सरगुजा : नवरात्रि (Navratri) में हम शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना करते हैं. यही कारण है कि भारतीय समाज (Indian Society) में महिलाओं को देवी का दर्जा दिया गया है. देश के कई हिस्सों में कन्या पूजन (Girl Worship) भी होता है. धार्मिक मान्यताओं में नारी को बेहद विशेष स्थान दिया गया है, लेकिन आधुनिक भारत में नारी को अबला करार दे दिया गया. इसमें पुरुष समाज के साथ-साथ महिलाएं भी बराबर की भागीदार रही हैं. जहां एक ओर पुरुष अपनी प्रधानता साबित करने में लगे रहे तो महिलाओं ने भी खुद को अबला मानकर पुरुषों की स्वायत्तता स्वीकार ली. लेकिन इसके विपरीत इसी समाज में कुछ ऐसी महिलाएं भी हुईं, जिन्होंने यह साबित कर दिया कि महिला वाकई शक्ति स्वरूपा होती हैं. छत्तीसगढ़ के सरगुजा की एक अकेली महिला ने वह काम कर दिया, जो कई पुरुष संगठित रूप से भी न कर सकें.
कॉलेज के समय से ही जारी है सेवा भाव का सिलसिला
सरगुजा की वंदना दत्ता (Vandana Dutta of Surguja) अपने जीवन के 6 दशक से अधिक की यात्रा पार कर चुकी हैं. वंदना ने महिलाओं, बच्चियों व असहाय लोगों की मदद की. इनके सेवा भाव का सिलसिला कॉलेज की पढ़ाई के समय से ही जारी है. और आज इनके साथ सैकड़ों अन्य महिलाएं भी जुड़ चुकी हैं. जिनके सहयोग से वंदना दत्ता समाज में लोगों की मदद कर रही हैं. वंदना दत्ता की सेवा का सहभागी दो बार ETV भारत भी बन चुका है. वंदना बताती हैं कि एक बार एक बच्ची को उन्होंने ETV भारत की मदद से उसके घर तक पहुंचाया है. इसी सिलसिले को बरकरार रखते हुए हम इस नवरात्रि भी आधुनिक भारत में नव दुर्गा के रूप में मौजूद शक्ति स्वरूपा महिलाओं को आपके सामने लेकर आ रहे हैं. पढ़िये अंबिकापुर की वंदना दत्ता से ETV भारत की विशेष बातचीत...
सवाल : कब और कैसे शुरू हुआ सेवा का सिलसिला ?
जवाब : वंदना दत्ता बताती हैं कि जब वो कालेज में पढ़ रही थीं, उसी समय अपनी पढ़ाई के साथ-साथ एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर रही थीं. एक दिन एक तीसरी कक्षा की छोटी बच्ची उनके पास आई और उसने अपना ट्रांसफर सर्टिफिकेट मांगा. कारण पूछने पर बच्ची ने बताया कि वो अम्बिकापुर में अपनी मौसी के साथ रहती थी, लेकिन अब उसकी मौसी यहां से जा रही हैं, इसलिए उसे वापस अपने घर जाना होगा. यह सुनकर वंदना ने बच्ची से कहा कि तुम मेरे साथ रहना. फिर क्या था, दूसरे ही दिन बच्ची अपने सामान के साथ वंदना के घर पहुंच गई. और फिर इनके साथ रहने लगी. यहीं उसका पालन-पोषण हुआ और पढ़ाई भी पूरी हुई. इसके बाद वंदना ने करीब 14-15 अन्य बच्चों को भी पाला और सबकी पढ़ाई पूरी कराई. इस काम में उनके परिवार वालों ने भी उनका पूरा सहयोग किया.
सवाल : बच्चों और महिलाओं के लिए समाज में काम करना कैसे शुरू किया ?
