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SPECIAL: छत्तीसगढ़ के 'शिमला' में अब हो रही है सेब की खेती

सरगुजा जिले के मैनपाट को यूं ही छत्तीसगढ़ का शिमला नहीं कहा जाता है. नदी, पहाड़, झरने, ठंडा मौसम और खुबसूरत वादियों के साथ अब यहां सेब की खेती भी होने लगी है. जिसे देख पर्यटक और भी रोमांचित हो रहे हैं. मैनपाट को छत्तीसगढ़ की सरकार शिमला के रूप में विकसित करने की कोशिश कर रही है, जिसमें सफलता भी मिल रही है, क्योंकि यहां हिमाचल जैसी जलवायु और मौसम उपलब्ध है. देखिये विशेष रिपोर्ट...

Apple farming in Mainpat
मैनपाट में सेब की खेती
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Published : Jun 25, 2020, 8:36 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा: छत्तीसगढ़ का सबसे खूबसूरत पर्यटन स्थल मैनपाट को छत्तीसगढ़ का 'शिमला' भी कहा जाता है. पहले नदी, पहाड़, झरने, ठंडा मौसम और खुबसूरत वादियां पर्यटकों को अनायास ही अपनी ओर खींचती रहती थी, अब यहां की खुबसूरती में चार चांद लगाने शिमला का सेब भी आ गया है. छत्तीसगढ़ सरकार भी मैनपाट को हिमाचल प्रदेश के शिमला के रूप विकसित करने की कोशिश कर रही है. इसके लिए यहां की जलवायु के मुताबिक शिमला में होने वाले तीन किस्म के सेब को उगाने की कोशिश की जा रही है. जिसमें प्रशासन लगभग सफल भी हो रहा है.

'शिमला' में अब हो रही है सेब की खेती

मैनपाट में कृषि विज्ञान केंद्र के अनुसंधान केंद्र में 3 साल से सेब की खेती का ट्रायल किया जा रहा है, जो अब सफल होते दिख रहा है. लिहाजा, अब कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि विभाग और हार्टीकल्चर विभाग मिलकर किसानों के खेतों में सेब की खेती करने की तैयारी कर रहा है.

Apple farming in Mainpat
सेब के पौधे

पढ़ें-SPECIAL: कोरोना संकट के बीच बढ़ा IT का क्रेज, डिजिटल युग की ओर आज का 'भारत'!

मैनपाट में 2012-13 में अनुसंधान केंद्र खोला गया था. जिसकी पहल पर पहले यहां आडू की खेती का ट्रायल गया था. अब कृषि वैज्ञानिक यहां हिमाचल प्रदेश से सेब की 3 किस्म के पौधे लाकर लगाए गए थे, जिसपर बीते 3 साल से रिसर्च किया जा रहा है. इसे लेकर कृषि वैज्ञानिक बताते हैं, सरगुजा में लो-चील वरायटी जैसे अन्ना, जिप्शन गोल्ड HR19, पॉलिनीजर नस्ल के पौधे लगाये गए हैं, जो 8 डिग्री से कम के तापमान में 45 दिनों के भीतर सरवाइव कर जाता है.

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सेब के पौधे

सैलानी ही खरीद लेते हैं सेब

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक हाई-चील वरायटी को 4 डिग्री से कम तापमान की जरूरत 45 दिन से भी ज्यादा समय तक होती है. फिलहाल सरगुजा के मैनपाट में लो-चील वरायटी का सफल ट्रायल 3 साल तक किया गया है. जिसमें अब एक पेड़ से 5 से 8 किलो सेब मिल रहा है. अनुसंधान केंद्र के सेब सैलानी ही खरीद लेते हैं, फिलहाल यहां इसे 120 रुपये प्रति किलो की दर से बेचा जा रहा है.

पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा

इस सफल ट्रायल के बाद अब प्रशासन जिले के अन्य पठारी और अत्यधिक ठंडे क्षेत्रों के किसानों के खेतों में इसकी खेती का ट्रायल कराने जा रहा है. अगर यह सफल रहा तो उन किसानों को एक अच्छा प्लेटफॉर्म मिलेगा. सेब की खेती के संबंध में क्षेत्र के विधायक और मंत्री अमरजीत भगत का मानना है कि पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सेब, नासपाती, अंगूर जैसी खेती को बढ़ावा देना जरूरी है. इससे वनों पर दबाव कम होगा और ये पर्यटकों को भी अपनी ओर लायेगा.

सरगुजा: छत्तीसगढ़ का सबसे खूबसूरत पर्यटन स्थल मैनपाट को छत्तीसगढ़ का 'शिमला' भी कहा जाता है. पहले नदी, पहाड़, झरने, ठंडा मौसम और खुबसूरत वादियां पर्यटकों को अनायास ही अपनी ओर खींचती रहती थी, अब यहां की खुबसूरती में चार चांद लगाने शिमला का सेब भी आ गया है. छत्तीसगढ़ सरकार भी मैनपाट को हिमाचल प्रदेश के शिमला के रूप विकसित करने की कोशिश कर रही है. इसके लिए यहां की जलवायु के मुताबिक शिमला में होने वाले तीन किस्म के सेब को उगाने की कोशिश की जा रही है. जिसमें प्रशासन लगभग सफल भी हो रहा है.

'शिमला' में अब हो रही है सेब की खेती

मैनपाट में कृषि विज्ञान केंद्र के अनुसंधान केंद्र में 3 साल से सेब की खेती का ट्रायल किया जा रहा है, जो अब सफल होते दिख रहा है. लिहाजा, अब कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि विभाग और हार्टीकल्चर विभाग मिलकर किसानों के खेतों में सेब की खेती करने की तैयारी कर रहा है.

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सेब के पौधे

पढ़ें-SPECIAL: कोरोना संकट के बीच बढ़ा IT का क्रेज, डिजिटल युग की ओर आज का 'भारत'!

मैनपाट में 2012-13 में अनुसंधान केंद्र खोला गया था. जिसकी पहल पर पहले यहां आडू की खेती का ट्रायल गया था. अब कृषि वैज्ञानिक यहां हिमाचल प्रदेश से सेब की 3 किस्म के पौधे लाकर लगाए गए थे, जिसपर बीते 3 साल से रिसर्च किया जा रहा है. इसे लेकर कृषि वैज्ञानिक बताते हैं, सरगुजा में लो-चील वरायटी जैसे अन्ना, जिप्शन गोल्ड HR19, पॉलिनीजर नस्ल के पौधे लगाये गए हैं, जो 8 डिग्री से कम के तापमान में 45 दिनों के भीतर सरवाइव कर जाता है.

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सेब के पौधे

सैलानी ही खरीद लेते हैं सेब

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक हाई-चील वरायटी को 4 डिग्री से कम तापमान की जरूरत 45 दिन से भी ज्यादा समय तक होती है. फिलहाल सरगुजा के मैनपाट में लो-चील वरायटी का सफल ट्रायल 3 साल तक किया गया है. जिसमें अब एक पेड़ से 5 से 8 किलो सेब मिल रहा है. अनुसंधान केंद्र के सेब सैलानी ही खरीद लेते हैं, फिलहाल यहां इसे 120 रुपये प्रति किलो की दर से बेचा जा रहा है.

पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा

इस सफल ट्रायल के बाद अब प्रशासन जिले के अन्य पठारी और अत्यधिक ठंडे क्षेत्रों के किसानों के खेतों में इसकी खेती का ट्रायल कराने जा रहा है. अगर यह सफल रहा तो उन किसानों को एक अच्छा प्लेटफॉर्म मिलेगा. सेब की खेती के संबंध में क्षेत्र के विधायक और मंत्री अमरजीत भगत का मानना है कि पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सेब, नासपाती, अंगूर जैसी खेती को बढ़ावा देना जरूरी है. इससे वनों पर दबाव कम होगा और ये पर्यटकों को भी अपनी ओर लायेगा.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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