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हसदेव के जंगलों में डेढ़ हजार से अधिक पेड़ों की हुई कटाई, कैसे बचेगा छत्तीसगढ़ का फॉरेस्ट ?

Cutting of trees continues in Hasdeo:हसदेव के जंगलों में डेढ़ हजार से अधिक पेड़ों की कटाई की गई है. यहां लगातार विरोध के बावजूद पेड़ों की कटाई की जा रही है. यही कारण है कि हसदेव जंगल का अधिकतर इलाका मैदान में तब्दील हो चुका है.

Cutting of trees continues in Hasdeo coal mines
हसदेव के जंगलों में डेढ़ हजार से अधिक पेड़ों की हुई कटाई
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Dec 23, 2023, 10:36 PM IST

हसदेव के जंगलों में लगातार हो रही पेड़ों की कटाई

अंबिकापुर: कोरबा से सरगुजा, झारखंड और ओडिशा की सीमा तक फैले हसदेव अरण्य को मध्य भारत का फेफड़ा कहा जाता है. क्योंकि प्रकृति और बायोडायवर्सिटी ही मानव जीवन के लिए सबसे जरूरी है. ये विशाल वन क्षेत्र अपनी बायोडायवर्सिटी की वजह से मध्य भारत को जीवन प्रदान करने में सहायक होता है. इस क्षेत्र में सरकार ने कोल ब्लॉक का आवंटन कर दिया है. अब खदान खोलने के लिए इस क्षेत्र में पेड़ काटे जा रहे हैं. ग्रामीण के लगातार विरोध के बावजूद पेड़ काटे जा रहे हैं.

इस इलाके में डेढ़ हजार से अधिक पेड़ों की हुई कटाई: दरअसल, जिले के उदयपुर क्षेत्र में परसा ईस्ट केते बासेन PEKB कोल खदान के लिए घाटबर्रा के पेंड्रा मार जंगल में तीन दिनों से पेड़ों की कटाई की जा रही है. काफी जद्दोजहद के बाद आखिरकार पेड़ की कटाई खत्म की गई. घाटबर्रा के पेंड्रा मार जंगल में 91 हेक्टेयर के 15307 पेड़ों की हुई कटाई के बाद जंगल अब सपाट मैदान नजर आ रहा है. यहां सैकड़ों की तादाद में पुलिस बल तैनात कर पुलिस और प्रशासन की ओर से पेड़ों की कटाई कराई जा रही है. चप्पे-चप्पे में पुलिस बल तैनात कर किसी भी ग्रामीण और बाहर के लोगों को जंगल की ओर नहीं जाने दिया गया.

2 मार्च से संघर्ष कर रहे आंदोलनकारी: लगातार कोल खदान का विरोध करने वाले आंदोलनकारी को पुलिस ने दो दिन पहले उनके घरों से उठाकर अपने साथ रख लिया था. गुरुवार को देर शाम सभी को छोड़ा गया. हालांकि उन लोगों को धरना प्रदर्शन स्थल पर और पेड़ों की कटाई वाली जगह पर जाने की सख्त मनाही थी. इन सब के बावजूद ग्राम हरिहरपुर में 2 मार्च 2022 से जल जंगल जमीन को बचाने संघर्ष कर रहे हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के लोग लगातार विरोध कर रहे हैं. साथ ही आदिवासी वर्ग के लोग इसका विरोध कर गांव में ही रैली निकाल रहे हैं. इस वन खंड के पेड़ों को काटा गया, उसके वन अधिकार पत्र और मुआवजा के बारे में एसडीएम भागीरथी खांडे और तहसीलदार चंद्रशिला जायसवाल के पास ग्रामीणों ने अपनी बात भी रखी है.

हारने के बाद राजनीतिक दल करते हैं विरोध: पेड़ों की कटाई के बाद हसदेव अरण्य का एक हिस्से में पूरा क्षेत्र वीरान नजर आ रहा है. चारों तरफ पेड़ गिरे हुए हैं. सभी काटे गए पेड़ों को डिपो तक पहुंचाने का काम वन अमला कर रहा है. मामले में बड़ी बात यह है कि प्रदेश और देश में सरकार चाहे जिसकी भी हो, काम कोल खदान के पक्ष में ही करती है. भाजपा और कांग्रेस में से जो विपक्ष में होता है. वो पेड़ काटने को गलत बताता है. लेकिन सत्ता में आते ही वही राजनैतिक दल या तो पेड़ काटने का समर्थक हो जाता है. फिर मूक समर्थन के साथ शांत हो जाता है.

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इस इलाके में डेढ़ हजार से अधिक पेड़ों की हुई कटाई: दरअसल, जिले के उदयपुर क्षेत्र में परसा ईस्ट केते बासेन PEKB कोल खदान के लिए घाटबर्रा के पेंड्रा मार जंगल में तीन दिनों से पेड़ों की कटाई की जा रही है. काफी जद्दोजहद के बाद आखिरकार पेड़ की कटाई खत्म की गई. घाटबर्रा के पेंड्रा मार जंगल में 91 हेक्टेयर के 15307 पेड़ों की हुई कटाई के बाद जंगल अब सपाट मैदान नजर आ रहा है. यहां सैकड़ों की तादाद में पुलिस बल तैनात कर पुलिस और प्रशासन की ओर से पेड़ों की कटाई कराई जा रही है. चप्पे-चप्पे में पुलिस बल तैनात कर किसी भी ग्रामीण और बाहर के लोगों को जंगल की ओर नहीं जाने दिया गया.

2 मार्च से संघर्ष कर रहे आंदोलनकारी: लगातार कोल खदान का विरोध करने वाले आंदोलनकारी को पुलिस ने दो दिन पहले उनके घरों से उठाकर अपने साथ रख लिया था. गुरुवार को देर शाम सभी को छोड़ा गया. हालांकि उन लोगों को धरना प्रदर्शन स्थल पर और पेड़ों की कटाई वाली जगह पर जाने की सख्त मनाही थी. इन सब के बावजूद ग्राम हरिहरपुर में 2 मार्च 2022 से जल जंगल जमीन को बचाने संघर्ष कर रहे हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के लोग लगातार विरोध कर रहे हैं. साथ ही आदिवासी वर्ग के लोग इसका विरोध कर गांव में ही रैली निकाल रहे हैं. इस वन खंड के पेड़ों को काटा गया, उसके वन अधिकार पत्र और मुआवजा के बारे में एसडीएम भागीरथी खांडे और तहसीलदार चंद्रशिला जायसवाल के पास ग्रामीणों ने अपनी बात भी रखी है.

हारने के बाद राजनीतिक दल करते हैं विरोध: पेड़ों की कटाई के बाद हसदेव अरण्य का एक हिस्से में पूरा क्षेत्र वीरान नजर आ रहा है. चारों तरफ पेड़ गिरे हुए हैं. सभी काटे गए पेड़ों को डिपो तक पहुंचाने का काम वन अमला कर रहा है. मामले में बड़ी बात यह है कि प्रदेश और देश में सरकार चाहे जिसकी भी हो, काम कोल खदान के पक्ष में ही करती है. भाजपा और कांग्रेस में से जो विपक्ष में होता है. वो पेड़ काटने को गलत बताता है. लेकिन सत्ता में आते ही वही राजनैतिक दल या तो पेड़ काटने का समर्थक हो जाता है. फिर मूक समर्थन के साथ शांत हो जाता है.

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