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क्या सिंहदेव के इस्तीफे से कांग्रेस के भविष्य को है खतरा ?

छत्तीसगढ़ में टीएस सिंहदेव के पंचायत विभाग से इस्तीफे के बाद एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है. सवाल ये है कि यदि सिंहदेव की ये नाराजगी आगे भी जारी रही तो क्या आने वाले समय में कांग्रेस फिर से 2018 की जीत दोहरा पाएगी या (Singhdeo resignation threatens the future of Congress) नहीं .

Singhdeo resignation threatens the future of Congress
क्या सिंहदेव के इस्तीफे से कांग्रेस के भविष्य को है खतरा
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Published : Jul 21, 2022, 1:34 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा : पूरे देश में यदि कांग्रेस की स्थिति की बात करें तो छत्तीसगढ़ में उसकी स्थिति बेहतर है. 2018 में कांग्रेस ने यहां आंधी चली और केन्द्रीय नेतृत्व में बल भर दिया. लेकिन प्रदेश की सत्ता का समय जैसे-जैसे बीतता गया. आंतरिक द्वंद एक बार फिर बाहर निकलकर सामने आया. कई बार नेताओं के बीच की लड़ाई उजागर हुई. लेकिन आलाकमान से निर्देश मिला आल इज वेल. फिर भी कांग्रेस के दो बड़े नेताओं के बीच की खटास अब किसी से छिपी नही है. छत्तीसगढ़ में कुर्सी की जंग ने प्रदेश को अजब मोड़ में लाकर खड़ा कर दिया है. सरकार के कद्दावर मंत्री(Chhattisgarh cabinet minister TS Singhdeo) ने अपने एक विभाग से इस्तीफा दे (Singhdeo resignation threatens the future of Congress) दिया. इसके बाद मुख्यमंत्री के नाम पत्र लिखा, इस पत्र में लिखे शब्द, शान्त पड़े विपक्ष के लिये मानो किसी संजीवनी का काम कर गये हो. विपक्ष अचानक से उठ खड़ा हुआ और अब विधानसभा में हमलावर है.

सिंहदेव के इस्तीफे पर चर्चा
मंत्री को विश्वास नही तो कौन करेगा विश्वास : भाजपा के लिये ये वो सुनहरा अवसर है जिस पर सवार होकर एक बार फिर वो सत्ता में वापसी कर सकती है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अनुराग सिंह देव कहते हैं " देखिए सरकार के महत्वपूर्ण मंत्री, दूसरे नंबर के मंत्री जो इस सरकार के घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष थे, उन्होंने ही इस सरकार के प्रति अपना अविश्वास प्रकट कर दिया है. उन्होंने बता दिया कि घोषणा पत्र पूरा नहीं किया गया है. उन्होंने बता दिया कि पेसा कानून लागू नही किया गया है. आदिवासियों का अहित किया जा रहा है. उन्होंने बता दिया कि इस पूरी गर्मी भर काम नहीं हुआ है. मनरेगा के अंतर्गत, वो हड़ताल प्रायोजित थी. मजदूरों का अहित हुआ है, 8 लाख आवास जो यहां पर मिलने थे लोगों को वो नही मिल पाया है. तो एक तरह से सारी बातें उन्होंने कह दी हैं. तो इस सरकार पर अब पूरी तरह से अविश्वास का संकट गहरा गया है. तो मुख्यमंत्री जी को विचार करना चाहिये कि जब उनके कैबिनेट मंत्री को ही उन पर विश्वास नही है तो और कौन लोग उन पर विश्वास करते होंगे. तो उनको अपना पद छोड़ना चाहिये, और टीएस सिंहदेव ने अगर इतना अविश्वास कर लिया है और वो घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष रहे हैं .तो उनको आधा अधूरा नही पूरा पूरा इस्तीफा देना चाहिये. अब ये पेंडुलम की स्थिति नही चलेगी. अब पूरा निर्णय लेना पड़ेगा. जनता की अदालत में आप 4 साल में पूरी तरह से एक्सपोज हो गये हैं."