सरगुजा से भगवान राम का नाता पुराना, संभाग के कई हिस्सों में हैं निशानियां
Symbols of Lord Ram प्रभु श्रीराम ने अपने पिता की आज्ञा मानकर 14 वर्षों का कठिन वनवास चुना.इस दौरान राम छत्तीसगढ़ आएं.जहां उन्होंने 10 वर्ष बिताएं.इस दौरान राम कई जगहों से होकर गुजरे.वनवास के दौरान सरगुजा संभाग में भी राम का प्रवास रहा.जहां आज भी कई निशानियां उनके वनवास की गवाही दे रहे हैं.Ramlala Pratistha
सरगुजा : भगवान राम ने छत्तीसगढ़ में अपना वनवास काल बिताया था. उस समय प्रदेश को दक्षिण कोसल कहा जाता था.जिस क्षेत्र में राम ने वनवास का समय बिताया वो क्षेत्र दंडकारण्य कहलाता था.जहां खूंखार जंगली जानवरों के साथ असुर निवास करते थे. सदियों बाद अब रामजन्मभूमि में भव्य राम मंदिर स्थापित होने जा रहा है.22 जनवरी के दिन अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी.लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं राम के वनवास के दौरान वो सरगुजा के किन क्षेत्रों में आएं.
पंचमुखी शिवमंदिर शिवपुर
सरगुजा और राम का नाता : राजा राम के मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम बनाने तक के सफर का सबसे अहम पड़ाव उनका वनवास काल था. वनवास के कठोर व्रत ने उन्हें इंसान के अवतार में भी भगवान बना दिया.इस पड़ाव में छत्तीसगढ़ के सरगुजा का भी अहम योगदान रहा है. सरगुजा संभाग की सीमा में कुल 40 स्थान ऐसे हैं जहां भगवान राम के चरण पड़े. इस गूढ़ संबंध को जानने के लिए सरकार ने स्थानीय शोधकर्ता अजय चतुर्वेदी को जिम्मेदारी सौंपी थी. अजय चतुर्वेदी ने गांव गांव, जंगल-जंगल घूमकर ग्रामीणों से जानकारी इकट्ठा की.पुरानी किताबों और शोध पत्रों के माध्यम से अजय चतुर्वेदी ने जानकारी इकट्ठा की.
एमसीबी और कोरिया जिला : मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर और कोरिया जिला में भगवान राम ने कुछ समय बिताए हैं. इन दोनों ही जिलों के अंदर कई जगहों पर आज भी राम के वनवास के दौरान छोड़ी गई निशानियां देखने को मिलती है. 1.सीतामढ़ी हरचौका, 2.सीतामढ़ी घाघरा, 3.महादेवन खमरौध, 4.कोटाडोल, 5.सीतामढ़ी छतौड़ा आश्रम, 6.सिद्ध बाबा का आश्रम, 7.देवसील, 8.सीतामढ़ी (गांगी रानी) रामगढ़, 9.अमृतधारा, 10.जटाशंकरी गुफा इन जगहों पर राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ समय बिताया.
सीता चौक, दुप्प्पी ग्राम पंचायत
मवई नदी के तट पर है सीतामढ़ी हरचौका : मवई नदी से होकर प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी छत्तीसगढ़ की सीमा में प्रवेश किए थे. मवई नदी से माता सीता आईं. इसलिए स्थानीय लोगों ने इसका नाम मां आई नदी रखा. जो बाद में मवई नदी के नाम से प्रसिद्ध हुई. नेउर नदी के तट पर बना 3 प्राकृतिक गुफा है. जनश्रुति है कि प्रभु श्रीराम ने दंडक वन की संपूर्ण जानकारी यहीं से ऋषि-मुनियों से हासिल की थी.
सरगुजा से भगवान श्रीराम का गहरा नाता
अमृतधारा : जनश्रुति है कि भगवान श्रीराम ने अमृतधारा में एक सुरंग में कुछ समय व्यतीत किया. यहीं महर्षि विश्रवा ऋषि से भेंट मुलाकात की. इसके बाद जटाशंकरी गुफा में शिव की पूजा अर्चना किया था.
