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SPECIAL: कपड़े के थैले बेचकर इन महिलाओं ने 3 महीने में ढाई लाख रुपए कमा लिए

सरगुजा में स्व सहायता समूह की महिलाएं पॉलीथिन के उपयोग को रोकने के लिए कपड़े के थैलों का निर्माण कर रहीं हैं. इन कपड़े के थैलों को इस तरह से बनाया गया है कि इसे रखने के बाद पॉलीथिन का इस्तेमाल कम होगा.

sarguja women earned 2.5 lakh rupees in 3 months by selling cloth bags
स्व सहायता समूह की महिलाएं
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Published : Jan 2, 2020, 2:47 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST

सरगुजा: छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल राज्य है. सरगुजा जैसे आदिवासी अंचल की महिलाओं से सीखना चाहिए कि कैसे आपका हुनर, आपकी जिंदगी संवार सकता है. ये महिलाएं न सिर्फ अपने दम पर अपना परिवार चला रही हैं बल्कि सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ काम कर रही हैं. इससे न सिर्फ वे सफाई का संदेश दे रही हैं बल्कि कमाई भी कर रही हैं.

कपड़े के थैले बेच रही महिलाएं

इस स्व सहायता समूह में उदयपुर विकासखंड के परसा गांव की महिलाएं हैं. महज 3 महीने में इस स्व सहायता समूह ने न केवल लगभग 3400 बैग बनाए हैं बल्कि बड़ी ऑनलाइन कंपनी के जरिए इन्होंने 15 लाख के थैले बेचे हैं. इसमें से उन्हें 2.5 लाख रुपए का फायदा हुआ है. इस तरह से इन महिलाओं का ये स्व सहायता समूह महिला सशक्तितरण का उदाहरण बन चुका है.

कुछ ऐसे शुरू हुआ सफर...
ये महिलाएं पॉलीथिन के उपयोग को रोकने की दिशा में कपड़े के थैलों का निर्माण कर रहीं थी. इन कपड़े के थैलों को इस तरह से बनाया गया है कि इसे रखने के बाद न तो पॉलीथिन के इस्तेमाल की जरूरत होगी और अगर सिंगल यूज प्लास्टिक का सामान आपने लिया तो उसका रैपर आगे बने पॉकेट में रख सकेंगे.

इंटरनेशनल ऑनलाइन सेलिंग कंपनी को ग्रामीण महिलाओं का यह उत्पाद बेहद पसंद आया और कंपनी ने इन बैग को अपने जरिए बेचने का अनुबंध कर लिया. महज 3 महीने में इन महिलाओं ने लगभह 34 सौ बैग न सिर्फ बनाए बल्कि इनकी बिक्री भी ऑनलाइन सेलिंग कंपनी के जरिए हो चुकी है. जिससे लगभग 15 लाख रुपए महिलाओं की इस कोऑपरेटिव सोसाइटी को प्राप्त हुए हैं.

20 फीसदी का मिल रहा है लाभ
महिलाओं ने बताया कि लगभग 20% का लाभ उन्हें इस व्यवसाय में हो रहा है. बैग की ऑनलाइन बिक्री के जरिए यह महिलाएं लगभग 2.5 लाख रुपए कमा चुकी हैं. बैग बनाने का काम समूह की 11 महिलाएं करती हैं. थैला बनाने से लेकर ऑनलाइन ऑर्डर की पैकिंग भी खुद ही करती हैं.

इसके बाद यह सामान कुरियर से लोगों तक पहुंच जाता है. महिलाओं के इस समूह को जिला प्रशासन ने सहयोग किया है. इन्हें प्रशिक्षण सहित अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए निजी फाउंडेशन के द्वारा दिए गए सीएसआर मद से सहयोग किया गया है. इसके साथ ही महिलाओं ने अपने व्यवसाय को शुरू करने के लिए शासकीय योजना के अंतर्गत लोन भी लिया है, जिसका भुगतान वह समय पर कर देती हैं.

दूरस्थ गांव में रहने वाली यह महिलाएं जो बात करने में भी शरमाती हैं, इन्होंने बड़ी उपलब्धि हासिल की है. दुनिया की बड़ी ऑनलाइन कंपनी इनका प्रोडक्ट बेच रही है. इससे न सिर्फ ये महिलाएं सशक्त हुई हैं बल्कि दूसरों के लिए मिसाल भी बनी हैं. ये कदम महिलाओं के परिवार को बेहतर भविष्य देगा.

सरगुजा: छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल राज्य है. सरगुजा जैसे आदिवासी अंचल की महिलाओं से सीखना चाहिए कि कैसे आपका हुनर, आपकी जिंदगी संवार सकता है. ये महिलाएं न सिर्फ अपने दम पर अपना परिवार चला रही हैं बल्कि सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ काम कर रही हैं. इससे न सिर्फ वे सफाई का संदेश दे रही हैं बल्कि कमाई भी कर रही हैं.

कपड़े के थैले बेच रही महिलाएं

इस स्व सहायता समूह में उदयपुर विकासखंड के परसा गांव की महिलाएं हैं. महज 3 महीने में इस स्व सहायता समूह ने न केवल लगभग 3400 बैग बनाए हैं बल्कि बड़ी ऑनलाइन कंपनी के जरिए इन्होंने 15 लाख के थैले बेचे हैं. इसमें से उन्हें 2.5 लाख रुपए का फायदा हुआ है. इस तरह से इन महिलाओं का ये स्व सहायता समूह महिला सशक्तितरण का उदाहरण बन चुका है.

कुछ ऐसे शुरू हुआ सफर...
ये महिलाएं पॉलीथिन के उपयोग को रोकने की दिशा में कपड़े के थैलों का निर्माण कर रहीं थी. इन कपड़े के थैलों को इस तरह से बनाया गया है कि इसे रखने के बाद न तो पॉलीथिन के इस्तेमाल की जरूरत होगी और अगर सिंगल यूज प्लास्टिक का सामान आपने लिया तो उसका रैपर आगे बने पॉकेट में रख सकेंगे.

इंटरनेशनल ऑनलाइन सेलिंग कंपनी को ग्रामीण महिलाओं का यह उत्पाद बेहद पसंद आया और कंपनी ने इन बैग को अपने जरिए बेचने का अनुबंध कर लिया. महज 3 महीने में इन महिलाओं ने लगभह 34 सौ बैग न सिर्फ बनाए बल्कि इनकी बिक्री भी ऑनलाइन सेलिंग कंपनी के जरिए हो चुकी है. जिससे लगभग 15 लाख रुपए महिलाओं की इस कोऑपरेटिव सोसाइटी को प्राप्त हुए हैं.

20 फीसदी का मिल रहा है लाभ
महिलाओं ने बताया कि लगभग 20% का लाभ उन्हें इस व्यवसाय में हो रहा है. बैग की ऑनलाइन बिक्री के जरिए यह महिलाएं लगभग 2.5 लाख रुपए कमा चुकी हैं. बैग बनाने का काम समूह की 11 महिलाएं करती हैं. थैला बनाने से लेकर ऑनलाइन ऑर्डर की पैकिंग भी खुद ही करती हैं.

इसके बाद यह सामान कुरियर से लोगों तक पहुंच जाता है. महिलाओं के इस समूह को जिला प्रशासन ने सहयोग किया है. इन्हें प्रशिक्षण सहित अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए निजी फाउंडेशन के द्वारा दिए गए सीएसआर मद से सहयोग किया गया है. इसके साथ ही महिलाओं ने अपने व्यवसाय को शुरू करने के लिए शासकीय योजना के अंतर्गत लोन भी लिया है, जिसका भुगतान वह समय पर कर देती हैं.

दूरस्थ गांव में रहने वाली यह महिलाएं जो बात करने में भी शरमाती हैं, इन्होंने बड़ी उपलब्धि हासिल की है. दुनिया की बड़ी ऑनलाइन कंपनी इनका प्रोडक्ट बेच रही है. इससे न सिर्फ ये महिलाएं सशक्त हुई हैं बल्कि दूसरों के लिए मिसाल भी बनी हैं. ये कदम महिलाओं के परिवार को बेहतर भविष्य देगा.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST
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