पीसीसी चीफ, विधानसभा अध्यक्ष अन्य मंत्री भी नाखुश : अनुराग सिंह ने यह भी कहा " अभी एक बैठक में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बता रहे थे कि बाहर से लाकर लोगों को यहां कैबिनेट मंत्री बनाया जा रहा (TS Singhdeo resignation has impact in Chhattisgarh) है. अपनी सरकार पर अविश्वास प्रकट कर रहे थे. स्पीकर जो हैं विधानसभा के वो भी कई बार अविश्वास प्रकट करते हैं, वहां मंत्री जो हैं कोरबा में वो अविश्वास प्रकट करते हैं. खुद कैबिनेट मंत्री जो हैं टीएस सिंहदेव वो भी अविश्वास प्रकट कर रहे हैं. तो इससे अधिक और क्या प्रमाण चाहिए की कांग्रेस की स्थिति क्या है. इस सरकार में सिर्फ भ्रष्टाचार हो रहा हैं और अभी अभी ईडी ने यह स्पष्ट कर दिया कि किस तरह की लूट खसोट मची है. इस सरकार को दस जनपथ अपना एटीएम समझती है"कांग्रेस चुप लेकिन एक का टूटा सब्र : इधर सरगुजा में तमाम कांग्रेसी इस मसले पर चुप्पी साधे बैठे हैं. ऑफ द रिकॉर्ड तो बहुत कुछ कहते हैं. लेकिन कैमरे में कोई कुछ कहने को तैयार नही है. लेकिन एक पुराने कांग्रेसी नेता और मंत्री सिंहदेव के करीबी अरुण मिश्रा का दर्द कैमरे पर छलक ही गया. अरुण मिश्रा के पिता स्व. रेवती रमण मिश्र अविभाजित सरगुजा में संघ के संस्थापक रहे और जन संघ को भी स्थापित किया. इसके साथ ही वो सरगुजा राज परिवार के राज पुरोहित भी रहे, बावजूद इसके उनके बेटे अरुण मिश्रा 1978 से कांग्रेस के साथ रहे.जिला महामंत्री ने कही कांग्रेस छोड़ने की बात : अरुण मिश्रा वर्तमान में जिला कांग्रेस के महामंत्री हैं. उन्होंने कहा " कांग्रेस में रहने का कारण ये रहा कि पहला महाराजा साहब टीएस सिंहदेव और मेरा संबंध राजा और राज पुरोहित का है. दूसरा 1977 में जब जनता पार्टी बनी यह पार्टी तब बनी जब सब लोग मीसा में बंद थे, और मीसा में बंद होने के बाद इन लोगों ने महात्मा गांधी की समाधी पर जाकर शपथ ली की महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलेंगे. लेकिन जनता पार्टी का क्या हश्र हुआ, उससे विच्छोवीत होकर मुझे लगा की महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलने वाली पार्टी है, धर्म निरपेक्षता पर चलने वाली पार्टी है, और क्योंकि महाराजा साहब से हमारे पारिवारिक संबंध थे तो हमने सोचा की मुझे कांग्रेस पार्टी में जाना चाहिये. मैं 1978 से कांग्रेस अभी एक सप्ताह पहले तक मैं कांग्रेस का सेवक रहा"टीएस बाबा को सीएम बनने दिये थे वोट : अरुण मिश्रा आगे कहते हैं " हम लोगों ने छत्तीसगढ़ की जनता ने टीएस बाबा को मुख्यमंत्री बनाने के लिये कांग्रेस को वोट दिया था. हमने सोनिया गांधी से भी बात की. प्रियंका गांधी से भी बात की. पुनिया जी से भी बात की राहुल गांधी से भी बात (impact of TS Singhdeo displeasure in Surguja) की, मैंने अंतिम चेतावनी दी कि मेरे सिद्धांतों के विपरीत काम हो रहा है, इन बातों पर विचार किया जाये, लेकिन उन लोगों ने कोई निर्णय नही लिया. अंततोगत्वा मुझे घर वापस आना पड़ा. मैं किसी पार्टी का सदस्य नही बना हूं. मैने स्वयं एक ऐसी संस्था का गठन किया है, जिसका नाम है ग्रामीण राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ"स्वाभिमान