सीता लेखनी पहाड़
सूरजपुर जिला : सूरजपुर जिले में भी भगवान राम के वनवास से जुड़ी निशानियां देखने को मिलती हैं. इस जिले में 11 स्थल ऐसे हैं जहां राम आएं. जिनमें 11. जोगी माड़ा चपदा(पत्थर गुफा), 12. कुदरगढ़ वन देवी देवी पूजा, 13.सीता लेखनी पहाड़ और लक्ष्मण पंजा, 14. रक्सगंडा, 15. रामेश्वरनगर का तीर-धनुष, 16. सरासोर, 17.श्री राम - लक्ष्मण पखना(पत्थर), 18.श्री राम लक्ष्मण पायन मरहट्ठा, 19.साल्हो और बेसाही पहाड़ पोड़ी, 20.अर्द्धनारीश्वर जलेश्वरनाथ शिवपुर, 21.महरमुण्डा ऋषि आश्रम बिलद्वार गुफा, 22. विश्रवाऋषि का आश्रम एवं लक्ष्मण पंजा पिलखा पहाड़ है.सीता लेखनी पहाड़ और लक्ष्मण पंजा : ये स्थल ग्राम पंचायत कैलाशनगर तहसील ओड़गी में स्थित है. ग्रामीण लोगों की मान्यता है कि वनवास काल के समय लक्ष्मण जी माता सीता को यहीं के पत्थरों में पढ़ना लिखना सिखालाए थे. इसलिए पहाड़ का नाम ”सीतालेखनी “ पहाड़ पड़ा. इस पहाड़ी के पत्थर पर कुछ गोल- गोल आकृतियां बनी हैं. इसे ग्रामीण लोग ”सीतालेखनी “ के नाम से जानते हैं. यह शिलालेख शंख लिपि के हैं.रक्सगंडा , ग्राम नवगई, तहसील ओड़गी : इसे सूरजपुर का भेड़ाघाट कहा जाता है. जनश्रुति है कि वनवास काल में भगवान श्रीराम लक्ष्मण ने इस स्थल पर राक्षसों को मार कर इकट्ठा किया था, इसलिए इसे रक्सगंडा कहा जाता है. रक्स मतलब राक्षस और गंडा मतलब ढ़ेर होता है.श्रीराम तीर-धनुष, ग्राम पंचायत में रामेश्वरनगर, तहसील प्रेमनगर: गांव के समीप मनोरम अमझर पहाड़ी़ पर नाले के समीप एक मंदिर में लोहे का तीर-धनुष रखा हुआ है. इस धनुष की लंबाई 12 फीट एवं वजन 90 किलो बताया जाता है, ग्रामीणों की मान्यता है कि यह धनुष भगवान श्रीराम का है.
श्रीराम लक्ष्मण पायन
श्रीराम लक्ष्मण पायन, ग्राम पंचायत -मरहट्ठा, तहसील-प्रतापपुर : एक विशाल चट्टान में अनेक पैरों के निशान देखने को मिलते हैं. जनश्रुति है कि यह पैरों के निशान श्रीराम-लक्ष्मण के हैं. यह प्रसिद्ध स्थल अंबिकापुर से भी नजदीक है. अंबिकापुर मुख्यालय से इसकी दूरी करीब 30 किलोमीटर है.अर्द्धनारीश्वर जलेश्वरनाथ शिवपुरग्राम पंचायत-शिवपुर, तहसील-प्रतापपुर : एक किंवदंती है कि भगवान श्रीराम ने वनवास काल के समय इस शिवलिंग की स्थापना कर पूजा-अर्चना की थी. भगवान श्रीराम जब शिवपुर में शिवलिंग स्थापित किये. उस वक्त माता सीता और लक्ष्मण जी भी साथ आये थे. शिव मंदिर के समीप नाले में ‘‘सीता पांव‘‘ नामक स्थल भी है. यहीं पर माता सीता के पैर के निशान पानी पीने के दौरान एक पत्थर पर पड़े थे. इसी चरण चिन्ह के एड़ी वाले हिस्से से निरंतर जल बह रहा है. इसे स्थानीय लोग ‘‘गोसाई ढोढ़ी‘‘ के नाम से जानते हैं.