अंबिकापुर : सरगुजा आदिवासी बाहुल्य संभाग है इसलिए यहां धर्मांतरण भी अधिक देखा गया. बहोत से आदिवासी सामज के लोग ईसाई धर्म अपना चुके हैं. लेकिन शासकीय दस्तावेजों में वो अपना धर्म हिन्दू लिखते हैं. यह पूरा मामला सीधे आरक्षण से जुड़ता है. क्योंकि अनुसूचित जाति को मिलने वाले आरक्षण की कैटेगरी इसी के आधार पर तय की जाती है. (Controversy over Crypto Christian in Sarguja)
ईसाई और मुसलमान धर्म में जाति प्रथा नहीं : इस मसले पर जनजातीय सुरक्षा मंच (Tribal Security Forum in sarguja) के प्रदेश सह प्रचारक इंदर भगत कहते हैं " जनजातीय सुरक्षा मंच की मांग डिलिस्टिंग की है. साल भर समाज के लोगों ने पूरे देश मे आंदोलन किया है. जो भी व्यक्ति अनुसूचित जन जाति है और अपने रीति रिवाज, पूजा पद्धति, परंपरा, संस्कृति को छोड़कर कन्वर्जन कर के ईसाई या मुसलमान बने हैं उनको अनुसूचित जनजाति का स्टेटस ना मिले. क्योंकि ईसाई और मुसलमान धर्म में जाति की व्यवस्था नही है. इन दोनों धर्म में एकेश्वरवाद चलता है"
आर्टिकल 341 जैसे नियम 342 में करने की मांग : "जनजातीय सुरक्षा मंच की मांग है कि जो भी आदिवासी अपने धर्म, पूजा पद्धति को छोड़कर ईसाई या मुसलमान बना है. उसे आरक्षण की सूची से बाहर किया जाए. जब अनुच्छेद 342 जो अनुसूचित जनजातियों के लिए है. इसमें संसोधन नही होता है. जैसे अनुच्छेद 341 में अनुसूचित जातियों के लिये है. व्यवस्था किया गया है. तो कोई भी हमारा दलित भाई हिन्दू, सिख या बौद्ध इन तीनों धर्म में रहता है. तो उसको एससी का स्टेटस मिलता है. लेकिन जैसे ही वो मुस्लिम या ईसाई बनता है. उसका एससी का स्टेटस स्वतः खत्म हो जाता है. वो स्वतः आरक्षण से बाहर हो जाता है. वही चीज हम अनुच्छेद 342 में करने की मांग कर रहे हैं"
ईसाई धर्म और दस्तावेज में हिन्दू : इंदर भगत के मुताबिक "बिल्कुल मैं बहुत सारे गांव में जाकर देखा हूं. एक व्यक्ति आदिवासी है और वो ईसाई धर्म अपना चुका है. लेकिन उसका कास्ट सर्टिफिकेट देखिए उसमें हिन्दू लिखते हैं. वो जिस धर्म को मानते हैं. उसको छुपाते हैं, झूठ बोलते हैं और आरक्षण का लाभ लेते हैं. पूरे सरगुज़ा को देखिये गांव गांव में बड़े बड़े चर्च खड़े हो गये हैं. आप देखिये की धर्मांतरण के लिये कितने आवेदन कलेक्टर के पास आये हैं. धर्मांतरण की अपनी एक प्रक्रिया होती है, जब कलेक्टर अनुमति देते हैं तब धर्मांतरण होता है. लेकिन यहां पर तो इस प्रकार की किसी भी प्रक्रिया का पालन नही किया जाता है. समाज को राष्ट्र को संविधान को धोखा देखकर झूठ बोलकर के आरक्षण का पूरा लाभ लिया जा रहा है"
धर्मांतरण देश के लिये खतरा : "14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में धर्मांतरण को लेकर एक याचिका थी. जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धर्मांतरण इस देश के लिये बहुत बड़ा खतरा है. यह बहुत गंभीर मसला है. दूसरा मामला अनुसूचित जनजाति वर्ग के एक एनजीओ ने याचिका लगाई है कि अनुसूचित जाति का जो व्यक्ति है एससी समाज उसको संविधान जब से लागू हुआ है. तब से अनुच्छेद 341 में ये कहा गया है कि ''एससी वर्ग हिन्दू है वो अगर धर्मांतरित होकर के बौद्ध या सिख बनता है तो उसे आरक्षण का लाभ मिलता है. याचिका में ये है कि जो ईसाई या मुस्लिम बने हैं उनको भी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिये"
