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अम्बिकापुर के कई कालोनियों के रहवासी मूलभूत सुविधाओं से वंचित - अम्बिकापुर नगर निगम

अम्बिकापुर में कई कालोनियां ऐसी है, जहां लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. क्योंकि नगर निगम को कालोनियों को हैंड ओवर नहीं किया गया (Residents of many colonies of Ambikapur deprived of basic facilities) है.

Residents of colonies deprived of basic facilities
कालोनियों के रहवासी मूलभूत सुविधाओं से वंचित
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Published : Jul 28, 2022, 8:33 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा: अम्बिकापुर शहर में कई ऐसी कालोनियां हैं, जिनमें रहने वाले लोग नगर निगम से मिलने वाली मूलभूत सुविधाओं से महरूम हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि अब तक इन कालोनियों को नगर निगम ने अपने हैंड ओवर में नहीं लिया (Residents of many colonies of Ambikapur deprived of basic facilities) है. प्राइवेट कॉलोनाइजर कालोनी बनाकर लोगों को मकान बेच तो देते हैं, लेकिन शासकीय नियमों का पालन नहीं कर पाने की वजह से ऐसी कालोनियों में रहने वाले लोग परेशान होते रहते हैं. अम्बिकापुर में एक कालोनी तो ऐसी है, जहां के लोग 13 वर्ष से मूलभूत सुविधाओं का इंतजार कर रहे हैं.

अम्बिकापुर के कई कालोनियों के रहवासी मूलभूत सुविधाओं से वंचित

32 कालोनियों में 9 ही नगर निगम के अंतर्गत: अम्बिकापुर नगर निगम क्षेत्र में 32 शासकीय और अशासकीय कालोनियों का निर्माण किया गया और मकान बेचे गए. 32 में से 9 कालोनियों को ही नगर निगम ने अपने हैंड ओवर में लिया है. बाकी की कालोनी में रहने वाले लोग नगर निगम से मिलने वाली बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं. यहां बिजली, पानी, साफ-सफाई जैसी सुविधाएं नगर निगम उपलब्ध नहीं कराता है. लिहाजा लोग परेशान हैं. एक निजी कालोनी जिसका विवाद न्यायालय में लंबित है. यहां के लोग तो 13 वर्ष से सुविधाओं के आभाव में जूझ रहे हैं.

बिल्डरों की लापरवाही: ये पूरा मामला बिल्डरों की लापरवाही से जुड़ा है. नगर निगम को क्षेत्र में कालोनी डेवलप कर उसे बेचने के लिये सरकारी नियमों को पूरा करना होता है. जिन कालोनियों ने नियम पूरे नहीं किये गए उसे नगर निगम अपने हैंड ओवर में नहीं ले सकता है. ऐसा सिर्फ निजी कालोनियों में नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड कारपोरेशन के द्वारा निर्मित शासकीय कालोनी में भी है, आज तक नगर निगम को सुपुर्द नहीं हो सकी है. अब इसका खामियाजा यहां के रहवासी भुगत रहे हैं.

10 से 12 कॉलोनी वंचित: इस विषय में पूर्व पार्षद संजय अग्रवाल कहते हैं, "कुंडला में लगभग 250 परिवार निवास करते हैं और नगर निगम को समय पर संपत्ति कर देते हैं. इसके बावजूद नगर निगम से कोई भी सुविधा वहां पर उपलब्ध नहीं थी. इन मांगों को लेकर मैं पिछले कार्यकाल में लगातार संघर्ष किया. लेकिन एक छोटे विवाद के कारण मामला हाई कोर्ट में विचाराधीन है, उसको बहाना बनाकर नगर निगम ने आज तक कोई भी सुविधा कुंडला वासियों को नहीं दी है. मेरी जानकारी में शहर में 10-12 और कालोनियां है, जो नगर निगम से सुविधाए मांग रही है."

यह भी पढ़ें: Human trafficking: गरीब बच्चों के भविष्य पर डाका, जानिए मानव तस्करी का सबसे बड़ा सर्किट

पसरा रहता है अंधेरा: इस विषय में दिनेश अग्रवाल कहते हैं, "शहर की पॉश कालोनी शहर के बीचों-बीच आप कुंडला सिटी में खड़े हैं. आप देख रहे हैं यहां कितना अंधेरा छाया हुआ है. हमारे द्वारा कई बार निगम में प्रयास किया गया कि अपने हैंड ओवर लेकर निगम हमें सुविधाएं दे लेकिन विगत 5-6 सालों में कई बार बोला गया. महापौर जी के द्वारा बोला गया कि आप 80 से 90 फीसद टैक्स कलेक्शन करा दीजिये. हम लोगों ने सबको जागरूक कर टेक्स भी जमा करा दिया, लेकिन फिर भी कोई सुविधा यहां नहीं दी गई."