विश्रवा ऋषि का आश्रम और लक्ष्मण पंजा पिलखा पहाड़ ,ग्राम पंचायत पहाड़गांव, तहसील सूरजपुर : ऐतिहासिक एवं धार्मिक ग्राम पहाड़गांव में प्राचीन काल की राधा - कृष्ण मंदिर और इसके समीप पिलखा पहाड़ी पर लक्ष्मण पंजा नामक स्थल है.बताया जाता है कि वनवास काल में इस पहाड़ी पर विश्रवा ऋषि का आश्रम था. जनश्रुति है कि लक्ष्मण जी पिलखा पहाड़ी की दो चोटी को कांवर में उठाकर उदयपुर के समीप स्थित रामगढ़ पहाड़ी पर ले जाना चाहते थे, लेकिन उनकी कांवर का बहिंगा जो रामरेडी (रतनजोत) के पेड़ का बना हुआ था. जो टूट गया और दोनों चोटी दो तरफ गिर गई जो पिलखा पहाड़ी पर आज दिखाई देता है.बलरामपुर जिला : बलरामपुर जिले में तीन स्थान ऐसे हैं जहां राम से जुड़ी निशानियां देखने को मिलती है. इनमें 23.सीता चौक , 24.सीता चुंआं, 25.रामचौरा पहाड़ है. सीता चौक, दुप्प्पी ग्राम पंचायत, तहसील राजपुर : सीता चौक नामकरण के संबंध में ग्रामीणों ने बताया कि वनवास काल में भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी इस स्थल पर आए थे. इसलिए इस नाले का नाम सीता चौक नाला पड़ा. सीता चौक नाला में लगभग 15-20 फीट लंबे-चौडे़ पत्थर पर चौक पुरने के निशान और अनेक मानव पद चिन्ह बने हुए हैं.यहां पर माता-सीता ने चौका पूरा किया था. पत्थरों पर बने अनेक चरण चिन्ह की आकृतियां भगवान श्रीराम और माता सीता के बताए जाते हैं.रामचौरा पहाड़, ग्राम पंचायत सारंगपुर, तहसील बलरामपुर : अंबिकापुर मार्ग पर तातापानी से चार किलोमीटर दूर रजबंधा गांव स्थित है. इसी गांव से लगे ग्राम पंचायत सारंगपुर में पांच सौ फीट ऊंचा रामचौरा पहाड़ है. किवदंती है कि रामचौरा पहाड़ में राम, सीता, लक्ष्मण के आने से ही पहाड़ का नाम रामचौरा पहाड़ पड़ा. वनवास के समय कुछ दिन तक इसी रामचौरा पहाड़ में तीनों ने अपना निवास बनाया था.धोबिन कुंड : रामचौरा पहाड़ी के ऊपर पूजा स्थल से मात्र 200 मीटर की दूरी पर एक छोटा सा कुंड है, जहां पर इस भीषण गर्मी में भी हमेशा पानी जमा रहता है, किवदंती है कि राम, सीता, लक्ष्मण यहां वनवास के दौरान कुण्ड में स्नान किये थे. कहा जाता है कि तब यहां वस्त्र धोने के लिए धोबी लोग पहुंचते थे, वर्तमान में भी यहां धोबिन कुण्ड विद्यमान हैं.
सरगुजा जिला : सरगुजा जिले में भी प्रभु श्रीराम ने कुछ वक्त बिताया था. जिनमें 26.विश्रामपुर अंबिकापुर, 27.बड़े दमाली का बंदर कोट, 28.यमदग्नि ऋषि की तपोभूमि देवगढ़, सतमहला, 29.महेशपुर, 30.सीता बइंगरा, 31.लक्ष्मण बइंगरा, 32.जोगी माड़ा- रामगढ़, 33.लक्ष्मणगढ़ और मिरगा डाड़, 34.छत्तीसगढ़ का शिमला मैनपाट शरभंग ऋषि का आश्रम, 35.मंगरैलगढ़, 36.महारानीपुर का देउर मंदिर प्रसिद्ध हैं.
