सरगुज़ा : हिन्दू धर्म में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में पूजे जाने वाले भगवान राम के लिए कहा जाता है'हरि अनंत हरि कथा अनंता और हरि की अनंत कथाओं के रूप भी अनंत हैं. महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की तो महाकवि तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना की. वाल्मीकि ने सम्पूर्ण रामायण लिखी तो तुलसी दास की रामचरित मानस में सिर्फ राम के प्रसंग गौण हैं. देश भर में रामायण के कई रूप और प्रसंग हैं. ऐसा ही एक रूप सरगुज़ा में है जो स्थानीय बोली सरगुजिहा में लिखा गया और इसकी सबसे खास बात है की यह बेहद संक्षिप्त है.
सिर्फ 35 पन्नों में समाहित है पूरी रामायण
महज 35 पेज में रामायण को समेट दिया गया है. दरअसल सरगुज़ा के साहित्यकार राम प्यारे रसिक ने यह प्रयोग 1978 में किया था. तब रसिक ने अम्बिकापुर रेडियो स्टेशन की स्थापना होने पर आकाशवाणी में रामायण के सरगुजिहा बोली में प्रसारण के लिये इसकी रचना की थी. लेकिन 1980 में इसमें संसोधन किये गये और 1980 में सरगुजिहा रामायण लिख दी गई. 35 पेज की इस रामायण को गीतों में समाहित किया गया है. इसकी भाषा हिंदी, संस्कृत या अवधी नहीं बल्कि सरगुजिहा है. जिस तरह की भाषा का प्रयोग सरगुज़ा के स्थानीय लोग करते हैं उसी भाव के साथ रसिक ने गीत लिखे और उन गीतों में राम कथा को समाहित कर दिया.
रेडियो पर भी सरगुजिहा रामायण का प्रसारण हुआ
इन गीतों को अम्बिकापुर आकाशवाणी से वर्षों तक प्रसारित किया गया और सरगुज़ा में ये गीत बेहद लोकप्रिय हुए. आलम यह है कि, ज्यादातर धार्मिक आयोजनों में होने वाले भजन कीर्तन में लोग रसिक जी की सरगुजिहा रामायण के गीत गाते हैं. कुछ कलाकारों ने इन गीतों को संगीत संयोजन के साथ रिकॉर्ड भी किया. लेकिन वो बात भी पुरानी हो गई. बदलते संयत्रों के बीच अब इन गीतों को दोबारा रिकॉर्ड करने की जरूरत महसूस होती है. राम प्यारे रसिक जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं 1933 में जन्मे रसिक जी की उम्र अब 90 वर्ष होने का रही है, लिहाजा उनका स्वास्थ्य भी बेहद खराब रहता है.
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सरगुजिहा रामायण के अलावा राम प्यारे रसिक ने कई रचनाओं का प्रकाशन किया है. कुछ हिंदी में हैं तो ज्यादातर सरगुजिहा बोली की हैं. साहित्यिक जगत में वो गीत और गजल के लिये जाने जाते रहे. लेकिन सरगुजिहा रामायण रसिक की वो अमर कृति बन गई जो उनके बाद भी सरगुज़ा वासियों के जीवन मे अहम स्थान रखेगी.