सरगुजा : diversion Case of Mrigendra Singhdev land कोर्ट ने यह माना है कि आवेदक के प्रकरण का जानबूझकर निराकरण नहीं किया जा रहा था. जब कोर्ट के फैसले का समय आया तो कार्रवाई से बचने के लिए एसडीएम ने कोर्ट को जवाब प्रस्तुत करने के बजाए डायवर्सन आदेश में साइन कर उसकी प्रति लगा दी. न्यायालयीन सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार देवीगंज रोड निवासी अधिवक्ता मृगेंद्र सिंहदेव ने 28 फरवरी को आवेदन पेश किया था. Surguja court imposed fine on SDM in diversion यह आवेदन सरगवां में स्थित भूखंड 71 के रकबा 16315.43 वर्गमीटर भूमि में कॉलोनी निर्माण कराने डायवर्सन के लिए एसडीएम के समक्ष दिया गया था. मृगेंद्र सिंहदेव ने कालोनी निर्माण के लिए ग्राम सभा से अनापत्ति प्रमाण पत्र, कॉलोनाइजर लाइसेंस, सहायक संचालक नगर तथा ग्राम निवेश की स्वीकृति की प्रति, नक्शा, खसरा, बी1 सहित अन्य दस्तावेज पेश किए थे.नियमतः नगर तथा ग्राम निवेश के अभिमत के साथ व्यपवर्तन के लिए आवेदन मिलने के बाद एसडीएम को 15 दिनों के भीतर व्यपवर्तन आदेश देना है. अथवा उसे निरस्त करना है. लेकिन एसडीएम प्रदीप साहू ने ना ही डायवर्सन किया और ना ही आवेदन को निरस्त किया. diversion case surguja
बंटवारे में पीड़ित को मिली थी जमीन: सूत्रों के अनुसार आवेदक मृगेंद्र सिंह को यह जमीन उनकी मां से बंटवारे में मिली थी. मां से बंटवारे में मिली जमीन का हिस्सा आवेदक के भाई के पास भी आया और आवेदक के भाई ने अपने जमीन का विक्रय भी कर दिया था और इसका डायवर्सन भी एसडीएम ने 28 फरवरी 2022 को कर दिया था. 18 मई को एसडीएम द्वारा यह आदेश दिया गया कि, भू राजस्व संहिता 1959 की धारा के तहत यह आवेदन तब तक स्वीकार नहीं हो सकता. जब तक आवेदक उप नियम 3 के तहत वांछित आंतरिक विकास में व्यय होने वाली अनुमानित राशि का पांचवां हिस्सा बैंक प्रतिभूति में जमा नहीं कर देता.surguja latest news
आंतरिक विकास व्यय की राशि भी की गई थी जमा: एसडीएम के निर्देश पर आंतरिक विकास व्यय की आंकलित राशि का पांचवा हिस्सा आवेदक से जमा कराया गया. इसके साथ ही यह शपथ पत्र लिया गया कि आंकलन राशि वास्तविक लागत से कम पाई जाती है तो अंतर की राशि जमा की जाएगी. शपथ पत्र देने के बाद भी एसडीएम ने डायवर्सन नहीं किया.
सीएम तक की गई शिकायत: एसडीएम प्रदीप साहू द्वारा डायवर्सन किए जाने के कारण आवेदक के कॉलोनाइजर लाइसेंस की मियाद समाप्त हो रही थी. इसके साथ ही निर्माण की लागत वृद्धि के साथ ही आर्थिक नुकसान भी हो रहा था. ऐसे में आवेदक ने कलेक्टर, प्रमुख सचिव और सीएम को पत्र लिखकर न्याय की मांग की. लेकिन वहां से भी कोई राहत नहीं मिली. मृगेंद्र सिंहदेव ने 8 जुलाई को स्थायी लोक अदालत जनोपयोगी सेवा के अध्यक्ष पीठासीन अधिकारी श्रीमती उर्मिला गुप्ता के कोर्ट में गुहार लगाई थी. कोर्ट की ओर से जब एसडीएम को नोटिस जारी किया गया तो उन्होंने कोर्ट को जवाब दिया कि इस मामले में 1965 के विक्रय पत्र को लेकर शासन से मार्गदर्शन मांगा गया है. वहीं कोर्ट ने एसडीएम को 8 पेशी में जवाब प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान किया लेकिन एसडीएम की ओर से कोई जवाब नहीं आया
जवाब के जगह आनन फानन में कर दिया डायवर्सन: 12 दिसम्बर को कोर्ट ने एसडीएम के अधिवक्ता को बताया कि आवेदक पक्ष ने लिखित में जवाब पेश किया है. ऐसे में शासन की ओर से वकील ने भी लिखित जवाब पेश करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा. कोर्ट ने एसडीएम के वकील को एक सप्ताह का समय देने से इंकार करते हुए 14 दिसम्बर को फैसला सुनाने का निर्णय दिया. जिसके बाद निर्णय के एक दिन पूर्व कार्रवाई से बचने के लिए एसडीएम ने 13 दिसंबर को मृगेंद्र सिंहदेव के डायवर्सन आदेश को पास कर दिया और कोर्ट में जवाब के बदले डायवर्सन की प्रति लगा दी.
कोर्ट ने जताई सख्त नाराजगी: कोर्ट का निर्णय आने से एक दिन पहले डायवर्सन किए जाने को लेकर स्थायी लोक अदालत की अध्यक्ष उर्मिला गुप्ता ने नाराजगी जाहिर की है. कोर्ट ने माना है कि 28 फरवरी को आवेदक मृगेंद्र सिंहदेव और उनके भाई ने डायवर्सन के लिए आवेदन दिया था. आवेदक के भाई के हिस्से की भूमि का डायवर्सन आदेश जारी हो गया लेकिन जानबूझकर आवेदक के डायवर्सन प्रकरण का निराकरण नहीं किया गया और एसडीएम ने अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं किया. इस तरह आवेदक को मानसिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित किया गया है. ऐसे में कोर्ट ने आवेदक को 6 लाख रुपए की क्षतिपूर्ति देने का आदेश पारित किया है. 30 दिन में यदि जुर्माने की राशि अदा नहीं की जाती है तो प्रकरण पेश करने की तिथि 8 जुलाई से अदायगी तिथि तक 12 प्रतिशत ब्याज भी देना होगा.