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सरगुजा से शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का रिश्ता, राजपरिवार के बुलावे पर हुआ था आगमन

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Published : Sep 12, 2022, 12:47 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी अब हमारे बीच नहीं रहे. 99 साल की उम्र में उनका निधन हुआ. इस खबर से पूरे देश में शोक का वातावरण है.राजनीतिक हस्तियों से लेकर आम जनता तक स्वामी जी के निधन से दुखी हैं. स्वामी स्वरूपानंद का छत्तीसगढ़ से भी खास नाता रहा है.आज हम आपको स्वामी जी की ऐसी ही यात्रा के बारे में बताएंगे. Shankaracharya Swaroopanand Saraswati

छत्तीसगढ़ से रहा है शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का नाता
छत्तीसगढ़ से रहा है शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का नाता

सरगुजा : 11 सितंबर 2022 को शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का निधन हो गया. 99 वर्ष की आयु में उनकी आत्मा ने शरीर को त्यागकर अनंत की यात्रा शुरु की. नरसिंहपुर के गोटेगांव (श्रीधाम) स्थित मठ में शंकराचार्य महाराज ने आखिरी सांसें ली. आदिगुरु शंकराचार्य का छत्तीसगढ़ में भी कई बार आगमन हो चुका है. घनघोर वनांचल आदिवासी बाहुल्य सरगुजा में भी वो आये थे. सरगुजा के वरिष्ठ इतिहासकार गोविन्द शर्मा बताते हैं "अक्टूबर 1983 में सरगुजा रघुनाथ पैलेस परिसर में स्थित माई साहब भगवती देवी के कृष्ण मंदिर में वो आए (Surguja royal family invited Shankaracharya ) थे. यहां उनके लिये विशेष रूप से कुटिया बनाई गई थी. वे राजमाता देवेंद्र कुमारी और सरगुजा राजपरिवार के आतिथ्य में अंबिकापुर में (Swaroopanand Saraswati relation with Surguja ) रहे"



सरगुजा आगमन पर कई लोगों ने ली दीक्षा : इतिहासकार की माने तो उस समय अनेक लोगों ने उनसे दीक्षा और दर्शन लाभ लिया था. तब शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने आध्यात्मिक उत्थान मंडल नामक संस्था पुरुष एवं महिला दो वर्ग का गठन किया था. जिसका पुरुष विंग निष्क्रिय हो गया और महिला आध्यात्मिक उत्थान मंडल माई साहब के मंदिर में आज भी जीवंत है. प्रति शुक्रवार को महिलाओं द्वारा कीर्तन, पूजन, प्रवचन और प्रसाद वितरण आज भी किया जाता है"


स्वतंत्रता सेनानी भी थे शंकराचार्य : गोविंद शर्मा आगे बताते हैं "रविवार को नरसिंहपुर में शंकराचार्य का निधन हो गया. वे द्वारिका पीठ और ज्योति मठ के शंकराचार्य थे वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी रहे. कई बार जेल भी गए. गुरुदेव स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती दूसरी बार अंबिकापुर द्वितेंद्र मिश्र के पारिवारिक संबंध होने से अंबिकापुर आए थे. जहां उनकी शोभायात्रा विशाल रैली निकली थी. शोभायात्रा के बाद मालवीय (चिल्ड्रन) पार्क, सरस्वती शिशु मंदिर के प्रांगण में प्रवचन द्वारा जनसभा को संबोधित किया था"


गुरु करपात्री के शिष्य थे शंकराचार्य : गोविंद शर्मा कहते हैं " वो तटस्थ धार्मिक नेता थे उनमें धर्मनिरपेक्षता भी विवेकपूर्ण ढंग से मौजूद थी. उनके जाने से भारतीय संस्कृति के ज्ञानवान प्रतिभावान एक शख्सियत का अंत हो गया है. वे गुरु करपात्री जी के शिष्य थे करपात्री जी स्वयं अम्बिकापुर सरगुजा की राजमाता भाई साहब भगवती देवी जो महाराजा रामानुज शरण सिंह देव की मां थी. उनके आमंत्रण में अंबिकापुर आ चुके थे. अंबिकापुर में स्वामी स्वरूपानंद महामाया मंदिर पैलेस रघुनाथ पैलेस सहित उन सभी स्थलों स्थलों का भ्रमण किए थे. जहां उनके गुरु करपात्री जी गए थे. इनके गुरु करपात्री जी ने राम राज्य परिषद नामक पार्टी का भी गठन किया था"

ये भी पढ़ें- शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रायपुर से रहा है गहरा नाता