शायद 14 वर्ष में खत्म हो वनवास: विनोद अग्रवाल कहते हैं, "समस्याओं की तो कुंडला में इन्तहां हैं. समस्याएं तो कुण्डला से जुड़ी हुई हैं. जिस समय इसका जन्म हुआ, समस्याओं का भी जन्म हुआ. किसी ने भी इस समस्या को दूर करने की पहल नहीं की. हम लोगों ने लगातार निगम से अन्य अधिकारियों से निवेदन किया. लेकिन समस्याएं सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी रहती है. इसके अंत का पता नहीं. मेरे ख्याल से कुंडला में लोग 13 साल से निवास कर रहे हैं. अब तो उम्मीद यही बची है कि 14 साल में तो प्रभु श्री राम का भी वनवास खत्म हो गया था, तो शायद 14 साल बाद हम लोगों का भी कुछ इलाज हो जाये."

हाउसिंग बोर्ड को भी नहीं किया टेक ओवर: इस मामले में मेयर अजय तिर्की ने बताया, "नगर निकाय क्षेत्र में अपने यहां आए लगभग 32 कालोनियां छोटी-बड़ी मिलाकर हैं. इसमें हम लोगों ने 9 कालोनियों को टेक ओवर किया है, जिसे निगम के नियमों का पालन करते हुए बनाया है. जैसे कि EWS की जमीन और ये सब नियमों के तहत उन्होंने हैंड ओवर किया है. या फिर उसके बदले पैसे जमा किये और सारी चीजें डेवलप करके उन्होंने किया है. ऐसी 9 कालोनियों को हम लोगों ने टेक ओवर किया है. दूसरी तरफ 12-13 कालोनियां ऐसी हैं, जहां पर कुछ ना कुछ लीगल प्वाइंट हैं. कहीं और रोड नहीं बना है. तो कहीं ड्रैनेज की व्यवस्था अच्छे से नहीं की गई है. इसमें ऐसा नहीं है कि हम सिर्फ प्राइवेट सेक्टर को ही नहीं ले रहे हैं. जैसे हाउसिंग बोर्ड एक सरकारी संस्था है. उन्होंने जो कालोनी बनाई है उनके द्वारा भी टेक ओवर के लिए लेटर आया हुआ है. लेकिन मापदंडों के अनुसार वहां काम नहीं हुआ है. इसलिए उनको भी हम लोगों ने टेक ओवर नहीं किया है, जो नियमानुसार निगम के नियमों का पालन करके आवेदन करते हैं उनको हम ले लेते हैं. कुछ प्राइवेट कालोनियों को बता दिया गया है कि कुछ लीगल इशू है या डेवलपमेंट का है... तो वो उन सब नियमों का पालन करके आवेदन करें तो फिर उस पर विचार किया जायेगा."

सरगुजा: अम्बिकापुर शहर में कई ऐसी कालोनियां हैं, जिनमें रहने वाले लोग नगर निगम से मिलने वाली मूलभूत सुविधाओं से महरूम हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि अब तक इन कालोनियों को नगर निगम ने अपने हैंड ओवर में नहीं लिया (Residents of many colonies of Ambikapur deprived of basic facilities) है. प्राइवेट कॉलोनाइजर कालोनी बनाकर लोगों को मकान बेच तो देते हैं, लेकिन शासकीय नियमों का पालन नहीं कर पाने की वजह से ऐसी कालोनियों में रहने वाले लोग परेशान होते रहते हैं. अम्बिकापुर में एक कालोनी तो ऐसी है, जहां के लोग 13 वर्ष से मूलभूत सुविधाओं का इंतजार कर रहे हैं.

अम्बिकापुर के कई कालोनियों के रहवासी मूलभूत सुविधाओं से वंचित

32 कालोनियों में 9 ही नगर निगम के अंतर्गत: अम्बिकापुर नगर निगम क्षेत्र में 32 शासकीय और अशासकीय कालोनियों का निर्माण किया गया और मकान बेचे गए. 32 में से 9 कालोनियों को ही नगर निगम ने अपने हैंड ओवर में लिया है. बाकी की कालोनी में रहने वाले लोग नगर निगम से मिलने वाली बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं. यहां बिजली, पानी, साफ-सफाई जैसी सुविधाएं नगर निगम उपलब्ध नहीं कराता है. लिहाजा लोग परेशान हैं. एक निजी कालोनी जिसका विवाद न्यायालय में लंबित है. यहां के लोग तो 13 वर्ष से सुविधाओं के आभाव में जूझ रहे हैं.

बिल्डरों की लापरवाही: ये पूरा मामला बिल्डरों की लापरवाही से जुड़ा है. नगर निगम को क्षेत्र में कालोनी डेवलप कर उसे बेचने के लिये सरकारी नियमों को पूरा करना होता है. जिन कालोनियों ने नियम पूरे नहीं किये गए उसे नगर निगम अपने हैंड ओवर में नहीं ले सकता है. ऐसा सिर्फ निजी कालोनियों में नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड कारपोरेशन के द्वारा निर्मित शासकीय कालोनी में भी है, आज तक नगर निगम को सुपुर्द नहीं हो सकी है. अब इसका खामियाजा यहां के रहवासी भुगत रहे हैं.

