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Chaitra navratri 2023: सरगुजा की आराध्य देवी मां महामाया की क्या है मान्यता, जानिए

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Published : Mar 27, 2023, 11:09 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

शक्ति की उपासना का महापर्व चैत्र नवरात्रि 2023 चल रहा है. नौ दिनों तक देवी के 9 रूपों की पूजा की जा रही है. पुराणों में वर्णित देवी के नौ रूपों के साथ ही देश भर में देवी शक्तिपीठ और अन्य प्राचीन देवी मंदिरों हैं. इन सभी स्थानों की अपनी अपनी मान्यता है. सरगुजा में भी देवी की उपासना मां महामाया के रूप में की जाती है. यहां के लोगों की अटूट आस्था का केंद्र है महामाया मंदिर. नवरात्र शुरू होते ही यहां श्रद्धालुओं की भीड़ जुट रही है. Maa Mahamaya of ambikapur

Chaitra navratri 2023
आराध्य देवी मां महामाया
सरगुजा की आराध्य देवी मां महामाया

सरगुजा: अम्बिकापुर की महामाया माता और समलाया माता से जुड़ी हुई मान्यताएं हैं. जानकारों के अनुसार, यहां से माता की मूर्ति की कोशिश मराठों ने की, लेकिन मराठे मूर्ति ही उठा नहीं पाए. माता की मूर्ति का सिर वे अपने साथ ले गए. बिलासपुर के रतनपुर में माता महामाया का सिर मराठों ने रखा था, तब से ही रतनपुर स्थित मां महामाया की महिमा विख्यात है. शारदीय नवरात्रि में हर साल माता छिन्नमस्तिका महामाया के सिर राजपरिवार के कुम्हार बनाते हैं. महामाया मंदिर से ऐसे ही कई रहस्य हैं.

घनघोर जंगल के बीच मंदिर में बैठता था बाघ: सरगुजा राजपरिवार और इतिहासकार गोविंद शर्मा बताते हैं "महामाया मंदिर का निर्माण सन् 1910 में कराया गया था. इससे पहले मां महामाया एक चबूतरे पर स्थापित थी. जब भी पूजा करने के लिए राज परिवार के लोग माता के पास जाते थे, तो वहां हमेशा बाघ बैठा रहता था. सैनिक जब बाघ को हटाते थे, तब जाकर मां के दर्शन हो पाते थे."

साथ में विराजी विंध्यवासिनी: इतिहासकार गोविंद शर्मा बताते हैं कि "महामाया मंदिर में दो मूर्तियां हैं. देवी को जोड़े में रखना था, इसलिए सरगुजा के तत्कालीन महाराज रामानुज शरण सिंहदेव की मां और महाराजा रघुनाथ शरण सिंहदेव की पत्नी भगवती देवी ने अपने मायके मिर्जापुर से उनकी कुलदेवी विंध्यवासिनी की मूर्ति की स्थापना यहां कराई. उसी के बाद से मां महामाया के साथ ही माता विंध्यवासिनी की भी पूजा की जाती है. अंबिकापुर में स्थित मां महामाया के मंदिर को लेकर कई मान्यताएं प्रसिद्ध हैं. माना जाता है कि रतनपुर की मां महामाया भी इसी मूर्ति का अंश है. संबलपुर की मां समलाया की मूर्ति और डोंगरगढ़ के पहाड़ों में स्थित बमलेश्वरी मां की मूर्ति का भी सरगुजा से संबंध बताया जाता है."

यह भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2023 : चैत्र नवरात्रि का छठा दिन, मां कात्यायनी की करें आराधना


सरगुजा के लोगों का है माता पर अटूट विश्वास: श्रद्धा, आस्था और विश्वास के बीच मान्यताओं का अहम योगदान रहा है. ऐसी ही कुछ मान्यता है कि अंबिकापुर की मां महामाया के दरबार में अर्जी देकर किसी भी काम की शुरुआत करने से सारे कार्य सफल होते हैं. इसलिए यहां रहने वाला हर व्यक्ति अपने शुभ काम की पहली अर्जी माता महामाया के सामने ही लगाता है. मां महामाया किसी को निराश नहीं करती, ऐसा लोगों का अटूट विश्वास है. हर मंगलवार को भी मां महामाया मंदिर में भारी भीड़ होती है.