आज भी है ऐतिहासिक पल की तस्वीर : शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के 1983 में अम्बिकापुर आगमन का स्मरण करते हुये गोविंद शर्मा कहते हैं " स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की शोभायात्रा में राजमाता देवेंद्र कुमारी, छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री, टी एस सिंह देव और सुरेंद्र गुप्ता, और जीप चलाते हुए व्यवसायी प्रेमचंद्र अग्रवाल जीप में मौजूद थे. इस पल की एक तस्वीर आज भी वो संभाल कर रखें हैं"

सरगुजा : 11 सितंबर 2022 को शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का निधन हो गया. 99 वर्ष की आयु में उनकी आत्मा ने शरीर को त्यागकर अनंत की यात्रा शुरु की. नरसिंहपुर के गोटेगांव (श्रीधाम) स्थित मठ में शंकराचार्य महाराज ने आखिरी सांसें ली. आदिगुरु शंकराचार्य का छत्तीसगढ़ में भी कई बार आगमन हो चुका है. घनघोर वनांचल आदिवासी बाहुल्य सरगुजा में भी वो आये थे. सरगुजा के वरिष्ठ इतिहासकार गोविन्द शर्मा बताते हैं "अक्टूबर 1983 में सरगुजा रघुनाथ पैलेस परिसर में स्थित माई साहब भगवती देवी के कृष्ण मंदिर में वो आए (Surguja royal family invited Shankaracharya ) थे. यहां उनके लिये विशेष रूप से कुटिया बनाई गई थी. वे राजमाता देवेंद्र कुमारी और सरगुजा राजपरिवार के आतिथ्य में अंबिकापुर में (Swaroopanand Saraswati relation with Surguja ) रहे"



सरगुजा आगमन पर कई लोगों ने ली दीक्षा : इतिहासकार की माने तो उस समय अनेक लोगों ने उनसे दीक्षा और दर्शन लाभ लिया था. तब शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने आध्यात्मिक उत्थान मंडल नामक संस्था पुरुष एवं महिला दो वर्ग का गठन किया था. जिसका पुरुष विंग निष्क्रिय हो गया और महिला आध्यात्मिक उत्थान मंडल माई साहब के मंदिर में आज भी जीवंत है. प्रति शुक्रवार को महिलाओं द्वारा कीर्तन, पूजन, प्रवचन और प्रसाद वितरण आज भी किया जाता है"


स्वतंत्रता सेनानी भी थे शंकराचार्य : गोविंद शर्मा आगे बताते हैं "रविवार को नरसिंहपुर में शंकराचार्य का निधन हो गया. वे द्वारिका पीठ और ज्योति मठ के शंकराचार्य थे वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी रहे. कई बार जेल भी गए. गुरुदेव स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती दूसरी बार अंबिकापुर द्वितेंद्र मिश्र के पारिवारिक संबंध होने से अंबिकापुर आए थे. जहां उनकी शोभायात्रा विशाल रैली निकली थी. शोभायात्रा के बाद मालवीय (चिल्ड्रन) पार्क, सरस्वती शिशु मंदिर के प्रांगण में प्रवचन द्वारा जनसभा को संबोधित किया था"


गुरु करपात्री के शिष्य थे शंकराचार्य : गोविंद शर्मा कहते हैं " वो तटस्थ धार्मिक नेता थे उनमें धर्मनिरपेक्षता भी विवेकपूर्ण ढंग से मौजूद थी. उनके जाने से भारतीय संस्कृति के ज्ञानवान प्रतिभावान एक शख्सियत का अंत हो गया है. वे गुरु करपात्री जी के शिष्य थे करपात्री जी स्वयं अम्बिकापुर सरगुजा की राजमाता भाई साहब भगवती देवी जो महाराजा रामानुज शरण सिंह देव की मां थी. उनके आमंत्रण में अंबिकापुर आ चुके थे. अंबिकापुर में स्वामी स्वरूपानंद महामाया मंदिर पैलेस रघुनाथ पैलेस सहित उन सभी स्थलों स्थलों का भ्रमण किए थे. जहां उनके गुरु करपात्री जी गए थे. इनके गुरु करपात्री जी ने राम राज्य परिषद नामक पार्टी का भी गठन किया था"

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आज भी है ऐतिहासिक पल की तस्वीर : शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के 1983 में अम्बिकापुर आगमन का स्मरण करते हुये गोविंद शर्मा कहते हैं " स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की शोभायात्रा में राजमाता देवेंद्र कुमारी, छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री, टी एस सिंह देव और सुरेंद्र गुप्ता, और जीप चलाते हुए व्यवसायी प्रेमचंद्र अग्रवाल जीप में मौजूद थे. इस पल की एक तस्वीर आज भी वो संभाल कर रखें हैं"

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

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