राम,लक्ष्मण और सीता ने किया था विश्राम : महाराजा रघुनाथशरण सिंहदेव बहादुर (1817-1917) के समय सरगुजा की राजधानी प्रतापपुर से वर्तमान अंबिकापुर लाई गई. उस समय अंबिकापुर को बिश्रामपुर कहा जाता था. 16 अक्टूबर 1905 ईस्वी को सरगुजा के मध्य प्रांत के प्रशासन के अधीन होने तक विश्रामपुर कहा जाता था. विश्रामपुर नामकरण के संबंध में जनश्रुति है कि रामायण युग में वनवास के समय भगवान श्रीराम, माता सीता एवं लक्ष्मण जी दंडकारण्य से गुजरते वक्त वर्तमान अंबिकापुर में कुछ समय विश्राम किए थे, इसलिए विश्रामपुर नाम पड़ा था.
यमदग्नि ऋषि की तपोभूमि देवगढ़ और सतमहला उदयपुर तहसील- सतमहला में अनेक प्राचीन मंदिर एवं प्राचीन महलों के अवशेष हैं. जनश्रुति है कि यहां पर सात महलों के अवशेष होने के कारण इसे सतमहला कहा जाता है. यहां अनेक प्राचीन तालाब भी हैं. एक मान्यता है कि यहां प्राचीन काल में राजा का सप्तप्रमाण होता था, इसलिए इसे सतमहला कहते हैं.
सीता बइंगरा, लक्ष्मण बइंगरा और जोगी माड़ा- रामगढ़ ग्राम पंचायत-पुटा, तहसील उदयपुर : प्रचलित मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम, माता सीता एवं लक्ष्मण जी ने वनवास काल का कुछ समय यहां व्यतीत किया था. इसलिए इस पर्वत को रामगढ़ कहा जाता है. इस मान्यता को यहां की सीता बइंगरा, जोगी माड़ा गुफा एवं लक्ष्मण बइंगरा प्रमाणित करती हैं, मान्यता है कि सीता जी ने जहां आश्रय लिया था उसे सीता बइंगरा कहते हैं.
भगवान श्रीराम एक जोगी की तरह रहते थे, इसलिए जोगी माड़ा गुफा का नाम पड़ा : मान्यता है कि वनवासकाल में लक्ष्मण जी लक्ष्मण बइंगरा से भाई श्रीराम और माता सीता की रखवाली करते थे. रामगढ़ की ऊंची चढ़ाई चढ़ने पर वशिष्ठ मुनि का गुफा, राम-जानकी मंदिर , जानकी तालाब और सीता-कुण्ड है
शरभंग ऋषि का आश्रम ग्राम पंचायत शरभंज, तहसील मैनपाट : प्राकृतिक आकर्षण के कारण प्राचीन काल में यह स्थल मुनियों एवं तपस्वियों की तपोभूमि रही, जनश्रुति है कि प्रभु श्रीराम वनवास काल में मैनी नदी से होकर मैनपाट पहुंचे और कुछ समय व्यतीत किए थे. एक किंवदंती ये भी है कि यहां श्रीराम महर्षि शरभंग एवं महर्षि दंतंली से मुलाकात किए थे. शरभंग ऋषि के नाम पर यहां शरभंज ग्राम भी है.इस स्थल पर शरभंजा जलप्रपात दर्शनीय है.
जशपुर जिला : जशपुर जिले के कुछ हिस्सों में भी भगवान श्रीराम ने समय बिताया है. जिनमें 37. शिव मंदिर बगिचा, 38.लेखा पत्थर रेंगले, 39.लक्ष्मण पंजा रिंगारघाट, 40.किलकिला आश्रम प्रमुख हैं.