10 से 12 कॉलोनी वंचित: इस विषय में पूर्व पार्षद संजय अग्रवाल कहते हैं, "कुंडला में लगभग 250 परिवार निवास करते हैं और नगर निगम को समय पर संपत्ति कर देते हैं. इसके बावजूद नगर निगम से कोई भी सुविधा वहां पर उपलब्ध नहीं थी. इन मांगों को लेकर मैं पिछले कार्यकाल में लगातार संघर्ष किया. लेकिन एक छोटे विवाद के कारण मामला हाई कोर्ट में विचाराधीन है, उसको बहाना बनाकर नगर निगम ने आज तक कोई भी सुविधा कुंडला वासियों को नहीं दी है. मेरी जानकारी में शहर में 10-12 और कालोनियां है, जो नगर निगम से सुविधाए मांग रही है."

यह भी पढ़ें: Human trafficking: गरीब बच्चों के भविष्य पर डाका, जानिए मानव तस्करी का सबसे बड़ा सर्किट

पसरा रहता है अंधेरा: इस विषय में दिनेश अग्रवाल कहते हैं, "शहर की पॉश कालोनी शहर के बीचों-बीच आप कुंडला सिटी में खड़े हैं. आप देख रहे हैं यहां कितना अंधेरा छाया हुआ है. हमारे द्वारा कई बार निगम में प्रयास किया गया कि अपने हैंड ओवर लेकर निगम हमें सुविधाएं दे लेकिन विगत 5-6 सालों में कई बार बोला गया. महापौर जी के द्वारा बोला गया कि आप 80 से 90 फीसद टैक्स कलेक्शन करा दीजिये. हम लोगों ने सबको जागरूक कर टेक्स भी जमा करा दिया, लेकिन फिर भी कोई सुविधा यहां नहीं दी गई."

शायद 14 वर्ष में खत्म हो वनवास: विनोद अग्रवाल कहते हैं, "समस्याओं की तो कुंडला में इन्तहां हैं. समस्याएं तो कुण्डला से जुड़ी हुई हैं. जिस समय इसका जन्म हुआ, समस्याओं का भी जन्म हुआ. किसी ने भी इस समस्या को दूर करने की पहल नहीं की. हम लोगों ने लगातार निगम से अन्य अधिकारियों से निवेदन किया. लेकिन समस्याएं सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी रहती है. इसके अंत का पता नहीं. मेरे ख्याल से कुंडला में लोग 13 साल से निवास कर रहे हैं. अब तो उम्मीद यही बची है कि 14 साल में तो प्रभु श्री राम का भी वनवास खत्म हो गया था, तो शायद 14 साल बाद हम लोगों का भी कुछ इलाज हो जाये."

हाउसिंग बोर्ड को भी नहीं किया टेक ओवर: इस मामले में मेयर अजय तिर्की ने बताया, "नगर निकाय क्षेत्र में अपने यहां आए लगभग 32 कालोनियां छोटी-बड़ी मिलाकर हैं. इसमें हम लोगों ने 9 कालोनियों को टेक ओवर किया है, जिसे निगम के नियमों का पालन करते हुए बनाया है. जैसे कि EWS की जमीन और ये सब नियमों के तहत उन्होंने हैंड ओवर किया है. या फिर उसके बदले पैसे जमा किये और सारी चीजें डेवलप करके उन्होंने किया है. ऐसी 9 कालोनियों को हम लोगों ने टेक ओवर किया है. दूसरी तरफ 12-13 कालोनियां ऐसी हैं, जहां पर कुछ ना कुछ लीगल प्वाइंट हैं. कहीं और रोड नहीं बना है. तो कहीं ड्रैनेज की व्यवस्था अच्छे से नहीं की गई है. इसमें ऐसा नहीं है कि हम सिर्फ प्राइवेट सेक्टर को ही नहीं ले रहे हैं. जैसे हाउसिंग बोर्ड एक सरकारी संस्था है. उन्होंने जो कालोनी बनाई है उनके द्वारा भी टेक ओवर के लिए लेटर आया हुआ है. लेकिन मापदंडों के अनुसार वहां काम नहीं हुआ है. इसलिए उनको भी हम लोगों ने टेक ओवर नहीं किया है, जो नियमानुसार निगम के नियमों का पालन करके आवेदन करते हैं उनको हम ले लेते हैं. कुछ प्राइवेट कालोनियों को बता दिया गया है कि कुछ लीगल इशू है या डेवलपमेंट का है... तो वो उन सब नियमों का पालन करके आवेदन करें तो फिर उस पर विचार किया जायेगा."

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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