सरगुजा: खेतों में लगी फसलों की कटाई हो जाने के बाद कई राज्यों के किसान पराली को खेत में ही जला डालते हैं. इससे खेत की उर्वरा शक्ति तो कम होती ही है. साथ ही साथ प्रदूषण भी फैलता है. छत्तीसगढ़ में पराली को जलाने के बजाए किसान सुरक्षित तरीके से रखते हैं.
पराली है आमदनी का जरिया: यहां के किसान फसल कटाई के बाद पराली को अपने खलिहान लाते हैं. उसे एकत्रित कर एक जगह पर रखते हैं. उसका पशु आहार के रूप में इस्तेमाल करते हैं. पराली का खाद के तौर पर भी उपयोग करते हैं. जब ज्यादा पराली होता है, तो उसे दूसरे किसान को बेच देते हैं. इस तरह पराली से किसानों को पशु का आहार भी मिल जाता और आमदनी का जरिया भी ये उनके लिए बन जाता है.
मूर्ति के निर्माण में इस्तेमाल: पराली से पशु का आहार मिलता है. पराली से खाद तैयार किया जाता है. इन सबके अलावा ग्रामीण इलाकों में जो मूर्तियों का निर्माण होता है. उसमें भी पराली का इस्तेमाल किया जाता है. मूर्तिकार मूर्ति में मिट्टी लगाने से पहले पराली से ही सांचा तैयार करते हैं. पराली से तैयार सांचे पर ही मिट्टी लगाया जाता है.
"हम लोग पैरा यानी पराली नहीं जलाते हैं. इसका खाद बना देते हैं. जानवरों को खिलाने के काम आता है.और इस पैरा से मूर्ति भी बनाई जाती है." अनुराग दीप एक्का, किसान
पराली से कमाई कितनी: जानवरों के खिलाने के बाद जो पराली किसान के पास बच जाता है. उसका वो खाद तैयार करते हैं. उसे भी किसान बेच देते हैं. इसके अलावा एक ट्रॉली पराली की कीमत 2500 रुपये तक होती है.
"हम लोग पराली नहीं जलाते हैं. जानवरों को खिलाते हैं. बच जाता है तो उसको गोबर के साथ डाल देते हैं. वो सड़ जाता है तो खाद बन जाता है,आमदनी भी होती है. खाद का उपयोग कर लेते हैं. 2200 से 2500 रुपये में एक ट्राली पराली बिकती है." केशव राम, किसान
सरगुजा संभाग में स्टोर करते हैं पराली: एग्रीकल्चर विभाग के डिप्टी डायरेक्टर पितांबर सिंह का कहना है कि, सरगुजा संभाग के किसान पराली नहीं जलाते हैं. वो इसको स्टोर करके रखते हैं. ज्यादातर किसान फसल काटने के लिये हार्वेस्टर का उपयोग नहीं करते हैं. जिससे पराली भी उठाना पड़ता है. कुछ किसान हार्वेस्टर से फसल काटते हैं. लेकिन वो भी पराली को उठाकर स्टोर करते हैं. राज्य के दूसरे संभागों में भी ऐसा ही होता है.किसान पराली का इस्तेमाल करते हैं.