सरगुजा : 23 अप्रैल को प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला ईवीएम में बंद होगा. लेकिन सरगुजा के इस रोचक समीकरण पर एक नजर डाल लेते हैं कि कुछ ही महीनों के अंतर में होने वाले दो चुनाव के परिणाम में इतना अंतर कैसे हो सकता है.
दरअसल लोकसभा चुनाव 2014 कांग्रेस के राम देव राम और भाजपा के कामलभान सिंह के बीच लड़ा गया था. इसमे कांग्रेस प्रत्याशी को लगभग डेढ़ लाख वोट से करारी हार मिली थी, जबकी 2013 के विधानसभा चुनाव में सरगुजा लोकसभा की आठ में से 7 विधानसभा पर कांग्रेस के विधायक चुनाव जीते थे. अब ये बात समझ से परे है की 7 विधायक कांग्रेस के जीतते हैं और उस लोकसभा में कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव हार जाता है. बहरहाल इसके पीछे कांग्रेस मोदी लहर को वजह मानती है. लेकिन इस साल 2019 में कांग्रेस लोकसभा चुनाव जीतने का पुरजोर दावा कर रही है. कांग्रेस का मानना है की कम से कम सरगुजा में अब मोदी लहर जैसी कोई बात नहीं है.
सरगुजा का गणित
अब बात करते हैं 2019 की तो अभी मतदान और परिणाम दोनों ही आना बाकी हैं. लेकिन विधानसभा चुनाव कुछ महीने पहले ही 2018 में हुए हैं. इस चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को काफी पीछे धकेल कर सरकार बनाई है. लेकिन सिर्फ सरगुजा की बात करें तो इस बार 8 में से 8 विधायक कांग्रेस के जीत कर आए हैं जिनमें से 2 मंत्री हैं. विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष खेलसाय सिंह खुद लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में क्या कांग्रेस सरगुजा सीट जीतेगी या भाजपा अपना पुराना इतिहास दोहराएगी.
आठ रत्नों की प्रतिष्ठा दांव पर
विधानसभा चुनाव के परिणाम के मुताबिक 2014 में सरगुजा की स्थिति कांग्रेस के लिए अनुकूल थी और 2019 में तो और भी ज्यादा अनुकूल है. कांग्रेस मुक्त भारत की बात करने वाली पार्टी को सरगुजा में कांग्रेस ने सरगुजा मुक्त कर रखा है. लेकिन क्या अब भी कांग्रेस लोकसभा सीट जीत पाएगी ये बहुत बड़ा सवाल है. यदि नहीं तो कांग्रेस के 8 रत्नों पर बड़ा सवालिया निशान जरूर लगेगा.
इस बार सरगुजा लोकसभा सीट इन 8 रत्नों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बना हुआ है. आठ रत्नों से हमारा आशय है सरगुजा लोकसभा के आठ विधायक जो सभी कांग्रेस के हैं. सभी एक से एक दिग्गज हैं. कोई कम तो कोई ज्यादा पर सभी का अपना एक बड़ा वजूद है. लेकिन इनका वजूद लोकसभा चुनाव के परिणाम में फिलहाल नहीं देखा जा सका है.
ये है आठ रत्न
- कांग्रेस के सरगुजा में आठ रत्न की बात करें तो सबसे पहला नंबर आता है टीएस सिंहदेव का जो मंत्री हैं. इसके साथ ही वे प्रदेश सरकार में सबसे ताकतवर माने जाते हैं. वे राजपरिवार से हैं और लगभग 40 हजार वोट से चुनाव जीते थे.
- वहीं दूसरे बड़े रत्न हैं प्रेम साय सिंह जो प्रतापपुर विधानसभा सीट से भाजपा सरकार में गृहमंत्री रहे रामसेवक पैकरा को बड़े अंतर से चुनाव हरा कर विधानसभा पहुंचे हैं.
- तीसरे सबसे बड़े रत्न अमरजीत भगत जो मंत्री तो नहीं है लेकिन मुख्यमंत्री बघेल के करीबी हैं. वे लगातार चौथी बार सीतापुर सीट पर अपना कब्जा जमाए हुए हैं.
- इसके बाद चौथा नंबर आता है रामानुजगंज विधायक बृहस्पति सिंह का जिन्होंने 2013 के चुनाव में ताकतवर आदिवासी मंत्री और वर्तमान में राज्यसभा सांसद रामविचार को चुनाव हराया था. 2018 में भी बड़े अंतर से जीत दर्ज की है.
- वहीं पांचवा नाम भी अपने आप में मतदाताओं में बड़ी पैठ रखने वाला है. 2013 में लुंड्रा से विधायक और 2018 में सामरी से विधायक बनने वाले चिंतामणि महराज जो संत गहिरा गुरु के बेटे हैं. इसके साथ ही वे सरगुजा की सियासत में निर्णायक भूमिका निभाने वाले गोंड़ और कंवर समाज में एक तरफा पकड़ रखते हैं.
- इसके बाद लुंड्रा से प्रीतम राम और भटगावं से पारस नाथ राजवाड़े भी सामाजिक वोट प्रतिशत के धनी हैं.
- अंतिम और आठवां नाम मतलब प्रेमनगर से विधायक खेल साय सिंह जिन्हें सरगुजा विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष भी बनाया गया था. वो खुद लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में उतरे हैं और गोंड़ समाज से हैं.
क्या कांग्रेस के पाले में आएगी सीट
अब इतनी सारी खासियत और मत समीकरण इनके साथ कांग्रेस के पक्ष में जुड़ती है. लेकिन इतने के बाद भी अगर कांग्रेस सरगुजा लोकसभा सीट हार जाती है तो निश्चित ही इन आठों रत्न की काबिलियत या नीयत पर सवाल खड़े होंगे. क्योंकि इनका प्रभाव क्षेत्र में हैं इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता. इसी प्रभाव से कांग्रेस विधानसभा का चुनाव जीत कर आई है. लेकिन लोकसभा में अगर इसका प्रभाव नहीं दिखा इसके कई मतलब निकले जा सकते हैं.
बहरहाल इसी बीच भाजपा भी 2014 की जीत के बाद 2019 में भी जीत के लिए आश्वस्त है. भाजपा को लगता है कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव के मुद्दे अलग-अलग होते हैं. लिहाजा भाजपा लोकसभा चुनाव जीतने का दावा कर रही है.