अंबिकापुर: स्वच्छ भारत मिशन का जिक्र जब भी होगा तब छत्तीसगढ़ के इस छोटे से शहर अंबिकापुर को याद किया जाएगा. न सिर्फ सफाई, कचरा प्रबंधन यहां तक कि इसके लिए किए गए खर्च में भी अंबिकापुर नगर निगम ने मिसाल पेश की है. निगम ने स्वच्छता का मॉडल पेश करने में सालभर में महज 7 करोड़ 80 लाख रुपये ही खर्चे किए है. यानि महीने में 65 लाख खर्च करने पर पूरा शहर साफ रहा. जबकि स्वच्छता सर्वेक्षण की होड़ में कई बड़े निकायों ने जमकर खर्च किया.
45 रुपये प्रति व्यक्ति प्रतिमाह खर्च
अंबिकापुर नगर निगम शहर को साफ रखने में प्रति व्यक्ति प्रतिमाह 45 रुपये खर्च कर रहा है. जबकि स्वच्छता सर्वेक्षण में अंबिकापुर को चुनौती देने वाली एक अन्य बड़ी निकाय का खर्च 165 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह खर्च किया गया है. इस हिसाब से उस नगर निगम ने महीने के 45 करोड़ और साल के 5 सौ पचास करोड़ रुपए शहर को स्वच्छ रखने में खर्च किए है.
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कचरा खुद निकालता है पूरा खर्च
अंबिकापुर निगम डोर टू डोर कचरा कलेक्शन, यूजर चार्ज और बायो वेस्ट से जो कमाई कर रहा है उसी से उसका साल भर का शहर का सफाई का खर्च निकल जाता है. अलग से कोई बजट न तो स्वच्छता दीदियों के मानदेय के लिये लगता है, न ही कचरा वाहनों में ईंधन का ज्यादा खर्च है. यहां ज्यादातर ईरिक्शा या मैनुअल रिक्शा का ही इस्तेमाल किया जा रहा है.
स्वच्छता का मास्टर ट्रेनर बना अंबिकापुर
कचरा कलेक्शन का मॉडल, कचरे के सदुपयोग का नायाब उदाहरण, दीदी बर्तन घर की योजना, एफएसटीपी के जरिये जीरो स्लज सैप्टिक टैंक का ट्रीटमेंट, वाटर प्लस में प्राकृतिक संसाधनों से पानी के फिल्टरेशन की पद्दति, गंदे पानी को रीयूज का उदाहरण, देश का पहला गार्बेज कैफे का आइडिया ऐसे कई उदाहरण इस शहर ने पेश किये हैं. जिसकी वजह से इसे स्वच्छता का मास्टर ट्रेनर भी कहा जाये तो अतिशियोक्ति नहीं होगी. तभी तो यहां स्वच्छता की दीक्षा दी जाती है. जहां देशभर से IAS सीखने आते हैं. नेपाल सरकार की टीम सहित देशभर की नगरीय निकाय की टीम अंबिकापुर के स्वच्छता दीक्षा नामक स्कूल में क्लास लेने आते हैं. जिसकी फीस भी उन्हें अंबिकापुर नगर निगम को देनी होती है. फिलहाल मितव्ययता का जो उदाहरण ये शहर पेश कर रहा है, वो काबिले तारीफ है.