पर कुठाराघात : अरुण मिश्रा आगे कहते हैं कि "मैं टीएस बाबा के धैर्य की तारीफ करता हूँ, उतना धैर्यवान मैं नही हूं. मैं अपना स्वाभिमान बेचकर किसी भी संस्था में काम नही कर सकता, आज टीएस बाबा के स्वाभिमान पर कुठाराघात किया जा रहा है. भारत मे ऐसा कोई भी परिवार नही है जो इतने समय तक कांग्रेस की सेवा किया हो . कांग्रेस के सेवक को वो लोग जो कभी कांग्रेस के खिलाफ निर्दलीय लड़े, कभी भाजपा से आये और यहां टिकट पाकर विधायक बने हैं, वो लोग उस कांग्रेस के परिवार को गाली दें तो उस संस्था से तो अलग हो जाना ही मैं उचित समझता हूं. सिंहदेव साहब जो भी निर्णय लेंगे हम उनके साथ हैं, लेकिन हम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ नही हैं" बहुत उम्मीद थी कांग्रेस से : इस पूरे घटनाक्रम पर सरगुजा और छत्तीसगढ़ की राजनीति को लंबे समय से देखने और समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुधीर पांडेय से भी हमने बातचीत की उन्होंने कहा कि ''कांग्रेस सरकार से बहुत उम्मीद थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं, जल्द कुछ नही किया गया तो कांग्रेस का भविष्य छत्तीसगढ़ में अंधकार में है, आज जो स्थिति बनी है ये शीर्ष नेतृत्व की कमजोरी है.''सीएम बनाने 14 की 14 सीट मिली : सुधीर पांडेय कहते हैं " छत्तीसगढ़ एक विकाशसील प्रदेश है, जहां पर बहोत तेजी से विकास के कार्यों की उम्मीद की जा रही थी, खासकर के 15 साल की भाजपा सरकार के जाने के बाद लोगों को कांग्रेस से बहोत ज्यादा उम्मीद बन गई थी. इतने भारी बहुमत से कांग्रेस ने सरकार बनाई की लोगों को उम्मीद थी की बहोत कुछ नया देखने को मिलेगा, कांग्रेस की एक सशक्त सरकार है, परन्तु शुरुआत में कथित रूप से ढाई-ढाई साल को लेकर जो अटकलें चालू हुईं और ढाई साल बाद सरकार की जो स्थिति बनी वो किसी से नही छुपा है. एक अंदरूनी संघर्ष बना रहा, भूपेश बघेल और टी एस सिंहदेव के लोग बतौर मुख्यमंत्री ही देख रहे थे नंबर एक और दो की बात नही थी. लगभग बराबर ही पूरे प्रदेश में देखा जाने लगा था. सरगुजा को तो बहोत उम्मीद थी. 14 में से 14 सीट हासिल हुई थी, ये कहा जा रहा था की सिंहदेव के कारण या उन्हें मुख्यमंत्री बनाये जाने के चलते ही ये 14 सीटें मिल रही हैं. हकीकत भी लगभग ऐसा ही था लोगों ने दिल खोल के वोट दिया था कि हमारे क्षेत्र से कोई सीएम बनेगा, और यही उम्मीद लोग छत्तीसगढ़ के बाकी इलाकों से भी लगा रहे थे"ये शीर्ष नेतृत्व की हार : सुधीर पांडेय आगे कहते हैं "हाल ही में जो घटना हुई वो अप्रत्याशित और आश्चर्यजनक थी, मैं तो ये मानूंगा की किसी भी राजनीतिक पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की हार है ये या उनके आपसी समन्वय की कमी है. जिसके बदौलत ये स्थिति निर्मित हुई. यह स्थिति आनी ही नही थी. या तो जो स्थिति थी उसको क्लियर करके रखना था कि आपको बनना है या नही बनना है. आपको विभाग चलाना है या नही चलाना है. आप लोगों के बीच में आपसी तनाव है उसे बैठकर के कैसे दूर करना है, और ये परिस्थितियां बनना किसी भी बड़ी पार्टी के लिये और खासकर के कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी के लिए दुर्भाग्य जनक है"

ये भी पढ़ें -क्या फिर दिल्ली में आमने सामने होंगे बघेल और सिंहदेव समर्थक ?



