधूरा
एक बार फिर 2016 में करोड़ों रुपये खर्च कर इसका पुनर्निर्माण कराया गया. इसमें संग्रहालय के अंदर रजवार हाउस, कोरवा हाउस, पंडो हाउस, संभाग के प्रमुख स्थलों का आकर्षक नक्शा, झरना, भोरमदेव, गंडई और पाली मंदिर के प्रतिरूप का निर्माण कराया जा रहा है. आधे-अधूरे काम 4 सालों से जहां रुके थे, वहीं पर रुके पड़े हैं. इसके अलावा संभागभर से खुदाई में निकलने वाली बहुमूल्य पुरातात्विक महत्व की मूर्तियों और पत्थरों को भी यहां रखा गया है. इस जर्जर अस्तित्व खोते संग्रहालय में सभी अनमोल वस्तुएं कचरे के समान पड़ी हुई हैं. विभाग की अनदेखी की वजह से इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. विडंबना यह भी है कि संग्रहालय के संबंध में निर्णय लेने वाला एक भी सक्षम अधिकारी सरगुजा में नहीं बैठता है. सारे निर्णय राजधानी स्थित पुरातात्विक विभाग के कार्यालय से ही लिए जाते हैं.
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4 सालों से नहीं मिला वेतन
इतना ही नहीं, यहां कलेक्टर दर पर काम कर रहे भृत्य और केयरटेकर को 4 साल से वेतन नहीं मिला है, लेकिन फिर भी ये दोनों कर्मचारी अपनी ड्यूटी आज तक कर रहे हैं. अपने वेतन के लिए ये कई बार कलेक्टर, उच्चाधिकारियों और मंत्री तक से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन इन्हें आश्वासन के अलावा और कुछ नहीं मिला. यहां के स्टाफ ने बताया कि संग्रहालय की देखरेख में पदस्थ एकलौते अधिकारी अपने पैसों से झाड़ू-पोंछा, डिटर्जेंट जैसी चीजें उन्हें दिलाते हैं. इससे वो इस संग्रहालय की साफ-सफाई करते हैं, लेकिन कब तक ऐसा चलेगा, कोई कर्मचारी या अधिकारी आखिर कब तक और क्यों अपनी जेब से पैसे खर्च करेगा?
जल्द ही शुरू होगा काम
बहरहाल जिले के कलेक्टर संजीव कुमार झा ने बताया कि वो अब इसके संरक्षण के प्रति ध्यान दे रहे हैं, साथ ही संग्रहालय के प्रचार-प्रसार की भी योजना बना रहे हैं, ताकि अब अधिक सैलानी वहां आ सकें. वहीं संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने सीधा आश्वासन दिया है कि संग्रहालय के संबंध में उन्होंने संस्कृति विभाग के सचिव को निर्देश दे दिए हैं. वहां से आदेश भी जारी हो गया है, जल्द ही संग्रहालय में काम शुरू हो जाएगा.