जवाब : मैं मातृ छाया सेवा भारती से जुड़कर अनाथ बच्चों के लिए काम कर रही हूं. लेकिन इससे पहले भी मैं ऐसे बच्चों के लिए काम करती थी. मेरी रुचि के अनुसार ही महिला बाल विकास विभाग ने मुझे काम दिया. बहुत सी ऐसी महिलाएं भी मिलीं, जो अपने घर को छोड़कर यहां-वहां भटक रही थीं, उनको घर पहुंचाया. एक बहन 20-25 साल से अपने घर को छोड़ भटक रही थी, उसको ETV भारत के माध्यम से हमने उसके घर मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा पहुंचाया. क्योंकि मैंने शादी नहीं की तो बहुत ज्यादा परिवार की जिम्मेदारी मुझ पर नहीं थी. इसलिए मैं इन लोगों को इतना समय दे पाई. बच्चों को शिक्षा देने में भी मेरी विशेष रुचि रही है. इसलिए मैंने एक स्कूल खोल रखा है, जिसका किराया या अन्य लाभ मैं नहीं लेती. यहां बच्चियों का एडमिशन फी नहीं लिया जाता और सबसे अहम बात यह है कि इस स्कूल की फी बच्चे के परिवार वाले ही निर्धारित करते हैं. जिसका जितना सामर्थ्य होता है, उतना देता है. जिसका सामर्थ्य नहीं है बच्चे यहां फ्री में पढ़ते हैं. इस काम में स्कूल के टीचिंग स्टाफ का सेवा भाव बेहद महत्वपूर्ण है.
सवाल : आपके जीवन काल में सबसे अहम बात महिलाओं, बच्चों के उत्थान के साथ भूखे का पेट भरना रहा है. इसकी क्या वजह रही है?
जवाब : इंसान का पेट भरना उसकी सबसे बड़ी जरूरत हैं, क्योंकि हम सब की मुख्य जरूरत वही है. मुझे लगा कि भूख सबसे ज्यादा तकलीफ देती है तो अपने ही संसाधन जोड़कर कुछ सेवा भावी बहनों के सहयोग से हम लोग रात्रिकालीन भोजन चलाते हैं. जिसमें सप्ताह में तीन दिन एक निश्चित स्थान पर एकत्र गरीबों को बिठाकर पेट भर भोजन कराते हैं. इसके साथ ही कोरोना काल में जब ये बात सामने आई कि महिलाओं के बीमार होने से लोगों के घर में खाना नहीं बन पा रहा है तब फिर 30 महिलाओं का एक समूह तैयार हो गया, जो एक घंटे में लोगों के खाने की व्यवस्था कर देता है. इसके आलवा वंदना दत्ता ने समाज की 40 ऐसी महिलाओं को प्रेरित किया है, जो कभी किटी पार्टी कर मोटी रकम खर्च करती थीं. लेकिन अब किटी पार्टी को सेवा किटी का नाम दे दिया गया है. इसके तहत 40 महिलाएं हर महीने किटी के पैसे में से 500 रुपये देती हैं और इस तरह हर महीने 20 हजार रुपये एकत्र होते हैं. इस पैसे से समाज हित में काम किया जाता है. मेडिकल कॉलेज अस्पताल के प्रसूति वार्ड के सामने सुबह-शाम दोनों टाइम इनकी ओर से गर्म पानी, बिस्किट और लाल चाय की व्यवस्था की गई है. इस बार सेवा किटी समूह कोरवा जनजाति गांव पहुंचा और वहां महिलाओं और किशोरियों को सेनेटरी पैड बांटे. साथ ही माहवारी स्वच्छता से संबंधित जागरूकता का प्रयास भी किया गया.
सवाल : आपने शादी क्यों नहीं की?
जवाब : अपने बारे में भी मैंने सोचा है. लेकिन अगर मैं शादी कर लेती तो इतना ज्यादा जो मैं लोगों को जोड़कर अभी काम कर पा रही हूं, वो शायद नहीं कर पाती.