अंदरूनी संघर्ष से होगा नुकसान : वरिष्ठ पत्रकार सुधीर पांडेय इस मसले पर बताते हैं " भविष्य में इसके अच्छे परिणाम नही आयेंगे अंदरूनी संघर्ष है, जगजाहिर हो चुका है, पहले ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला जग जाहिर हो चुका था, उसके बाद से ये तनाव बढ़ा है. ढाई साल गुजरने के बाद जब तनाव बढ़ने लगा तभी से लोग अटकलें लगाने लगे की ये सरकार या कांग्रेस की मौजूदा स्थिति छत्तीसगढ़ के लिये भी अच्छी नही रहने वाली. लोग कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में नये पन में देख रहे थे एक छत्तीसगढ़ी पन का आभास होने लगा था और ऐसा लग रहा था कि थोड़े मोड़े टकराव के बाद सरकार बहुत अच्छे से चलेगी. कांग्रेस के लिए पूरे देश मे एक दो ही राज्य बच गये हैं. उसमें छत्तीसगढ़ राज्य का भी महत्वपूर्ण स्थान है, मुझे नही लगता है कि आने वाले समय मे अगर कोई ठोस कदम नही उठाये गये या कोई समन्यव के लिए बेहतर रणनीति नही बनाई गई तो बहुत अच्छे से चल पाएगी ये सरकार"

सरगुजा : पूरे देश में यदि कांग्रेस की स्थिति की बात करें तो छत्तीसगढ़ में उसकी स्थिति बेहतर है. 2018 में कांग्रेस ने यहां आंधी चली और केन्द्रीय नेतृत्व में बल भर दिया. लेकिन प्रदेश की सत्ता का समय जैसे-जैसे बीतता गया. आंतरिक द्वंद एक बार फिर बाहर निकलकर सामने आया. कई बार नेताओं के बीच की लड़ाई उजागर हुई. लेकिन आलाकमान से निर्देश मिला आल इज वेल. फिर भी कांग्रेस के दो बड़े नेताओं के बीच की खटास अब किसी से छिपी नही है. छत्तीसगढ़ में कुर्सी की जंग ने प्रदेश को अजब मोड़ में लाकर खड़ा कर दिया है. सरकार के कद्दावर मंत्री(Chhattisgarh cabinet minister TS Singhdeo) ने अपने एक विभाग से इस्तीफा दे (Singhdeo resignation threatens the future of Congress) दिया. इसके बाद मुख्यमंत्री के नाम पत्र लिखा, इस पत्र में लिखे शब्द, शान्त पड़े विपक्ष के लिये मानो किसी संजीवनी का काम कर गये हो. विपक्ष अचानक से उठ खड़ा हुआ और अब विधानसभा में हमलावर है.

सिंहदेव के इस्तीफे पर चर्चा
मंत्री को विश्वास नही तो कौन करेगा विश्वास : भाजपा के लिये ये वो सुनहरा अवसर है जिस पर सवार होकर एक बार फिर वो सत्ता में वापसी कर सकती है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अनुराग सिंह देव कहते हैं " देखिए सरकार के महत्वपूर्ण मंत्री, दूसरे नंबर के मंत्री जो इस सरकार के घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष थे, उन्होंने ही इस सरकार के प्रति अपना अविश्वास प्रकट कर दिया है. उन्होंने बता दिया कि घोषणा पत्र पूरा नहीं किया गया है. उन्होंने बता दिया कि पेसा कानून लागू नही किया गया है. आदिवासियों का अहित किया जा रहा है. उन्होंने बता दिया कि इस पूरी गर्मी भर काम नहीं हुआ है. मनरेगा के अंतर्गत, वो हड़ताल प्रायोजित थी. मजदूरों का अहित हुआ है, 8 लाख आवास जो यहां पर मिलने थे लोगों को वो नही मिल पाया है. तो एक तरह से सारी बातें उन्होंने कह दी हैं. तो इस सरकार पर अब पूरी तरह से अविश्वास का संकट गहरा गया है. तो मुख्यमंत्री जी को विचार करना चाहिये कि जब उनके कैबिनेट मंत्री को ही उन पर विश्वास नही है तो और कौन लोग उन पर विश्वास करते होंगे. तो उनको अपना पद छोड़ना चाहिये, और टीएस सिंहदेव ने अगर इतना अविश्वास कर लिया है और वो घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष रहे हैं .तो उनको आधा अधूरा नही पूरा पूरा इस्तीफा देना चाहिये. अब ये पेंडुलम की स्थिति नही चलेगी. अब पूरा निर्णय लेना पड़ेगा. जनता की अदालत में आप 4 साल में पूरी तरह से एक्सपोज हो गये हैं."