जलती है अखण्ड ज्योत: नवरात्र में हर वर्ष यहां नौ दिनों तक श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. मंदिर में तेल और घी की हजारों अखण्ड ज्योत जलाई जाती है. यह ज्योत पूरे नौ दिनों तक जलती रहती है. पूरे दिन लोग माता के दर्शन कर अपनी मनोकामना मांगते हैं. नौ दिवसीय उपासना के इस महापर्व के बाद नवमी तिथि तक मंदिर खुलता है. 10वीं तिथि को पूरे दिन मंदिर को बंद रखा जाता है.

सरगुजा की आराध्य देवी मां महामाया

सरगुजा: अम्बिकापुर की महामाया माता और समलाया माता से जुड़ी हुई मान्यताएं हैं. जानकारों के अनुसार, यहां से माता की मूर्ति की कोशिश मराठों ने की, लेकिन मराठे मूर्ति ही उठा नहीं पाए. माता की मूर्ति का सिर वे अपने साथ ले गए. बिलासपुर के रतनपुर में माता महामाया का सिर मराठों ने रखा था, तब से ही रतनपुर स्थित मां महामाया की महिमा विख्यात है. शारदीय नवरात्रि में हर साल माता छिन्नमस्तिका महामाया के सिर राजपरिवार के कुम्हार बनाते हैं. महामाया मंदिर से ऐसे ही कई रहस्य हैं.

घनघोर जंगल के बीच मंदिर में बैठता था बाघ: सरगुजा राजपरिवार और इतिहासकार गोविंद शर्मा बताते हैं "महामाया मंदिर का निर्माण सन् 1910 में कराया गया था. इससे पहले मां महामाया एक चबूतरे पर स्थापित थी. जब भी पूजा करने के लिए राज परिवार के लोग माता के पास जाते थे, तो वहां हमेशा बाघ बैठा रहता था. सैनिक जब बाघ को हटाते थे, तब जाकर मां के दर्शन हो पाते थे."

साथ में विराजी विंध्यवासिनी: इतिहासकार गोविंद शर्मा बताते हैं कि "महामाया मंदिर में दो मूर्तियां हैं. देवी को जोड़े में रखना था, इसलिए सरगुजा के तत्कालीन महाराज रामानुज शरण सिंहदेव की मां और महाराजा रघुनाथ शरण सिंहदेव की पत्नी भगवती देवी ने अपने मायके मिर्जापुर से उनकी कुलदेवी विंध्यवासिनी की मूर्ति की स्थापना यहां कराई. उसी के बाद से मां महामाया के साथ ही माता विंध्यवासिनी की भी पूजा की जाती है. अंबिकापुर में स्थित मां महामाया के मंदिर को लेकर कई मान्यताएं प्रसिद्ध हैं. माना जाता है कि रतनपुर की मां महामाया भी इसी मूर्ति का अंश है. संबलपुर की मां समलाया की मूर्ति और डोंगरगढ़ के पहाड़ों में स्थित बमलेश्वरी मां की मूर्ति का भी सरगुजा से संबंध बताया जाता है."

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सरगुजा के लोगों का है माता पर अटूट विश्वास: श्रद्धा, आस्था और विश्वास के बीच मान्यताओं का अहम योगदान रहा है. ऐसी ही कुछ मान्यता है कि अंबिकापुर की मां महामाया के दरबार में अर्जी देकर किसी भी काम की शुरुआत करने से सारे कार्य सफल होते हैं. इसलिए यहां रहने वाला हर व्यक्ति अपने शुभ काम की पहली अर्जी माता महामाया के सामने ही लगाता है. मां महामाया किसी को निराश नहीं करती, ऐसा लोगों का अटूट विश्वास है. हर मंगलवार को भी मां महामाया मंदिर में भारी भीड़ होती है.

जलती है अखण्ड ज्योत: नवरात्र में हर वर्ष यहां नौ दिनों तक श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. मंदिर में तेल और घी की हजारों अखण्ड ज्योत जलाई जाती है. यह ज्योत पूरे नौ दिनों तक जलती रहती है. पूरे दिन लोग माता के दर्शन कर अपनी मनोकामना मांगते हैं. नौ दिवसीय उपासना के इस महापर्व के बाद नवमी तिथि तक मंदिर खुलता है. 10वीं तिथि को पूरे दिन मंदिर को बंद रखा जाता है.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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