अंबिकापुर: पीरियड्स लीव के मामले पर पिछले दिनों संसद में जबरदस्त बहस छिड़ गई. एक सांसद ने इसकी पैरवी की तो सरकार की मंत्री स्मृति ईरानी ने इसे नकार दिया. फिल्म एक्टर कंगना रनौत ने भी स्मृति ईरानी के पीरियड्स लीव ना देने वाले बयान का समर्थन किया है. जबकि दक्षिण कोरिया, जापान, स्पेन, इंडोनेशिया जैसे देश सहित भारत में भी कुछ प्राइवेट कम्पनी महिलाओं को पीरियड्स लीव देती हैं. आइये जानते हैं पीरियड्स लीव की जरूरतमंद पर इन महिलाओं की राय क्या है, जो बेहद कामकाजी हैं.
पीरियड्स लीव नहीं मानसिक सपोर्ट अहम: 2012 से ग्रामीण वनांचल क्षेत्रों में माहवारी प्रबंधन पर काम करने वाली प्रतिमा सिंह कहती हैं, "महिला शारिरिक और मानसिक रूप से सक्षम होती हैं. वो किसी से कम किसी भी क्षेत्र में नहीं होती हैं. 14-15 वर्ष की उम्र से पीरियड्स शुरू हो जाते हैं, वो इसके लिए इतनी आदतन हो जाती है कि उसे कहीं भी छूट्टी लेने की जरूरत नही पड़ती. मेरे विचार से छुट्टी देना सही नहीं होगा. देना ही है तो उन्हें मानसिक सपोर्ट दें, जहां वो काम करती हैं, लोग उन्हें प्यार और सहयोग दें."
"मेरी राय में पीरियड्स लीव नहीं मिलना चाहिये. ये भेद भाव पैदा करेगा. लीव के जगह महिलाओं को सुविधा देना चाहिये. जहां ज्यादा महिलाएं काम करती हैं, वहां पैड एटीएम लगने चाहिये." - वंदना दत्ता, समाज सेविका
"पीरियड्स लीव से महिलाएं खुद को कमजोर साबित करेंगी": वसुधा महिला मंच की सदस्य अनुभा डबराल का मानना है कि पीरियड्स लीव महिलाओं को नहीं मिलना चाहिये. इसके पीछे उनका तर्क है कि इस लीव से महिलाएं खुद को कमजोर साबित करेंगी. उन्होंने कहा, "हम तो जननी है, जननी कमजोर थोड़ी ही होती है. लीव के बिना आप उनको इससे जुड़ी सुविधाएं जैसे- पैड की व्यवस्था और उनके कार्य क्षेत्र में आराम की व्यवस्था देंगे, तो वो ज्यादा बेहतर होगा."
पीरियड्स लीव पर स्त्री रोग विशेषज्ञ की राय: इस विषय पर स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ अविनाशी कुजूर कहती हैं, "पीरियड्स के समय महिलाओं को हाइजीन का विशेष ध्यान रखना चाहिये. इसके लिये कार्य क्षेत्र में साफ सुथरे हाईजेनिक टॉयलेट होने चाहिये. कुछ प्रतिशत महिलाओं में पीरियड्स के दौरान असहनीय पीड़ा देखी जाती है. ऐसी महिलाओं को वैसे भी चिकित्सकीय सलाह के बाद उनका विभाग लीव देता है. इसके लिए अलग से लीव की जरूरत महसूस नहीं होती है."
पीरियड्स पर सकारात्मक परिवर्तन जरूरी: ईटीवी भारत से चर्चा के दौरान ज्यादातर महिलाओं का कहना है कि पीरियड्स एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. इस दौरान महिलाएं अक्सर शारीरिक और आत्मिक रूप से असुविधा महसूस करती हैं. इस समय में उन्हें अधिक आराम और सहयोग की आवश्यकता होती है. बहुत सी महिलाएं ऐसे क्षेत्रों में काम करती हैं, जहां उन्हें यह सहयोग नहीं मिलता है. अगर हम महिलाओं को पीरियड्स के दौरान अवकाश देने का समर्थन करें, तो यह उन्हें अपने कर्तव्यों को ठीक से निभाने में कमजोर करने जैसा होगा. ऐसे कदम समाज में जागरूकता जरूर फैला सकते हैं. इसे एक सामाजिक ताकत के रूप में स्वीकार करना चाहिए, न कि एक असुविधा के रूप में. सामाजिक समर्थन के साथ-साथ यह अहम होगा कि सरकारें ऐसे कानूनी कदम उठाएं, जो महिलाओं को पीरियड्स के दौरान अवकाश के बजाय संसाधन उपलब्ध करायें. इससे समाज में सकारात्मक परिवर्तन आ सकता है.