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सरगुजा के पहाड़ी कोरवा की सफलता की कहानी, एक फैसले से बदल गई जिंदगी

Success Story Of Pahari Korwa सरगुजा के लालमाटी ग्राम से निकले झोलर साय की कहानी आज कई लोगों की जिदंगी को नया आयाम दे रही है. कभी सिक्कों के मोहताज रहने वाले झोलर साय आज कई लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं. Jholar Sai work in wooden craft, Pahari Korwa Tribe of Chhattisgarh, Pahari Korwa special backward tribe

Success Story of Pahari Korwa of Surguja
झोलर साय का वुडन क्राफ्ट में काम
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Dec 9, 2023, 3:40 PM IST

Updated : Dec 9, 2023, 5:33 PM IST

सरगुजा के पहाड़ी कोरवा की सफलता की कहानी

सरगुजा: हैंडीक्राफ्ट की दुनिया तेजी से अपना पैर पसार रही है. आज जिस किसी घर में चले जाएं आपको हैंडीक्राफ्ट से बना कुछ न कुछ सामान जरुर मिलेगा. हैंडीक्राफ्ट के सामान जहां आपके घरों को सुंदर बनाते हैं, वहीं कई कारीगरों को रोजगार भी देते हैं. हैंडीक्राफ्ट की दुनिया से निकले एक ऐसे ही कारीगर हैं सरगुजा के झोलर साय. कभी दो वक्त की रोटी के लिए ये मारे मारे फिरते थे. गांव में काम नहीं होने पर दिहाड़ी मजदूरी तक करने को मजबूर हुए. झोलर साय की दुनिया एक दिन उनके एक फैसले से बदल गई.आज झोलर साय हैंडीक्राफ्ट और कारीगरी की दुनिया में अच्छा खासा नाम कमा रहे हैं.

कैसे बदली झोलर साय की जिंदगी: लालमाटी ग्राम पंचायत के गंजहाडांड के रहने वाले झोलर साय विशेष संरक्षित जनजाति कोरवा समुदाय से आते हैं. जंगल से लकड़ी लाकर उसे शहर में बेचकर अपना पेट पालते थे. कभी वन विभाग वाले परेशान करते थे तो कभी पैसे नहीं होने पर दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती थी. झोलर साय को किसी ने हैंडीक्राफ्ट की ट्रेनिंग लेने की सलाह दी, बस यहीं से झोलर साय की जिंदगी ने करवट ली और उनके जीवन की गाड़ी पटरी पर आ गई. झोलर की मेहनत का ही नतीजा है कि वो आज हैंडीक्राफ्ट के ट्रेनर बनकर लोगों को भी ट्रेंड भी कर रहे हैं. अपनी मेहतन से साय ने न सिर्फ अपना जीवन बदला बल्कि अपने साथ के कई लोगों का जीवन भी वो बदल रहे हैं.

मूर्तियां जो बोल पडे़ंगी: झोलर साय के हाथों से बनी काठ की मूर्तियां देखकर ऐसा लगता है जैसे अभी बोल पड़ेंगी. घर की चौखट से लेकर सोफे तक पर जिस तरह से झोलर साय नक्काशी करते हैं कि देखने वाला बस देखता रह जाता है. साय के हाथों से बने सामान की डिमांड आज सरगुजा से लेकर रायपुर तक के बाजारों में हैं. लोग बड़े शौक से काठ पर की हुई नक्काशी के सोफे और दीवान खरीदकर अपने घरों को बेहतरीन लुक दे रहे हैं. कभी ऐसे नक्काशी वाले सामान आम लोगों की पहुंच से काफी दूर हुआ करते थे. झोलर साय जैसे कलाकारों की कला का ही नमूना है कि आज बाजार में ऐसे सामानों की डिमांड और जरूरत दोनों पूरी हो रही है.

एक फैसले ने बदली जिंदगी: कभी पचास और सौ रुपए के मोहताज होने वाले झोलर साय आज हर दिन हजार रुपए तक कमा लेते हैं. वो अपनी कला से न सिर्फ अपना पेट भर रहे हैं बल्कि कई लोगों को ट्रेंड कर रोजगार दिलाने में भी मदद कर रहे हैं. कभी कोरवा जनजाति के लोग गांव से बाहर नहीं निकलते थे, आज वो गांव से बाहर भी निकल रहे हैं और अपना नाम भी रोशन कर रहे हैं. जरुरत इस बात की है ऐसे कलाकारों का हौसला बढ़ाया जाए और उनको झोलर साय की तरह ही सभी को मौका दिया जाए, ताकि वो भी अपना जीवन झोलर साय की तरह बेहतर बना सके.

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कैसे बदली झोलर साय की जिंदगी: लालमाटी ग्राम पंचायत के गंजहाडांड के रहने वाले झोलर साय विशेष संरक्षित जनजाति कोरवा समुदाय से आते हैं. जंगल से लकड़ी लाकर उसे शहर में बेचकर अपना पेट पालते थे. कभी वन विभाग वाले परेशान करते थे तो कभी पैसे नहीं होने पर दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती थी. झोलर साय को किसी ने हैंडीक्राफ्ट की ट्रेनिंग लेने की सलाह दी, बस यहीं से झोलर साय की जिंदगी ने करवट ली और उनके जीवन की गाड़ी पटरी पर आ गई. झोलर की मेहनत का ही नतीजा है कि वो आज हैंडीक्राफ्ट के ट्रेनर बनकर लोगों को भी ट्रेंड भी कर रहे हैं. अपनी मेहतन से साय ने न सिर्फ अपना जीवन बदला बल्कि अपने साथ के कई लोगों का जीवन भी वो बदल रहे हैं.

मूर्तियां जो बोल पडे़ंगी: झोलर साय के हाथों से बनी काठ की मूर्तियां देखकर ऐसा लगता है जैसे अभी बोल पड़ेंगी. घर की चौखट से लेकर सोफे तक पर जिस तरह से झोलर साय नक्काशी करते हैं कि देखने वाला बस देखता रह जाता है. साय के हाथों से बने सामान की डिमांड आज सरगुजा से लेकर रायपुर तक के बाजारों में हैं. लोग बड़े शौक से काठ पर की हुई नक्काशी के सोफे और दीवान खरीदकर अपने घरों को बेहतरीन लुक दे रहे हैं. कभी ऐसे नक्काशी वाले सामान आम लोगों की पहुंच से काफी दूर हुआ करते थे. झोलर साय जैसे कलाकारों की कला का ही नमूना है कि आज बाजार में ऐसे सामानों की डिमांड और जरूरत दोनों पूरी हो रही है.

एक फैसले ने बदली जिंदगी: कभी पचास और सौ रुपए के मोहताज होने वाले झोलर साय आज हर दिन हजार रुपए तक कमा लेते हैं. वो अपनी कला से न सिर्फ अपना पेट भर रहे हैं बल्कि कई लोगों को ट्रेंड कर रोजगार दिलाने में भी मदद कर रहे हैं. कभी कोरवा जनजाति के लोग गांव से बाहर नहीं निकलते थे, आज वो गांव से बाहर भी निकल रहे हैं और अपना नाम भी रोशन कर रहे हैं. जरुरत इस बात की है ऐसे कलाकारों का हौसला बढ़ाया जाए और उनको झोलर साय की तरह ही सभी को मौका दिया जाए, ताकि वो भी अपना जीवन झोलर साय की तरह बेहतर बना सके.

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Last Updated : Dec 9, 2023, 5:33 PM IST
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