केंद्र सरकार ने किया स्पष्ट : "इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार का गंतव्य मांगा तो केंद्र सरकार ने हलफनामा दिया है. केंद्र सरकार ने स्प्ष्ट कहा है कि यह सही नही होगा कि उनको आरक्षण दिया जाए. संविधान में अनुच्छेद 341 में यह व्यवस्था है कि ईसाई या मुसलमान बनने पर लाभ नही दिया जा सकता क्योंकि ईसाई या मुसलमान धर्म में जातिगत व्यवस्था नही है. हमारे अनुसूचित जाति वर्ग के भाइयों को जो आरक्षण मिला है. वो जातिगत कुछ कमियां थी. उस समय इसलिए ये आरक्षण मिला है"
यही हैं क्रिप्टो क्रिश्चियन : पिछली जनगणना में देश मे साढ़े दस करोड़ आदिवासी आबादी आंकी गई है.अभी की जनगणना कोरोना के कारण नही हो सकी है. जब होगी तो हम पाएंगे कि हमारी संख्या 11 करोड़ के ऊपर जायेंगे. जनजाति सुरक्षा मंच का जो आंकलन हैं. वो है कि 18 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो ईसाई या मुसलमान बने हैं. उसमें से लेकिन अपने डॉक्यूमेंट्स में उन्होंने अपने आप को ईसाई नही दिखाया है. इसी को हम लोग पढ़ते भी हैं "क्रिप्टो क्रिश्चियन" मतलब ईसाई धर्म को मानते हैं चर्च जाते हैं. लेकिन इसके दस्तावेज में ये कहीं इसका जिक्र नही करते हैं. ये वहां में महादेव पार्वती का ही जिक्र करते हैं. वहां पर ये हिन्दू का ही उल्लेख करते हैं.
डिलिस्टिंग सभी के लिये : वहीं ईसाई महासभा के अपने ही अलग तर्क हैं. ईसाई महासभा के जिलाध्यक्ष मुन्ना टोप्पो कहते हैं "ये लोग आरक्षण की बात नही किये हैं. जनजातीय सुरक्षा मंच का ये मांग है कि जो आदिवासी धर्मांतरित ईसाई हैं उनको अनुसूचित जनजाति के दर्जा से बाहर निकाला जाये, ये उनकी मांग है, रिजर्वेशन तो बहुत छोटी सी बात है. आर्टिकल 342 ये अनुसूचित जनजाति का दर्जा है. जो भाई मांग कर रहे हैं. वो भी इसी आर्टिकल के तहत आते हैं. हम धर्मांतरित हैं. हम भी इसी के तहत आते हैं. इसी आर्टिकल के (1) में जो आदेश प्राप्त हुआ है 1950 में जो दर्जा प्राप्त हुआ है उसमें सूची में सब आते हैं.डिलिस्टिंग किसी एक धर्म के लिये नही हैं.
ये भी पढ़ें- सरगुजा में गूंजा आदिवासी आरक्षण का मुद्दा
आरक्षण धर्म नहीं रहन सहन के आधार पर मिला : ये जो मांग कर रहे हैं उसमें वो भी आते हैं अनुसूचित जनजाति चाहे हिन्दू हो चाहे मुस्लिम हो या ईसाई हो सभी डिलिस्टिंग मे आयेंगे. रही बात धर्मांतरित ईसाइयों की बात कि तो आर्टिकल 25 में स्पष्ट दिया है कि अनुसूचित जनजाति आदिवासी आस्था के अनुरूप कोई भी धर्म मान सकता है. वास्तव में हमें अनुसूचित जनजाति का दर्जा धर्म के आधार पर नही मिला है. यह हमें रहन सहन, बोली भाषण, रूढ़ी प्रथा के आधार पर मिला है. आर्टिकल 25 में स्पष्ट किया गया है कि किसी भी धर्म को माने लेकिन रूढ़ी प्रथा, संस्कृति को संरक्षित करने के लिये किया गया है. जो हमारे भाई इसको नही समझ रहे हैं. संविधान से बाहर न्यायपालिका भी नही है. लेकिन डिलिस्टिंग की मांग असंवैधानिक है. लेकिन हमारे भाई हैं. वो लोग उनको आज समझ में नही आ रहा है. लेकिन जब समझ आएगा तो हम साथ में रहेंगे" Sarguja latest news