किलकिला आश्रम, ग्राम पंचायत किलकिला, तहसील पत्थलगांव- यहां प्राचीन शिव मंदिर है. इसी परिसर में राम-जानकी मंदिर बनाया गया है. जनश्रुति है कि वनवास काल में भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी इस आश्रम में कुछ समय व्यतीत किए थे. यहां प्राचीन मंदिरों का समूह देखने को मिलता है. यहां से प्रभु श्रीराम रायगढ़ जिले के धर्मजयगढ़ गए.
सरगुजा : भगवान राम ने छत्तीसगढ़ में अपना वनवास काल बिताया था. उस समय प्रदेश को दक्षिण कोसल कहा जाता था.जिस क्षेत्र में राम ने वनवास का समय बिताया वो क्षेत्र दंडकारण्य कहलाता था.जहां खूंखार जंगली जानवरों के साथ असुर निवास करते थे. सदियों बाद अब रामजन्मभूमि में भव्य राम मंदिर स्थापित होने जा रहा है.22 जनवरी के दिन अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी.लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं राम के वनवास के दौरान वो सरगुजा के किन क्षेत्रों में आएं.
पंचमुखी शिवमंदिर शिवपुर
सरगुजा और राम का नाता : राजा राम के मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम बनाने तक के सफर का सबसे अहम पड़ाव उनका वनवास काल था. वनवास के कठोर व्रत ने उन्हें इंसान के अवतार में भी भगवान बना दिया.इस पड़ाव में छत्तीसगढ़ के सरगुजा का भी अहम योगदान रहा है. सरगुजा संभाग की सीमा में कुल 40 स्थान ऐसे हैं जहां भगवान राम के चरण पड़े. इस गूढ़ संबंध को जानने के लिए सरकार ने स्थानीय शोधकर्ता अजय चतुर्वेदी को जिम्मेदारी सौंपी थी. अजय चतुर्वेदी ने गांव गांव, जंगल-जंगल घूमकर ग्रामीणों से जानकारी इकट्ठा की.पुरानी किताबों और शोध पत्रों के माध्यम से अजय चतुर्वेदी ने जानकारी इकट्ठा की.
एमसीबी और कोरिया जिला : मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर और कोरिया जिला में भगवान राम ने कुछ समय बिताए हैं. इन दोनों ही जिलों के अंदर कई जगहों पर आज भी राम के वनवास के दौरान छोड़ी गई निशानियां देखने को मिलती है. 1.सीतामढ़ी हरचौका, 2.सीतामढ़ी घाघरा, 3.महादेवन खमरौध, 4.कोटाडोल, 5.सीतामढ़ी छतौड़ा आश्रम, 6.सिद्ध बाबा का आश्रम, 7.देवसील, 8.सीतामढ़ी (गांगी रानी) रामगढ़, 9.अमृतधारा, 10.जटाशंकरी गुफा इन जगहों पर राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ समय बिताया.
सीता चौक, दुप्प्पी ग्राम पंचायत
मवई नदी के तट पर है सीतामढ़ी हरचौका : मवई नदी से होकर प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी छत्तीसगढ़ की सीमा में प्रवेश किए थे. मवई नदी से माता सीता आईं. इसलिए स्थानीय लोगों ने इसका नाम मां आई नदी रखा. जो बाद में मवई नदी के नाम से प्रसिद्ध हुई. नेउर नदी के तट पर बना 3 प्राकृतिक गुफा है. जनश्रुति है कि प्रभु श्रीराम ने दंडक वन की संपूर्ण जानकारी यहीं से ऋषि-मुनियों से हासिल की थी.
सरगुजा से भगवान श्रीराम का गहरा नाता
अमृतधारा : जनश्रुति है कि भगवान श्रीराम ने अमृतधारा में एक सुरंग में कुछ समय व्यतीत किया. यहीं महर्षि विश्रवा ऋषि से भेंट मुलाकात की. इसके बाद जटाशंकरी गुफा में शिव की पूजा अर्चना किया था.