पीसीसी चीफ, विधानसभा अध्यक्ष अन्य मंत्री भी नाखुश : अनुराग सिंह ने यह भी कहा " अभी एक बैठक में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बता रहे थे कि बाहर से लाकर लोगों को यहां कैबिनेट मंत्री बनाया जा रहा (TS Singhdeo resignation has impact in Chhattisgarh) है. अपनी सरकार पर अविश्वास प्रकट कर रहे थे. स्पीकर जो हैं विधानसभा के वो भी कई बार अविश्वास प्रकट करते हैं, वहां मंत्री जो हैं कोरबा में वो अविश्वास प्रकट करते हैं. खुद कैबिनेट मंत्री जो हैं टीएस सिंहदेव वो भी अविश्वास प्रकट कर रहे हैं. तो इससे अधिक और क्या प्रमाण चाहिए की कांग्रेस की स्थिति क्या है. इस सरकार में सिर्फ भ्रष्टाचार हो रहा हैं और अभी अभी ईडी ने यह स्पष्ट कर दिया कि किस तरह की लूट खसोट मची है. इस सरकार को दस जनपथ अपना एटीएम समझती है"कांग्रेस चुप लेकिन एक का टूटा सब्र : इधर सरगुजा में तमाम कांग्रेसी इस मसले पर चुप्पी साधे बैठे हैं. ऑफ द रिकॉर्ड तो बहुत कुछ कहते हैं. लेकिन कैमरे में कोई कुछ कहने को तैयार नही है. लेकिन एक पुराने कांग्रेसी नेता और मंत्री सिंहदेव के करीबी अरुण मिश्रा का दर्द कैमरे पर छलक ही गया. अरुण मिश्रा के पिता स्व. रेवती रमण मिश्र अविभाजित सरगुजा में संघ के संस्थापक रहे और जन संघ को भी स्थापित किया. इसके साथ ही वो सरगुजा राज परिवार के राज पुरोहित भी रहे, बावजूद इसके उनके बेटे अरुण मिश्रा 1978 से कांग्रेस के साथ रहे.जिला महामंत्री ने कही कांग्रेस छोड़ने की बात : अरुण मिश्रा वर्तमान में जिला कांग्रेस के महामंत्री हैं. उन्होंने कहा " कांग्रेस में रहने का कारण ये रहा कि पहला महाराजा साहब टीएस सिंहदेव और मेरा संबंध राजा और राज पुरोहित का है. दूसरा 1977 में जब जनता पार्टी बनी यह पार्टी तब बनी जब सब लोग मीसा में बंद थे, और मीसा में बंद होने के बाद इन लोगों ने महात्मा गांधी की समाधी पर जाकर शपथ ली की महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलेंगे. लेकिन जनता पार्टी का क्या हश्र हुआ, उससे विच्छोवीत होकर मुझे लगा की महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलने वाली पार्टी है, धर्म निरपेक्षता पर चलने वाली पार्टी है, और क्योंकि महाराजा साहब से हमारे पारिवारिक संबंध थे तो हमने सोचा की मुझे कांग्रेस पार्टी में जाना चाहिये. मैं 1978 से कांग्रेस अभी एक सप्ताह पहले तक मैं कांग्रेस का सेवक रहा"टीएस बाबा को सीएम बनने दिये थे वोट : अरुण मिश्रा आगे कहते हैं " हम लोगों ने छत्तीसगढ़ की जनता ने टीएस बाबा को मुख्यमंत्री बनाने के लिये कांग्रेस को वोट दिया था. हमने सोनिया गांधी से भी बात की. प्रियंका गांधी से भी बात की. पुनिया जी से भी बात की राहुल गांधी से भी बात (impact of TS Singhdeo displeasure in Surguja) की, मैंने अंतिम चेतावनी दी कि मेरे सिद्धांतों के विपरीत काम हो रहा है, इन बातों पर विचार किया जाये, लेकिन उन लोगों ने कोई निर्णय नही लिया. अंततोगत्वा मुझे घर वापस आना पड़ा. मैं किसी पार्टी का सदस्य नही बना हूं. मैने स्वयं एक ऐसी संस्था का गठन किया है, जिसका नाम है ग्रामीण राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ"स्वाभिमान पर कुठाराघात : अरुण मिश्रा आगे कहते हैं कि "मैं टीएस बाबा के धैर्य की तारीफ करता हूँ, उतना धैर्यवान मैं नही हूं. मैं अपना स्वाभिमान बेचकर किसी भी संस्था में काम नही कर सकता, आज टीएस बाबा के स्वाभिमान पर कुठाराघात किया जा रहा है. भारत मे ऐसा कोई भी परिवार नही है जो इतने समय तक कांग्रेस की सेवा किया हो . कांग्रेस के सेवक को वो लोग जो कभी कांग्रेस के खिलाफ निर्दलीय लड़े, कभी भाजपा से आये और यहां टिकट पाकर विधायक बने हैं, वो लोग उस कांग्रेस के परिवार को गाली दें तो उस संस्था से तो अलग हो जाना ही मैं उचित समझता हूं. सिंहदेव साहब जो भी निर्णय लेंगे हम उनके साथ हैं, लेकिन हम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ नही हैं" बहुत उम्मीद थी कांग्रेस से : इस पूरे घटनाक्रम पर सरगुजा और छत्तीसगढ़ की राजनीति को लंबे समय से देखने और समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुधीर पांडेय से भी हमने बातचीत की उन्होंने कहा कि ''कांग्रेस सरकार से बहुत उम्मीद थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं, जल्द कुछ नही किया गया तो कांग्रेस का भविष्य छत्तीसगढ़ में अंधकार में है, आज जो स्थिति बनी है ये शीर्ष नेतृत्व की कमजोरी है.''सीएम बनाने 14 की 14 सीट मिली : सुधीर पांडेय कहते हैं " छत्तीसगढ़ एक विकाशसील प्रदेश है, जहां पर बहोत तेजी से विकास के कार्यों की उम्मीद की जा रही थी, खासकर के 15 साल की भाजपा सरकार के जाने के बाद लोगों को कांग्रेस से बहोत ज्यादा उम्मीद बन गई थी. इतने भारी बहुमत से कांग्रेस ने सरकार बनाई की लोगों को उम्मीद थी की बहोत कुछ नया देखने को मिलेगा, कांग्रेस की एक सशक्त सरकार है, परन्तु शुरुआत में कथित रूप से ढाई-ढाई साल को लेकर जो अटकलें चालू हुईं और ढाई साल बाद सरकार की जो स्थिति बनी वो किसी से नही छुपा है. एक अंदरूनी संघर्ष बना रहा, भूपेश बघेल और टी एस सिंहदेव के लोग बतौर मुख्यमंत्री ही देख रहे थे नंबर एक और दो की बात नही थी. लगभग बराबर ही पूरे प्रदेश में देखा जाने लगा था. सरगुजा को तो बहोत उम्मीद थी. 14 में से 14 सीट हासिल हुई थी, ये कहा जा रहा था की सिंहदेव के कारण या उन्हें मुख्यमंत्री बनाये जाने के चलते ही ये 14 सीटें मिल रही हैं. हकीकत भी लगभग ऐसा ही था लोगों ने दिल खोल के वोट दिया था कि हमारे क्षेत्र से कोई सीएम बनेगा, और यही उम्मीद लोग छत्तीसगढ़ के बाकी इलाकों से भी लगा रहे थे"ये शीर्ष नेतृत्व की हार : सुधीर पांडेय आगे कहते हैं "हाल ही में जो घटना हुई वो अप्रत्याशित और आश्चर्यजनक थी, मैं तो ये मानूंगा की किसी भी राजनीतिक पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की हार है ये या उनके आपसी समन्वय की कमी है. जिसके बदौलत ये स्थिति निर्मित हुई. यह स्थिति आनी ही नही थी. या तो जो स्थिति थी उसको क्लियर करके रखना था कि आपको बनना है या नही बनना है. आपको विभाग चलाना है या नही चलाना है. आप लोगों के बीच में आपसी तनाव है उसे बैठकर के कैसे दूर करना है, और ये परिस्थितियां बनना किसी भी बड़ी पार्टी के लिये और खासकर के कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी के लिए दुर्भाग्य जनक है"

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अंदरूनी संघर्ष से होगा नुकसान : वरिष्ठ पत्रकार सुधीर पांडेय इस मसले पर बताते हैं " भविष्य में इसके अच्छे परिणाम नही आयेंगे अंदरूनी संघर्ष है, जगजाहिर हो चुका है, पहले ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला जग जाहिर हो चुका था, उसके बाद से ये तनाव बढ़ा है. ढाई साल गुजरने के बाद जब तनाव बढ़ने लगा तभी से लोग अटकलें लगाने लगे की ये सरकार या कांग्रेस की मौजूदा स्थिति छत्तीसगढ़ के लिये भी अच्छी नही रहने वाली. लोग कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में नये पन में देख रहे थे एक छत्तीसगढ़ी पन का आभास होने लगा था और ऐसा लग रहा था कि थोड़े मोड़े टकराव के बाद सरकार बहुत अच्छे से चलेगी. कांग्रेस के लिए पूरे देश मे एक दो ही राज्य बच गये हैं. उसमें छत्तीसगढ़ राज्य का भी महत्वपूर्ण स्थान है, मुझे नही लगता है कि आने वाले समय मे अगर कोई ठोस कदम नही उठाये गये या कोई समन्यव के लिए बेहतर रणनीति नही बनाई गई तो बहुत अच्छे से चल पाएगी ये सरकार"

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

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