सरगुजा : छत्तीसगढ़ में पिछले दो दशकों में हाथियों का दल बढ़ता गया है. ये हाथी प्रदेश के कई इलाकों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं.उन्हीं में से एक इलाका सरगुजा है. मौजूदा समय में सरगुजा हाथियों का गढ़ है.जहां से ये एक जिले से दूसरे जिलों में आवागमन करते हैं.वनविभाग की माने तो सरगुजा में मौजूदा समय में 115 से 125 हाथियों की मौजूदगी है. इनमें से कुछ सरगुजा की सीमा से बाहर है.लेकिन एलिफेंट रिजर्व एरिया में 70 हाथियों की मौजूदगी है. एलिफेंट रिहैबिलिटेशन सेंटर बनने के बाद क्षेत्र में हाथियों के लिये अनुकूल माहौल बना.भोजन और पानी की पर्याप्त व्यवस्था की गई.जिसके कारण हाथी यहां के जंगलों को अपना घर मानने लगे.
एलिफेंट रिजर्व सेंटर के कारण मानव द्वंद्व हुआ कम : साल में सिर्फ 1 महीने ही हाथी रिजर्व एरिया से बाहर जाते हैं. बाकी के 11 महीने 70 से 80 हाथी अनुकूल परिस्थिति में रिजर्व क्षेत्र में ही अपना समय बिताते हैं. इसका सबसे बड़ा फायदा ये हुआ कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को हाथियों ने नुकसान पहुंचाना बंद कर दिया.खाना और पानी मिलने से हाथी भोजन की तलाश में बाहर नहीं निकले.जिससे इंसानी संघर्ष भी घटा. जब हाथी कैम्प में ज्यादा समय तक रहते हैं तो इनका विचरण अन्य जंगलों में कम हो जाता है.
दूसरे वनक्षेत्रों में नहीं जाते हैं हाथी : एलिफेंट रिजर्व सेंटर के उपसंचालक श्रीनिवासी तन्नेटी की माने तो हाथियों को काफी मात्रा में भोजन चाहिए.गर्मियों में जब नदी नाले और तालाब सूख जाते हैं तो खाने की कमी होती है.तभी हाथी गांवों में घुसकर फसलों और ग्रामीणों को नुकसान पहुंचाते हैं.लेकिन रिजर्व सेंटर बनने के बाद उनके खाने और पानी की व्यवस्था हो गई.जिससे अब वो अपने क्षेत्र से बाहर नहीं जाते.
"रिहैबिलिटेशन सेंटर में कुमकी हथियो की संख्या 7 है 6 हाथी पहले से थे. एक छोटा सा बच्चा है जिसको हमने जशपुर के कुनकुरी क्षेत्र से रेस्क्यू किया था.जो फीमेल कॉर्फ है. हमारा जो तमोर पिंगला अभ्यारण्य है. वहां चारागाह, हाथी रहवास और नरवा योजना के तहत बड़े बड़े वाटर स्ट्रक्चर बनाये हैं. तो वर्ष भर 70 से 80 हाथी हमारे यहां रुकते हैं, जिससे समीपस्थ वन मंडल में हाथी विचरण कम होता है" श्रीनिवासी तन्नेटी, उपसंचालक, एलिफेंट रिजर्व
हाथियों के आचरण से ग्रामीणों को किया गया प्रशिक्षित : छत्तीसगढ़ में हाथी विशेषज्ञ के रूप में काम कर रहे प्रभात दुबे बताते हैं कि वर्षों तक लोगों को प्रशिक्षित किया गया है. जिसके कारण घटनाएं कम हुई हैं. गांव वालों को सिखाया गया कि कैसे हाथी के साथ रहना है. कैसे उससे बचना है. हाथी का व्यवहार कैसा होता है. ये सब सिखाया गया है तो काफी हद तक मानव हाथी द्वंद कम हुआ है.
"पहले जब हाथी आते थे झारखण्ड से तो गांव में कौतूहल का विषय हो जाता था. लोग ट्रैक्टरों में भर भर कर 50 - 50 किलोमीटर दूर से हाथी देखने आ जाते थे. इतनी भीड़ जमा हो जाती थी कि वहां मेला जैसा लग जाता था. ठेले वाले दुकान लगा लेते थे, ये भी हमने देखा है. लेकिन अब ऐसी बात नही है, अब ग्रामीण जागरूक हो गये हैं. हम लोग लगातार गांव वालों के साथ लगे रहते हैं, जब गांव में हाथी आता है तो फॉरेस्ट की टीम उनके साथ रहती है" - प्रभात दुबे ,हाथी विशेषज्ञ
लेकिन अब भी बड़ा सवाल ये था कि छ्त्तीसगढ़ का वनपरिक्षेत्र काफी विशाल है.हाथियों के पुराने जमाने में खाने की भी कोई कमी नहीं रही होगी.ऐसे में सरगुजा में ही हाथियों का जमावड़ा क्यों लगने लगा.इस सवाल के जवाब के लिए हमारी टीम ने इतिहासकार की मदद ली. सरगुजा के वरिष्ठ इतिहासकार गोविंद शर्मा ने ईटीवी भारत को हाथियों का सरगुजा से लगाव की जानकारी दी.
साल वृक्ष, हाथी और बाघ का था डेरा : इतिहासकार की माने तो सरगुजा प्रकृति से परिपूर्ण रहा है. घनघोर जंगल था. जो करीब करीब आज भी बचा हुआ है. यहां बसाहट नगण्य थी. सरगुजा में साल के पेड़, हाथी और बाघ ही बहुत थे. रहने को बहुत वन्य जीव यहां से थे. लेकिन मुख्य रूप से सरगुजा इन्हीं तीन कारणों से जाना जाता था. इतने अधिक हाथी होने की वजह से भी बसाहट बढ़ना बड़ा मुश्किल था.
"जब सरगुजा राजपरिवार ने यहां राज किया तो उनके सामने बसाहट बसाने की चुनौती थी. क्योंकि लोग रहेंगे तभी तो खेती होगी, विकास होगा और राजस्व आएगा. जिसके बाद सरगुजा राजपरिवार ने हाथियों को सिविलाइज करना शुरू किया. सरगुजा महाराज हाथियों को पकड़ते थे और उनको ट्रेंड करके महावतों की निगरानी में दे दिया जाता था. तब सारथी जाति के लोग महावत हुआ करते थे" गोविंद शर्मा, इतिहासकार
361 हाथियों को पकड़कर किया गया था ट्रेंड : गोविंद शर्मा के मुताबिक राजपरिवार ने समस्या बन चुके हाथियों का कॉमर्शियल उपयोग किया. पुल पुलियों के निर्माण में, बड़े पेड़ और पत्थरों को यहां वहां ले जाने में हाथी काम आने लगे. इसके अलावा मैसूर, मांडू और अन्य रियासतों में भी यहां से हाथी भेजे जाते थे. राजाओं को हथियों की जरूरत होती थी, तो उनको यहां के हाथी भेजे जाते थे. उस समय सरगुजा में महाराज रघुनाथ शरण सिंहदेव के समय मे राजपरिवार के पास 361 हाथी थे. सभी हौदों से सजे होते थे. फिर ज्यादा हाथी हुए तो उनको जंगलों में खेद दिया जाता था, क्योंकि इतने हाथियों को खिलाना भी मुश्किल था.