सीता लेखनी पहाड़
सूरजपुर जिला : सूरजपुर जिले में भी भगवान राम के वनवास से जुड़ी निशानियां देखने को मिलती हैं. इस जिले में 11 स्थल ऐसे हैं जहां राम आएं. जिनमें 11. जोगी माड़ा चपदा(पत्थर गुफा), 12. कुदरगढ़ वन देवी देवी पूजा, 13.सीता लेखनी पहाड़ और लक्ष्मण पंजा, 14. रक्सगंडा, 15. रामेश्वरनगर का तीर-धनुष, 16. सरासोर, 17.श्री राम - लक्ष्मण पखना(पत्थर), 18.श्री राम लक्ष्मण पायन मरहट्ठा, 19.साल्हो और बेसाही पहाड़ पोड़ी, 20.अर्द्धनारीश्वर जलेश्वरनाथ शिवपुर, 21.महरमुण्डा ऋषि आश्रम बिलद्वार गुफा, 22. विश्रवाऋषि का आश्रम एवं लक्ष्मण पंजा पिलखा पहाड़ है.सीता लेखनी पहाड़ और लक्ष्मण पंजा : ये स्थल ग्राम पंचायत कैलाशनगर तहसील ओड़गी में स्थित है. ग्रामीण लोगों की मान्यता है कि वनवास काल के समय लक्ष्मण जी माता सीता को यहीं के पत्थरों में पढ़ना लिखना सिखालाए थे. इसलिए पहाड़ का नाम ”सीतालेखनी “ पहाड़ पड़ा. इस पहाड़ी के पत्थर पर कुछ गोल- गोल आकृतियां बनी हैं. इसे ग्रामीण लोग ”सीतालेखनी “ के नाम से जानते हैं. यह शिलालेख शंख लिपि के हैं.रक्सगंडा , ग्राम नवगई, तहसील ओड़गी : इसे सूरजपुर का भेड़ाघाट कहा जाता है. जनश्रुति है कि वनवास काल में भगवान श्रीराम लक्ष्मण ने इस स्थल पर राक्षसों को मार कर इकट्ठा किया था, इसलिए इसे रक्सगंडा कहा जाता है. रक्स मतलब राक्षस और गंडा मतलब ढ़ेर होता है.श्रीराम तीर-धनुष, ग्राम पंचायत में रामेश्वरनगर, तहसील प्रेमनगर: गांव के समीप मनोरम अमझर पहाड़ी़ पर नाले के समीप एक मंदिर में लोहे का तीर-धनुष रखा हुआ है. इस धनुष की लंबाई 12 फीट एवं वजन 90 किलो बताया जाता है, ग्रामीणों की मान्यता है कि यह धनुष भगवान श्रीराम का है.
श्रीराम लक्ष्मण पायन
श्रीराम लक्ष्मण पायन, ग्राम पंचायत -मरहट्ठा, तहसील-प्रतापपुर : एक विशाल चट्टान में अनेक पैरों के निशान देखने को मिलते हैं. जनश्रुति है कि यह पैरों के निशान श्रीराम-लक्ष्मण के हैं. यह प्रसिद्ध स्थल अंबिकापुर से भी नजदीक है. अंबिकापुर मुख्यालय से इसकी दूरी करीब 30 किलोमीटर है.अर्द्धनारीश्वर जलेश्वरनाथ शिवपुरग्राम पंचायत-शिवपुर, तहसील-प्रतापपुर : एक किंवदंती है कि भगवान श्रीराम ने वनवास काल के समय इस शिवलिंग की स्थापना कर पूजा-अर्चना की थी. भगवान श्रीराम जब शिवपुर में शिवलिंग स्थापित किये. उस वक्त माता सीता और लक्ष्मण जी भी साथ आये थे. शिव मंदिर के समीप नाले में ‘‘सीता पांव‘‘ नामक स्थल भी है. यहीं पर माता सीता के पैर के निशान पानी पीने के दौरान एक पत्थर पर पड़े थे. इसी चरण चिन्ह के एड़ी वाले हिस्से से निरंतर जल बह रहा है. इसे स्थानीय लोग ‘‘गोसाई ढोढ़ी‘‘ के नाम से जानते हैं.विश्रवा ऋषि का आश्रम और लक्ष्मण पंजा पिलखा पहाड़ ,ग्राम पंचायत पहाड़गांव, तहसील सूरजपुर : ऐतिहासिक एवं धार्मिक ग्राम पहाड़गांव में प्राचीन काल की राधा - कृष्ण मंदिर और इसके समीप पिलखा पहाड़ी पर लक्ष्मण पंजा नामक स्थल है.बताया जाता है कि वनवास काल में इस पहाड़ी पर विश्रवा ऋषि का आश्रम था. जनश्रुति है कि लक्ष्मण जी पिलखा पहाड़ी की दो चोटी को कांवर में उठाकर उदयपुर के समीप स्थित रामगढ़ पहाड़ी पर ले जाना चाहते थे, लेकिन उनकी कांवर का बहिंगा जो रामरेडी (रतनजोत) के पेड़ का बना हुआ था. जो टूट गया और दोनों चोटी दो तरफ गिर गई जो पिलखा पहाड़ी पर आज दिखाई देता है.बलरामपुर जिला : बलरामपुर जिले में तीन स्थान ऐसे हैं जहां राम से जुड़ी निशानियां देखने को मिलती है. इनमें 23.सीता चौक , 24.सीता चुंआं, 25.रामचौरा पहाड़ है. सीता चौक, दुप्प्पी ग्राम पंचायत, तहसील राजपुर : सीता चौक नामकरण के संबंध में ग्रामीणों ने बताया कि वनवास काल में भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी इस स्थल पर आए थे. इसलिए इस नाले का नाम सीता चौक नाला पड़ा. सीता चौक नाला में लगभग 15-20 फीट लंबे-चौडे़ पत्थर पर चौक पुरने के निशान और अनेक मानव पद चिन्ह बने हुए हैं.यहां पर माता-सीता ने चौका पूरा किया था. पत्थरों पर बने अनेक चरण चिन्ह की आकृतियां भगवान श्रीराम और माता सीता के बताए जाते हैं.रामचौरा पहाड़, ग्राम पंचायत सारंगपुर, तहसील बलरामपुर : अंबिकापुर मार्ग पर तातापानी से चार किलोमीटर दूर रजबंधा गांव स्थित है. इसी गांव से लगे ग्राम पंचायत सारंगपुर में पांच सौ फीट ऊंचा रामचौरा पहाड़ है. किवदंती है कि रामचौरा पहाड़ में राम, सीता, लक्ष्मण के आने से ही पहाड़ का नाम रामचौरा पहाड़ पड़ा. वनवास के समय कुछ दिन तक इसी रामचौरा पहाड़ में तीनों ने अपना निवास बनाया था.धोबिन कुंड : रामचौरा पहाड़ी के ऊपर पूजा स्थल से मात्र 200 मीटर की दूरी पर एक छोटा सा कुंड है, जहां पर इस भीषण गर्मी में भी हमेशा पानी जमा रहता है, किवदंती है कि राम, सीता, लक्ष्मण यहां वनवास के दौरान कुण्ड में स्नान किये थे. कहा जाता है कि तब यहां वस्त्र धोने के लिए धोबी लोग पहुंचते थे, वर्तमान में भी यहां धोबिन कुण्ड विद्यमान हैं.
सरगुजा जिला : सरगुजा जिले में भी प्रभु श्रीराम ने कुछ वक्त बिताया था. जिनमें 26.विश्रामपुर अंबिकापुर, 27.बड़े दमाली का बंदर कोट, 28.यमदग्नि ऋषि की तपोभूमि देवगढ़, सतमहला, 29.महेशपुर, 30.सीता बइंगरा, 31.लक्ष्मण बइंगरा, 32.जोगी माड़ा- रामगढ़, 33.लक्ष्मणगढ़ और मिरगा डाड़, 34.छत्तीसगढ़ का शिमला मैनपाट शरभंग ऋषि का आश्रम, 35.मंगरैलगढ़, 36.महारानीपुर का देउर मंदिर प्रसिद्ध हैं.
राम,लक्ष्मण और सीता ने किया था विश्राम : महाराजा रघुनाथशरण सिंहदेव बहादुर (1817-1917) के समय सरगुजा की राजधानी प्रतापपुर से वर्तमान अंबिकापुर लाई गई. उस समय अंबिकापुर को बिश्रामपुर कहा जाता था. 16 अक्टूबर 1905 ईस्वी को सरगुजा के मध्य प्रांत के प्रशासन के अधीन होने तक विश्रामपुर कहा जाता था. विश्रामपुर नामकरण के संबंध में जनश्रुति है कि रामायण युग में वनवास के समय भगवान श्रीराम, माता सीता एवं लक्ष्मण जी दंडकारण्य से गुजरते वक्त वर्तमान अंबिकापुर में कुछ समय विश्राम किए थे, इसलिए विश्रामपुर नाम पड़ा था.
यमदग्नि ऋषि की तपोभूमि देवगढ़ और सतमहला उदयपुर तहसील- सतमहला में अनेक प्राचीन मंदिर एवं प्राचीन महलों के अवशेष हैं. जनश्रुति है कि यहां पर सात महलों के अवशेष होने के कारण इसे सतमहला कहा जाता है. यहां अनेक प्राचीन तालाब भी हैं. एक मान्यता है कि यहां प्राचीन काल में राजा का सप्तप्रमाण होता था, इसलिए इसे सतमहला कहते हैं.
सीता बइंगरा, लक्ष्मण बइंगरा और जोगी माड़ा- रामगढ़ ग्राम पंचायत-पुटा, तहसील उदयपुर : प्रचलित मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम, माता सीता एवं लक्ष्मण जी ने वनवास काल का कुछ समय यहां व्यतीत किया था. इसलिए इस पर्वत को रामगढ़ कहा जाता है. इस मान्यता को यहां की सीता बइंगरा, जोगी माड़ा गुफा एवं लक्ष्मण बइंगरा प्रमाणित करती हैं, मान्यता है कि सीता जी ने जहां आश्रय लिया था उसे सीता बइंगरा कहते हैं.
भगवान श्रीराम एक जोगी की तरह रहते थे, इसलिए जोगी माड़ा गुफा का नाम पड़ा : मान्यता है कि वनवासकाल में लक्ष्मण जी लक्ष्मण बइंगरा से भाई श्रीराम और माता सीता की रखवाली करते थे. रामगढ़ की ऊंची चढ़ाई चढ़ने पर वशिष्ठ मुनि का गुफा, राम-जानकी मंदिर , जानकी तालाब और सीता-कुण्ड है
शरभंग ऋषि का आश्रम ग्राम पंचायत शरभंज, तहसील मैनपाट : प्राकृतिक आकर्षण के कारण प्राचीन काल में यह स्थल मुनियों एवं तपस्वियों की तपोभूमि रही, जनश्रुति है कि प्रभु श्रीराम वनवास काल में मैनी नदी से होकर मैनपाट पहुंचे और कुछ समय व्यतीत किए थे. एक किंवदंती ये भी है कि यहां श्रीराम महर्षि शरभंग एवं महर्षि दंतंली से मुलाकात किए थे. शरभंग ऋषि के नाम पर यहां शरभंज ग्राम भी है.इस स्थल पर शरभंजा जलप्रपात दर्शनीय है.
जशपुर जिला : जशपुर जिले के कुछ हिस्सों में भी भगवान श्रीराम ने समय बिताया है. जिनमें 37. शिव मंदिर बगिचा, 38.लेखा पत्थर रेंगले, 39.लक्ष्मण पंजा रिंगारघाट, 40.किलकिला आश्रम प्रमुख हैं.
किलकिला आश्रम, ग्राम पंचायत किलकिला, तहसील पत्थलगांव- यहां प्राचीन शिव मंदिर है. इसी परिसर में राम-जानकी मंदिर बनाया गया है. जनश्रुति है कि वनवास काल में भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी इस आश्रम में कुछ समय व्यतीत किए थे. यहां प्राचीन मंदिरों का समूह देखने को मिलता है. यहां से प्रभु श्रीराम रायगढ़ जिले के धर्मजयगढ़ गए.